मजदूरों की समस्या कोई ऐसी समस्या नहीं है कि तत्काल उसका निदान हो जाये,पर पहल तो हो ! विमर्श भी हो !
1.मजदूरों की समस्या पूरी तरह से रोजगार और आर्थिक सबलीकरण से जुड़ी हुई है !
2.यह ग्रामीण विकास से भी सीधे तौर पर जुड़ी हुई है !
3.मजदूरों की समस्या का संबंध बिहार की कृषि क्षेत्र की दयनीय स्थिति से भी है ।
4.इनका स्थानीय स्तर पर संसाधनों के अवैज्ञानिक दोहन से भी संबंध है ।
5.मजदूरों की समस्या में स्थानीय पंचायत एवं मुखिया ,सरपंच ,वार्ड सदस्य, पंचायत सचिव के नकारेपन का भी योगदान है । पंचायत स्तर पर कोई डेटा संग्रह नहीं है । सूचना और अलार्मिंग सिस्टम नहीं है । कितना मजदूर कहाँ गया ,वहाँ उसकी क्या स्थिति है उसकी अद्यतन जानकारी किसी के पास नहीं है ।
6.डिसास्टर मैनेजमेंट का जो स्ट्रक्चर है वह सही और सुचारू रूप से काम नहीं कर रहा है ।
7.स्थानीय स्तर पर वसुधा केंद्र सक्रिय नहीं है । उनके पास डेटा है ही नहीं ।
8.मनरेगा को कृषि से नहीं जोड़ना भी एक कारण है । मनरेगा में भ्रष्टाचार तो एक प्रमुख कारण है ही ।
9.मजदूर यूनियन का नाकारापन भी इनकी समस्या बढ़ाया है ।
10.राजनैतिक दलों की इस मुद्दे पर उदासीनता भी एक कारण है !
11.सरकार, प्रशासन यहाँ तक कि संबंधित मंत्री को भी मजदूरों की समस्या का ए बी सी डी नहीं मालूम ।
12.,खुद मजदूर भी अपनी समस्या को बढ़ाते हैं जो सबसे बड़ी समस्या है ।
तू कहता कागज की लिखी मैं कहता आँखन की देखी । तो हे साधो , मजदूरों की आज की स्थिति इतना जो चिल्लपों मचा रहे हो फेसबुक पर उससे कुछ होने का नहीं । गरम पानी से गरारा कर घर में आराम करो ।
इति श्री !
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डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना
29 मार्च ,20