रमेशर कक्का को श्रद्धांजलि ?
हमरे गांव में बहुत कक्का ,भइया हैं पर एगो सार्वजनिक कक्का हैं, नाम है उनका रमेशर कक्का! पूरा नाम भी इहे है। समझिए सरनेम कक्का है। बोले तो सबके कक्का ! बाल, बच्चा, बूढ़ा सबके !हम त उनका भक्त हैं। कक्का में बहुत गुण है पर हैं एकनम्बर ताड़ीपीवा , ताड़ीबाज! रोज एक लमनी ताड़ी पीते हैं। पीके बम्म! कभी कभी ताड़ के पेड़ के नीचे एक पैर पर खड़े रहते हैं जैसे कोई आसन कर रहे हों! वैसे हमलोग उनके इस आसन को ताड़ीयासन कहते हैं।
जब ताड़ी का पान करते तब रमेशर कक्का अपने बदबूदार मुँह से गाली का सहस्त्र नाम पाठ करते हैं। जिसको न मन उसको गाली देते हैं। भर मन । फिर भर मन रोते भी हैं।
एक बार रमेशर कक्का ताड़ के पेड़ के नीचे अपने लोकप्रिय आसन में लीन गाली सहस्त्रनाम का पाठ कर रहे थे तभी उनके सिर पर ताड़ का एक फल गिरा । गांव वाले दौड़े। लगा कि रमेशर कक्का टन्न बोल गए हैं ? लोग दूर से ही उनको देखते रहे। पर भगवान की अजगुत माया,रमेशर कक्का उठ बैठे और चारों तरफ घेरे गांव वालों को बाकी बचे गाली सहस्त्र नाम से अभिसिक्त करने लगे। फिर ले लौठा, रमेशर कक्का सभी को दौड़ा दिए। रमेशर कक्का कभी कभी नशे में नाला में भी गिर जाते हैं। कीचड़ से लथपथ सड़क पर गाली बकते बकते रोने लगते हैं। मैं जब उनको देखता तो बड़ा अफसोस होता !पर आज उनके प्रति इतनी श्रद्धा उपजी कि जीवित ही उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने को मन किया। आप इस आलेख को उसी श्रद्धांजलि का एक अंग समझे!
रमेशर कक्का जैसे हों ,मुझे कभी बुरे नहीं लगे। बुरे तो गांव के वे लोग लगे जो सफेदपोश हैं ,कभी नाली में नहीं गिरे पर नाली के कीड़े से भी गए गुजरे हैं। बुरे तो वह मुखिया जी भी हैं जो एन केन प्रकारेण जीतने का जुगाड़ करता है। गांव के विकास के सारे फण्ड को लंद फंद देवानंद कंपनी में लगा डालते हैं। तो रमेशर कक्का के प्रति कभी मन में घृणा नहीं आई ।
रमेशर कक्का का एक खुशहाल परिवार था। पर गांव के ही एक दबंग ने उनके पूरे परिवार को जला डालने की योजना बनाई। रात में लोगों ने देखा कि रमेशर कक्का का घर आग की लपटों के बीच घिरा हुआ है। लोग बचाव को आये। पर दुर्भाग्य, रमेशर कक्का का पूरा परिवार जल गया था। तब से रमेशर कक्का इसी तरह गांव में घूमते घामते रहते हैं। कहीं कुछ मिल गया तो खा लेते हैं। नहीं भी मिला तो क्या परवाह! कुछ लोग उनको भोजन करा देते हैं। वे जानते हैं कि इसका कोई नहीं है तो खाने पीने का इंतजाम तो उन्हीं को करना होगा।
यह है तो हमारे गांव की कहानी पर इसे देश समझ लें तो रमेशर कक्का आम मतदाता हैं। लुटापिटा ,रोता! सफेदपोश उसकी मजाक उड़ा रहे हैं। रमेशर कक्का तो नाली में गिरते भी हैं तो नहा धो साफ हो जाते हैं पर ये सफेदपोश राजनेता के झक्क सफेद कपड़ों के कीचड़ तो कभी धुलते नहीं ,गंध फैलाते हुए दिखते हैं।
???
©डॉ. शंभु कुमार सिंह
28, जनवरी, 21 / पटना
www.voiceforchange.in
www.prakritimitra.com
???