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संस्मरण-महादेवी वर्मा

by Dr Shambhu Kumar Singh

महादेवी जी से मुलाकात

1980 का साल था और मेरी फक्कड़बाजी के दिन भी। बी ए पास कोर्स की परीक्षा दे दी थी और कुछ दिनों के लिए मुक्त था कि कहीं घूम आयें। तो उठाया झोला ,अरे वह फकीर वाला झोला नहीं वरन अपना एक बैग लिया और चल दिया इलाहाबाद जो अब प्रयागराज है। पटना से रेलगाड़ी में बैठा। सुबह इलाहाबाद पहुंचा हुआ था। सबसे पहले तो ठहरने की व्यवस्था करनी थी तो किसी होटल में रूम बुक करना था। रिक्शेवाले ने एक सुंदर होटल के गेट पर उतार दिया। होटल के मैनेजर ने लंबा इंटरव्यू ले रूम दे दिया। जब मैं रजिस्टर में दस्तखत किया तो वह मेरे दस्तखत पर ही मोहित हो गया और बोला ,वाह आपके दस्तखत तो बड़े ही मोहक हैं! यह सच में मोहक था क्योंकि एक बार फ़िल्म निर्देशक प्रकाश झा ने भी मुझे कहा था कि आपके सिग्नेचर तो गजब के आकर्षक हैं। तो वही आकर्षण इस होटल वाले को भी नजर आया और वह एक सुंदर सा कमरा दे दिया ।

नहा धो जब मैं तैयार हुआ तो होटल मैनेजर ने मुझे जलेबी और पूरी खिलाई और बोला इसका पैसा नहीं दीजिये। वह इससे भी प्रभावित था कि इतनी कम उम्र में मैं महादेवी वर्मा जैसी कवियत्री से मिलने पटना से अकेले ही आ गया हूँ! वह लगभग मेरा दीवाना ही हो गया था।

महादेवी जी का पता मुझे मालूम था क्योंकि पत्र पत्रिकाओं में उनके पते छपते रहते थे और मैं उसे नोट किये हुए था। होटल मैनेजर ने मुझे अशोक नगर जाने का सही सही रास्ता बताया और यह भी व्यवस्था कर दी कि मैं वहाँ ठीक से चला जाऊं। बाद में मुझे पता चला कि वह मैनेजर भी साहित्य रसिक था और थोड़ा बहुत कविताई भी कर लेता था। साहित्य प्रेमियों को बहुत सम्मान देता था।
मैं खादी सिल्क का कुर्ता और पैजामा पहना और चल पड़ा महादेवी जी से मिलने। जब उनके आवास पर पहुंचा तो एक लड़की मिली जो मुझसे कुछ छोटी थी। करीब 15 – 16 साल की वह लड़की बड़ी बातूनी और शालीन थी। वह मुझसे पूरा डिटेल्स ली और अपना परिचय भी दी। मालूम हुआ कि वह वहीं रह रहे रामजी पांडेय की बेटी है। संयोग से महादेवी जी उस दिन वहाँ नहीं थी और मुझे तब कल आने को कहा गया।

मैं दूसरे दिन भी गया उनसे मिलने। उस दिन भी उनसे मिल पाया। उन्होंने मुझ जैसे छोटे बच्चे का खूब आदर सत्कार किया और मिठाई खाने को दी। मुझे लगा ही नहीं कि मैं पहली बार उनसे मिल रहा हूँ! वह अपने कुछ संस्मरण सुनाई जिसमें एक तो उनकी भिक्षुणी बनने की बात थी और दूसरी निराला से जुड़ी कुछ यादें। वह बोलीं कि निराला उनसे राखी बंधवाने हमेशा आते थे। आते ही पहले दो रुपया मांगते थे । महादेवी जी बोलती थी कि तांगा वाले को तो एक ही रुपया देना है फिर दो रुपया क्यों मांग रहे हैं? तब निराला जी बड़ी मासूमियत से बोलते थे कि बहन को भी तो एक रुपया देना है राखी पर नेग! तो ऐसे थे निराला जी ! यह कहते महादेवी जी की आंखें भर आयी थी।

जब उनको मालूम हुआ कि मैं भी कविता लिखता हूँ तो वह बोली क्या कुछ कविता लाये हैं तो मैं हड़बड़ा गया। मैं कोई डायरी या कॉपी में कविता नहीं लिखता था। जो कोई कागज मिला उसी पर लिख दिया और कहीं रख भी दिया। प्रकाशित कराने की कोई चिंता भी नहीं। तो उनको कहा कि कविता तो कुछ है जो होटल में है वह मैं कल दिखा सकता हूँ। वो कल भी आने को बोली। होटल आते ही पहले मैं कविता लिखने बैठ गया क्योंकि मैं तो कोई कविता लाया ही नहीं था। चार पांच कविता लिख फिर दूसरे दिन उनसे मिलने गया । वो मेरी कविता पढ़ी और बोली कि अच्छा लिखते हो और उस पर अपनी टिप्पणी भी लिख दस्तखत कर दीं। वह कागज मेरे पास अभी भी उपलब्ध है।

उनसे मेरी बात महिलाओं की सामाजिक ,आर्थिक स्थिति पर भी हुई। बड़ी लंबी बातचीत हुई। क्या मुद्दा है और क्या समाधान हो सकता है इस पर भी बातें हुईं। मैं बहुत देर तक उनके पास रहा और फिर होटल लौट आया। पर दुबारा मिलने का संयोग मुझे तब मिला जब 1983 या 85 में उनसे कोलकाता के श्री शिक्षायतन , लड़कियों के कॉलेज में मिला । वो मुझे देखते ही पहचान गयीं। उस दिन भी वो मुझे अपने हस्ताक्षर कर के दीं। मेरे पास ऑटोग्राफ बुक नहीं था पर एक कॉपी पर ही लिख दीं।

महादेवी जी को पढ़ना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है और उससे भी बड़ा सौभाग्य उनसे मिलना तथा बात करना है। मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे उनका आशीर्वाद मिला। आज जब उनको याद करता हूँ तो मन अपार श्रद्धा के साथ उन्हें नमन करता है।
सादर नमन !??

डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना , 27 मार्च ,21

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(मेरी तस्वीर उसी समय की है पर दिल्ली की है!)

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