कसार को गए हम बिसार !
हमारे बिहार में एक पकवान है कसार। गोलमटोल ,सफेद और स्वादिष्ट ! यह खाने में बहुत ही स्वादिष्ट लगता है और पौष्टिक भी है। पर हमारी थाली से ही नहीं बल्कि हमारे जेहन से भी यह पकवान विलुप्त हो रहा है। कसार का निर्माण भी सरलता से नहीं होता परन्तु यह आम जनों की मिठाई है। सर्वहारा मिठाई! पर अब यह रेयर मिठाई होती जा रही है जो दुखद है। हम कसार को बिसार गए!
कसार मुख्यतया तिलसंक्रान्ति का पकवान है। हमारे बचपन में मकरसंक्रांति के त्यौहार की तैयारी एक महीने पूर्व से ही हो जाती थी। अगहनी धान की कटाई के बाद चिउड़ा की तैयारी शुरू हो जाती थी। सुबह सुबह ओखली मूसल की जुगलबंदी ऐसी लगती थी कि लगता था सितार और तबले की जुगलबंदी हो रही है। उसी दौरान चावल को भून कर , उसे पीस कर गुड़ की चासनी में सान गोल गोल कसार का भी निर्माण होता था। कुछ लोग उसे सिम्पल ही बनाते थे पर कुछ लोग उसे थोड़ा विशेष बनाते थे । उसमें खोआ मिला देते थे और सौंफ आदि भी। सूखे मेवे को भी उसमें डालते थे। तिल तो डाला ही जाता था! अब खाइये मजे से कसार!
हाँ ,यह जरूर ध्यान देने की बात है कि कसार को चम्मच से नहीं खा सकते। थोड़ी चासनी कड़ी हो गयी हो तो कसार वही खा सकते हैं जो दंतकान्ति या ब्रजदन्ति टूथपेस्ट से ब्रश करते हों या नीम की दतुअत से रोज दातुन करते हों क्योंकि तब कसार कड़ा हो जाता है। कभी कभी पत्थर जैसा भी। पर कसार सॉफ्ट भी बनता है और बनाने वाले के हुनर पर निर्भर करता है। एकबार तो रमेसर कक्का कसार खा रहे थे। खट से आवाज हुई तो बड़की भउजी पूछी कि कसार टूटल का? ना बहु, दंतवे टूट गइल ,कक्का बोले! तो ऐसा भी होता है!
कसार खाने वाले की स्टिमना की भी जांच कर लेता है। हर आदमी कसार नहीं खा सकता। एक विलायती बाबू एकबार बिहार आये थे। उन्हें यह पकवान दिया गया खाने को । वो बहुत देर तक छूरी कांटा चलाते रहे ,अंततः दांतों का सम्यक प्रयोग उन्हें इसका स्वाद दिला पाया। कसार ऐसी मिठाई है जिससे झगड़ा के समय भी उपयोग कर सकते हैं। कड़े कसार को फेंक कर प्रतिद्वंद्वी के कपार को फोड़ सकते हैं।
पर कसार कभी झगड़े में प्रयुक्त नहीं हुआ हमारे बिहार में। सॉफ्ट हो या कड़ा कसार बड़े प्यार से हम खाते रहे हैं। मकरसंक्रांति हो ,छठ हो कसार बनता ही है हमारे यहाँ। बेटियों को विदाई में दिए गए मिठाइयों में कसार अभी भी रहता है। पर धीरे धीरे हम कसार को बिसार रहे हैं। आज मकरसंक्रांति में किसी ने भी डिजिटली ही सही कसार को याद नहीं किया। मुझे लगता है पिज़्ज़ा पीढ़ी कसार देखी भी नहीं होगी ? यह दुखद बात है। अपनी परंपरा से प्यार कीजिये। रोजबरोज नहीं खाइये पर कमसेकम मकरसंक्रांति के दिन तो बनवाइये इसे। नहीं कभी खाये हों तो खा कर देखिये,इसका स्वाद और मिठास कुछ अलग किस्म की लगेगी। तो कब बनवा रहे हैं कसार???
मकरसंक्रांति की बधाई !??
©डॉ. शंभु कुमार सिंह
14 जनवरी,21,पटना
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(कसार की तस्वीर मैंने अपने एक फेसबुक मित्र से मांगा है। )