सहनशीलता और परिवार
सहनशीलता सौहार्दपूर्ण और सुखी जीवन की पहली शर्त है। सहना हमेशा बुरा नहीं होता। कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनको सहन कर लेना ही श्रेयस्कर होता है। सहन हमेशा अप्रिय बातों की ही होती है,प्रिय बातें या कार्य असहनीय होते ही नहीं। वो तो सदा स्वीकार्य ही होते हैं। तो जीवन में ,परिवार में एक सुखद और सौहार्दपूर्ण जीवन जीने केलिये सहनशीलता को स्वीकारना अनिवार्य है।
परिवार के सभी लोगों में कुछ गुण होते हैं ,कुछ विशेषताएं होती हैं तो कमियां भी होती हैं। उनको नजरअंदाज करना सहनशीलता का एक उदाहरण हो सकता है। हम हर बात का नुक्स निकाले यह भी परिवार को तोड़ता है। सहनशीलता एडजस्टमेन्ट का दूसरा नाम है। परिवार को जोड़े रखने की धुरी। तो हर बात ,कार्य पर नुक्ताचीनी से बचें। कभी कभी किसी की गलत बातों को अनदेखा कीजिये। अगर अनदेखा करने योग्य हो तो? सहनशीलता हमारी कमजोरी नहीं वरन ताकत है। इसे कभी भी एक कमजोरी के रूप में नहीं लें।
बहुत से परिवार केवल इसी लिए टूट गए जहाँ यह सहनशीलता नहीं पाई जाती। आज जब समाज आधुनिक होते जा रहे हैं तो लोग अपने अधिकार के प्रति ज्यादा सचेत हो गए हैं। पति पत्नी में समानता आ गयी है। दोनों आर्थिक स्तर पर स्वतंत्र हो रहे हैं भले ही इनकी संख्या बहुत कम है। यह एक सुखद परिवर्तन है । पर दुखद है कि असहिष्णुता बढ़ गयी है। लोग छोटी छोटी बातों पर उलझ रहे हैं। झगड़ रहे हैं। जबकि कहीं कहीं केवल अनदेखी कर ही मामले को सुलझाया जा सकता है। इग्नोरेंस कर। हाँ ,हर जगह सहनशीलता काम नहीं आती । सहनशीलता दब्बूपन नहीं होना चाहिए। सहनशीलता एक सीमा के बाद बंद कर देनी चाहिए। पानी सर के ऊपर बहने देने से बचना चाहिए।
छोटी छोटी बातों को नजरअंदाज कीजिये। नहीं कर रहे हैं ,सभी पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं ,लड़ रहे हैं तो कोई भला नहीं कर रहे हैं। पति पत्नी में रोज बहस हो रही है। गरम वार्ता । दोनों बोल रहे हैं ,सुन कोई नहीं रहा है। सुन तीसरा रहा है। घर के बाहर आवाज जा रही है, लोग सुन सुन मजा ले रहे हैं और पति पत्नी अपनी बात को सही साबित करने पर तुले हुए हैं। यह गलत है। इससे बचना चाहिए। सहनशील बनिये ,घर में सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण कीजिये। दब्बू मत बनिये। दब्बू बनना और सहनशील होने में बहुत अंतर है तो सहनशील ही बनिये,दब्बू नहीं।
सहनशीलता कभी भी घर को तोड़ती नहीं है। यह जोड़ती है।तो सहनशील हो जुड़े घर को खुशियों का तोहफा दीजिये।
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
19 जनवरी,21, पटना
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