पिता पर कवितायें .
( ये कविता हो सकती है या नहीं भी .क्यूँ कि कविता का अपना शिल्प और व्याकरण होता है .तो पता नहीं यह वह हो या न हो? पर पिता महाकाव्य होता है .विराट ! जीवन गीत होता है,जिसमें रस होता है ,राग भी और जीवन का स्पन्दन भी . यहां कुछ भाव हैं …पिता को याद करते . श्रद्धांजलि के रूप में पिता को समर्पित ! )
पिता होते हैं
कठोर
जैसे पत्थर की चक्की
जिसकी पिसी
आटें से
बनती हैं
हमारी रोटियां .
हां ,पिता तो होते ही हैं
कठोर
कि सिलबट हों
जिस पर पीसते हैं
हम
मीठी चटनियां .
पिता तो हैं
दहकते
आग से तपते तबे
की तरह
जिसपे सिंकती हैं
हमारी रोटियां .
पिता
कभी कभी
कर देते थे
हमारी कुटाई भी
फिर हम निखरते थे
ऊख़ल से निकले
चावल की तरह
साफ -चमकदार .
( डा . शंभु कुमार सिंह )
पटना
16/06/17