Home Agriculture कबीर दास से एक मुलाकात

कबीर दास से एक मुलाकात

by Dr Shambhu Kumar Singh

तू कहता कागद की लिखी

मैं कहता आँखन की देखी !

कल्ह शाम कबीर दास मुझे बोरिंग रोड में मिल गए ! धुनने हेतु रुई लेने आये थे । बहुत दुखी थे , क्योंकि सिंथेटिक रुई की भरमार थी । शुद्ध कपास मिल नहीं रहा था । बी टी कॉटन के युग में बाबा को चिंतित देख मेरा भी मन दुखी हो गया । उन्हें बगल में कृष्णा बिल्डिंग में कॉफी शॉप में ले गया । दो कोल्ड कॉफी मंगवाया । बाबा भूंजा खोज रहे थे पर मजबूरी थी वह वहां नहीं मिल रहा था । बड़े लोगों की बड़ी बात ! मैंने उन्हें कहा कि पिज्जा खाइये , बाबा एक उदास हँसी हँस दिए !
बाबा पूछ रहे थे कि मैं कपास उपजाता हूँ या नहीं । तो उन्हें अपने यहाँ की पूरी कृषि क्रांति कथा सुना दी ! तो सुनो बाबा , मैं भी कहता तेरी तरह ही आँखन देखी !
धर्मपुर परगना में एगो जिल्ला है पूर्णिया । वहे में प्रखंडों में सुंदर प्रखंड हवे धमदाहा ! वहीं खेती करता हूँ प्रभु ! एगो वखत था कि इस पूरे रमणीक “देस” में भिन्न भिन्न तरह की खेती होती थी । पर कहा न , कृषि किरान्ति ने बिना रोड मैप के पूरे सीमांचल में सूर्यमुखी की खेती शुरू करवा दी !(1980)
इसकी खेती में भी पटवन 4 से 6 लगता था । जिनको बोरिंग नहीं थी वह बांस बोरिंग करवा लिए । पम्पिंग सेट खरीद लिए । और इंजन चला पूरे खेत को हेला दिया । बाद में मकई की खेती शुरू हो गयी । वरन उसी वक्त ! और ई मकईआ सूरजमुखी को चारों खाने चित्त कर दिया ! मकई ने न केवल सूरजमुखी को आउट किया यह पटुआ, मिरचाइ, अरहर,मूंग,गेंहू,बकुली,तीसी, सामा, कोदो, जैसी खेती को सासाराम भेज दिया बूंट लादने !
खेती शुरू । खूब दनादन । बनिया भी खुश , खेतिहर भी । पइसा टनाटन !
हम कर्नाटक को पछाड़ रहे थे । नंबर एक हो गए मकई उत्पादन में । रोज सैकड़ों गाड़ी गुलाब बाग मंडी । मंडी के बगल में ही रात गुलजार की जगह । पैसा हुआ तो थोड़ा रास रंग भी । दारू भी । थोड़ा एच आई वी भी ।
आइये फिर खेत ही । केतना गुलाब बाग की बात करें ? कि ई गुलाब बाग कितनों को सपने दिखाए तो कितनों के सपने मटियामेट कर दिए !
मकई की खेती ने अंधाधुंध खेती का यांत्रिकरण किया ! पशुपालन ध्वस्त ! गोबर पूरे परिवेश से गायब । कंपोस्ट खत्म । यूरिया, डी ए पी , पोटाश रासायनिक उर्वरक आ गए ! तरह तरह के कीटनाशक भी । फिर छितरा गए खेत में । खेतों में जमीन के कीड़े मरे । केंचुआ खत्म । मेढ़क भी । तितली खत्म । मधुमक्खी विलुप्त । चिड़ियों को जहर दे मारने लगे । मैना, कौआ, बगुला, कोयल, गौरैया सब समाप्त हो गए !
खेतों में मकई के डंठल, ठठेरा जलाने लगे लोग । जो मिट्टी हँसती मिलती थी वो जली भुनी हुई दिखने लगी । नदी , नाले ,कुँए, पोखर समतल होने लगे । जो पानी 20 फ़ीट पर मिलता था वह 200 पर मिलने लगा ।
घर में टी वी आ गया । स्मार्टफोन भी। फेसबुक में लोग रमने लगे । पोर्न के जलवे दिखने लगे ! कुछ रोग भी आ गया जिसे कोई सुना नहीं था । फ्रिज में कोल्ड ड्रिंक मिलने लगा । गुटखा भी । अब सभी इतरा रहे हैं । जाइयेगा तो बड़े ही गर्व से हल्दी राम का भुजिया खिलाएंगे । मकई का भूंजा नहीं मिलेगा ! भर भर गिलास ऊँख का रस नहीं ! उँखे खत्म हो गया तो क्या मिलेगा ?

लोग थूक लगा रुपये गिनते अपने खैनी खाये दंत पंक्तियों को प्रदर्शित करते जब बोलते हैं कि बबुआ , कोल्ड ड्रिंक पी के जाना ,तो न जाने क्यों मुझे उल्टी होने लगती है !
अरे बाबा , आप कॉफी नहीं पिये ?
पर दास कबीर तो फूट फूट रो रहे थे !
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डॉ. शंभु कुमार सिंह
5 जून , 21
संध्या 5 बजे !
पर्यावरण दिवस ।

प्रकृति मित्र

www.prakritimitra.com
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