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मां दुर्गा, काली

by Dr Shambhu Kumar Singh

मां दुर्गा, काली


(1)

ऐ बेटी
घर की
दिवालों पर
जरूर
टांगो
मां दुर्गा
काली की तस्वीरें
पर कभी
घर के
शहतीर
से
खुद को
नहीं टांगो
लड़ो
यूं ही
नहीं मरो!

(2)

किए
जागरण
कीर्तन
व्रत त्यौहार
उपवास
तीर्थ प्रवास
पर
रहा बेकार
जब
अनदेखी किए
अपने
माता पिता की
टूटती सांस
उदास
उच्छवास!

(3)

हे देवि
दो
हमें
धन, समृद्धि
या
न दो
पर दो
जरूर
यह
आशीष
रहूं तन खड़ा
सामने
हर अत्याचार के
और
काट डालूं
आतातायियों
के
पतित
शीश!

(4)

ऐ बेटी
न केवल
नवमी पूजन के दिन
तुम देवी रुप
होती हो
तुम हो
सदा
इस धरा
की
सृजनहार
धारित करो
खड्ग और खप्पर
और
करो
अत्याचारियों
का समूल
संहार !

🙏🙏

© डॉ शंभु कुमार सिंह
पटना
7 अक्टूबर, 24
(इसमें से एक आध कविता कुछ संशोधित रुप में 1992 में नव भारत टाइम्स, पटना के साहित्य परिशिष्ट में प्रकाशित और बाद में आकाशवाणी के पटना और पूर्णिया केन्द्र से प्रसारित)

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