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लफुआलॉजी

by Dr Shambhu Kumar Singh

भाषा आपकी पहचान है!

मेरे बाबूजी कहा करते थे ,किसी को यह देखना हो कि उसकी परिवरिश कैसी हुई है तो उससे बात करो,पता चल जाएगा! भाषा ही उसकी पहचान होती है। परिवरिश में शिक्षा भी शामिल है! मुझे तो कुछ शब्दों से तब परिचय हुआ जब मैं 30-35 साल का हो गया था।
एक बार मैं वीरपुर गया था ,छोटे बहनोई की वहीं नियुक्ति हुई थी तो उनके यहाँ मिलने गया। वहीं एक महिला आयी हुई थी । वह मेरी बहन की पड़ोसन थी। मेरी बहन उनको चाची कहती थी। वो उसे अपनी पतोहू जैसी मानती थी। वो अक्सरहाँ बहन के घर आती रहती थीं । गपशप चलता रहता था।
एक बार मुझे उत्सुकता हुई उनके बारे में जानने की । मैं खुद उन्हीं से पूछ लिया कि आपके पति क्या करते हैं? वो बड़ी सहजता एवं मासूमियत से बोलीं, वो लफुआ हैं। लफुआगिरी करते हैं! मैं हिंदी से एम ए किया। फर्स्ट क्लास से पास किया था पर इस तरह के शब्द से कभी भेंट नहीं हुई थी। मैं समझा कोसी प्रोजेक्ट में कोई पद होगा? उर्दू जैसा लग रहा भी था शब्द,जैसे पेशकार,नाजिर,नक्शानवीस आदि उसी तरह लफुआ जो लफुआगिरी करता है।
बाद में मैं बाबूजी से पूछा । वह भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए! वीरपुर में ही एक आदमी था। ड्राइवर था वह। वह लफुआ शब्द को तार तार कर समझा दिया। मैं जब इस शब्द को जाना तो अद्भुत प्रभावित हुआ। क्या शब्द है! लफुआ ! खूब हँसा। लफुआ से ही मेरा लफुआलॉज शब्द बना है। लफुआगिरी शब्द से भी परिचित हुआ। प्रभावित भी हुआ पर लफुआ नहीं बन सका। अच्छा ही हुआ। लफुआ जैसा ही एक और शब्द से भेंट हुई वह था लफासूटर ! वह जो लफ्फाजी का बहुत बड़ा सूटर हो! जो लफासूटिंग करे! यह किस भाषा का शब्द है, उसकी जानकारी किसी भी पुस्तक से मुझे नहीं मिल पाई।
एक शब्द और जो मुझे रंग देता है विभिन्न रंगों में सराबोर,मुझे इंद्रधनुष बना देता है वह है रंगबाज! रंगबाज यानी रंगबाजी करने वाला! जब मैं रंगबाजी हेतु ख्यात एक जिले में गया तो सड़क पर एक जगह मारपीट होते देखा। बुद्ध की तरह जिज्ञासा हुई जानने की कि क्या हो रहा है? सामने वाला बहुत ही विदेह भाव से बोला कि दु गो रंगबाज मारपीट कर रहा है तू फूट यहाँ से। मैं तो तत्काल वहाँ से फूटा क्योंकि देखा, दोनों रंगबाजों का माथा फूटा हुआ था! हालांकि इस कथन से रंगबाज का अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ। मारपीट तो आम है । कोई भी कर सकता है। माननीय भी सदन तक में कर लेते हैं।कौन रोक लेता है उन्हें? बहुत रिसर्च करने पर पता चला कि रंगबाज क्या होता है! हालांकि पूरा अर्थ जानने की साध कभी पूरी नहीं हुई।
थोड़ा बहुत जो अज्ञान था वह फेसबुक पूरा कर दिया। जे बात, मने कि , बतोलेबाज, भक्त, लिब्राहन्डु जैसे अनेकों शब्द से यहाँ साक्षात दर्शन हुआ। इसे डॉ. रघुबीर,डॉ. नागेंद्र और डॉ. नामवर के शिष्य भी नहीं पढ़े होंगे! यहीं बकैती भी एक नया शब्द मिला। और भी कई। कुछ का तो यहाँ उल्लेख भी करना उचित नहीं!
इस शब्द यात्रा को देख मुझे लगा मैं कितना दीनहीन समाज का अंग रहा जिसे ऐसे अनमोल शब्दों से कभी परिचय नहीं हुआ! कभी कभी बड़ी ग्लानि होती है। रीच डायवर्सिटी के इस देश में मैं कितना पुअर था। पर भगवान , जुकरबर्गवा और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के विद्वान मित्रों की संयुक्त सहायता एवं कृपा से आज मेरा शब्द ज्ञान समृद्ध है! अब मैं बिना रुके दो घण्टे तक गाली बक सकता हूँ। इतनी ऊंचाई को प्राप्त करने की खुशी में मैं अपने केवल लफुआ और रंगबाज मित्रों के सम्मानार्थ एक प्रीतिभोज का आयोजन अगले साल करना चाह रहा हूँ। कोशिश है कि सकारात के दिन दही चिउड़ा का भोज दूँ! ऐसा करूँ या न करूँ ,इस पर विद्वान जन प्रकाश डालने की कृपा करेंगे!
आभारी रहूँगा!
जय श्री लफुआये नमः !
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
29 दिसम्बर,20
पटना
www.voiceforchange.in
www.prakritimitra.com

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