तोतानामा
मैना पर एक आलेख अभी अभी लिखा हूँ। आप पढ़े भी होंगे? तोता-मैना में मैना पहले आ गयी आलेख में। हाँ, लेडीज़ फर्स्ट! अब तोतवा भी आ रहा है।तो पढ़िए और आनंद को प्राप्त कीजिये।
तोता एक प्यारा सा पक्षी है। यह एक दोपाया जीव है। इसको एक लाल होठ होता है। जिससे यह सीताराम सीताराम बोलता रहता है। तोता का नाम भी कुछ लोग रखते हैं जिसमें एक हिरामन भी है। हिरामन तोता तो बहुत ही ख्यात है भारतीय समाज में। मिठू भी कॉमन नाम मिलेगा भारतीयों के यहाँ पालतू तोते की।तो इसी तोते की कहानी कह रहा हूँ।
तोता पक्षियों के सिटैसिफ़ॉर्मीस (Psittaci) गण के सिटैसिडी (Psittacidae) कुल का पक्षी है, जो गरम देशों का निवासी है। यह बहुत सुंदर पक्षी है और मनुष्यों की बोली की नकल बखूबी कर लेता है। यह सिलीबीज द्वीप से सालोमन द्वीप तक के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी कई जातियाँ-प्रजातियाँ हैं। लेकिन इनमें हरा तोता (Ring Necked Parakett), जो अफ्रीका में गैंबिया के मुहाने से लेकर लाल सागर होता हुआ भारत, बरमा और टेनासरिम (Tenasserim) तक फैला हुआ है, सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यह हरे रंग का 10-12 इंच लंबा पक्षी है, जिसके गले पर लाल कंठा होता है। तोते को मनुष्यों ने संभवत: सबसे पहले पालतू किया और आज तक ये शौक के साधन बने हुए हैं।
तोते के निवास स्थान आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी हैं, जहाँ के अनेक प्रकार के रंगीन तोते प्रति वर्ष पकड़कर विदेशों में भेजे जाते हैं। इनमें काकातुआ और मैकॉ (Macaw) आदि बड़े कद के सुंदर तथा रंगीन एवं बजरीका, रोज़ेला और काकाटील छोटे कद के तोते होते हैं।
काकातुआ सफेद और मैकॉ नीले रंग का होता है। बजरीका नीले, पीले, हरे सभी रंग के चित्तीदार होते हैं, जो देखने में बहुत सुंदर लगते हैं। रोज़ेला भी कम सुंदर नहीं होता! इसका सिर लाल, सीना पीला और डैना तथा दुम नीली रहती है। काकाटील का सिर पीला होता है। हमारे देश में भी तोतों की परबत्ता, ढ़ेलहरा, टुइयाँ, मदनगोर आदि कई जातियाँ हैं, लेकिन ये सब प्राय: हरे रंग की होती हैं।
तोते झुंड में रहनेवाले पक्षी हैं, जिनके नर मादा एक जैसे होते हैं। इनकी उड़ान नीची और लहरदार, लेकिन तेज होती है। इनका मुख्य भोजन फल और तरकारी है, जिसे ये अपने पंजों से पकड़कर खाते रहते हैं। यह पक्षियों के लिये अनोखी बात है!
तोते की बोली कड़ी और कर्कश होती है, लेकिन इनमें से कुछ सिखाए जाने पर मनुष्यों की बोली की हूबहू नकल कर लेते हैं। इसके लिये अफ्रीका का स्लेटी तोता (Psittorcu erithacus) सबसे प्रसिद्ध है। तोते को जीभ भी होती है जो उनको बोलने में सहायता करती है। यह मानव बोली नकल करने में माहिर होते हैं।
तोता मानव की तरह नहीं होते। वे एकपत्नीव्रती पक्षी होते हैं। इसकी मादा पेड़ के कोटर या तनों में सुराख काटकर 1 से 12 तक सफेद अंडे देती है।
यद्यपि तोता अत्यधिक लोकप्रिय पक्षी है, परंतु यह प्रसिद्ध है कि तोता अपने पालने वाले के प्रति भी बेवफा होता है। कहा जाता है कि तोता चाहे कितने दिनों का पालतू क्यों न हो, पर जब एक बार पिंजरे के बाहर निकल जाता है, तब वह फिर अपने पिंजरे या मालिक की तरफ देखता तक नहीं। इसी आधार पर यह मुहावरा बना है ‘तोते की तरह आँखें फेरना या बदलना’ अर्थात् बहुत बेमुरौवत होना। हालाँकि स्वाभाविक रूप से यह तोते की अत्यधिक स्वतंत्रताप्रियता का प्रमाण ही है। पूर्वोक्त अर्थ में ही ‘तोता-चश्म’ पद भी प्रचलित है, अर्थात् जिसकी आँखों में तोते की तरह लिहाज या संकोच का पूर्ण अभाव हो- बेवफा, बेमुरौवत !
वैसे तो शब्दकोशों में तोते के अनेक पर्यायवाची शब्द मिलते हैं, परंतु ‘तोता’ शब्द के अतिरिक्त हिन्दी भाषी क्षेत्र में सर्वाधिक प्रचलित एक ही शब्द है ‘सुग्गा’ जो संस्कृत के मूल शब्द ‘शुक’ का तद्भव रूप है। संस्कृत साहित्य से लेकर पालि, प्राकृत, अपभ्रंश एवं आधुनिक हिन्दी तक में तोते के लिए ‘शुक’ के अतिरिक्त या तो ‘कीर’ शब्द का प्रयोग हुआ है या फिर ‘शुक’ के तद्भव रूप ‘सुआ’ एवं ‘सुग्गा’ का।
दक्षिण-पश्चिम भारत में तोते के लिए बहुप्रचलित शब्द है ‘पोपट’। इस शब्द का प्रयोग हिन्दी भाषी क्षेत्रों में पहले से प्रायः नहीं होते रहा है। इसका एक बड़ा प्रमाण यह भी है कि हिन्दी के प्राचीन से अर्वाचीन साहित्यिक ग्रन्थों में तो इस ‘पोपट’ शब्द का अभाव है ही ,हिन्दी के सर्वाधिक प्रामाणिक एवं विस्तृत आकार-प्रकार वाले कोशों ‘मानक हिन्दी कोश’ एवं ‘वृहत् हिन्दी कोश’ में तो यह शब्द नदारद है। हिन्दी के सबसे बड़े कोश ‘हिंदी शब्द सागर’ में भी यह शब्द नहीं है।यह शब्द मूलतः मराठी है या गुजराती यह तो स्पष्टतः पता नहीं चलता है, परन्तु मराठी, गुजराती एवं राजस्थानी में तोते के लिए ‘पोपट’ शब्द का प्रयोग बहुतायत से होता है। ‘हिन्दी-मराठी कोश’ में तोते के लिए एकमात्र मराठी शब्द ‘पोपट’ ही दिया गया है। तोता समूह में ज्यादातर रहता है। भारत में सरकार भी तोता पालती है। सी बी आई सरकारी तोता कहा जाता है।
तोते अपनी अनोखी आदतों हेतु मशहूर होते हैं। भारत के मप्र में लाखों की तादात में शाम को देवरी शहर आते हैं। कुछ परम्परागत तोतें 25 सालों से लगातार एक निश्चित स्थान पर बैठते हैं और बाकी तोते शहर के पेड़ों पर रोज बैठते हैं। उनकी चिकचिकाहट रात 12 बजे तक साफ सुनाई देती है।
अपने बिहार में सोनपुर मेला के चिड़िया बाजार में तोते पहले खूब बिकते थे। अब सरकारी आदेश से बंद है। फिर भी गांधी सेतु और पटना के कुछ इलाकों में इसे पिंजड़े में बिकते देख सकते हैं। यह गलत है। इसे रोकिए। हरित प्रकृति की तोता एक सुंदर रचना है। इसे जीने और उड़ने को उन्मुक्त आसमान दीजिये ,यह आपको खुशियों से भर देगा।
थोड़ा लिखा, ज्यादा समझना जी। हिरामन की तरफ से आपको प्यार पहुंचे!
इति तोता कथा!
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प्रकृति मित्र
©लेखन और संपादन :
डॉ. शंभु कुमार सिंह
संयोजक,
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5 Nov.,20