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हमारा पहला टी सेट

by Dr Shambhu Kumar Singh

रसोई_राग

ज़िंदगी

चाय

1970 के पहले की बात होगी। हमारे घर में चीनी मिट्टी का एक टी सेट था। बाबूजी खरीदे थे। हमारे यहां रोज चाय बनती थी और घर के अलावा गांव के भी कुछ व्यक्ति चाय पीते थे। यह नियमित क्रियाकलाप था। कुछ लोग तो टाइमली केवल चाय ही पीने दरवाजे पर आ जाते थे।
तब कप प्लेट में चाय सर्व की जाती थी। एक ट्रे में या कभी कभी एक बड़ी थाली में कप प्लेट लगा चाय बांटी जाती थी। चाय केतली में भी बनती नहीं थी बल्कि एक पैन था उसमें या एक छोटी बटलोही में बनती थी। केतली ऐसे ही आलमारी में रखी रह गई । बाबूजी की खरीदी एक केतली अभी भी हमारे पास है।

यहां मैं बात कर रहा हूं अपने घर में उपलब्ध टी सेट की। जैसा कि पहले ही आपको बताया हमारे पास एक टी सेट था। चीनी मिट्टी का। उसमें मुख्य केतली के साथ एक दूध का और एक चीनी का पॉट था।
छः कप प्लेट भी। वह सेट सचमुच बहुत ही सुंदर था। शायद बाबूजी इसे बंगलोर से 1963 में लाए थे? उसी दौरान मुझे यह भी ज्ञान मिला कि इसका जो लीड है यानी ढक्कन है उसमें एक घुंडी निकली हुई थी उसका काम चाय ढालने समय ढक्कन को गिरने से बचाने का था। उस ढक्कन को लगाने का भी एक तरीका था। बहुत दिनों बाद मुझे एक मेले में एक टीकोजी पसन्द आ गई पर तबतक मेरा वह टी सेट घर से विदा ले चुका था।

मां बोलती थी कि बड़ा वाला पॉट चाय केलिए है तो दोनों छोटा पॉट दूध और चीनी केलिए। जबकि हमारे यहां जब चाय बनती थी तो बनने समय ही चाय में दूध और चीनी डाल डाल दी जाती थी। अब भी यही किया जाता है। तो इस टी सेट का उपयोग लगभग नहीं होता था।
घर में किसी को कम चीनी लेने की आदत नहीं थी। और बिना दूध की चाय की कोई कल्पना भी नहीं करता था। हमारे मेहमान भी जो आते थे वो भी हमारे ही तरह के होते थे जो पूरा से दूध चीनी की चाय पीते थे तो यह टी सेट आलमारी की शोभा बना केवल रह गया।
यह अलग बात है कि हमारे यहां सत्येंद्र नारायण सिन्हा, वीरचंद पटेल आदि आये हुए हैं पर उन्हीं इक्के दुक्के समय में इनका उपयोग किया गया होगा या नहीं भी क्योंकि इस बात को बताने वाला कोई नहीं है।
मैं जब अपने घर में उपलब्ध कुछ चीजों को देखता हूं तो बाबूजी की पसन्द का कायल हो जाता हूं। ड्राई फ्रूट्स हो या कॉफी। सभी उपलब्ध रहा करते थे। जे बी मंघाराम और ब्रिटेनिया के बिस्किट जो टीन के डिब्बों में आते थे। जिन्हें हम लोग भरपूर खाते थे। मिल्कमेड का डिब्बा भी जबकि शुद्ध और ताजा दूध की हमारे यहां कमी नहीं थी। चाय पत्ती भी तब लोपचू की आती थी पर गांव के लोग ब्रुकबॉन्ड को ही पसन्द करते थे। एकदम कड़क चाय। मलाईदार।

आलमारी में रखे रखे उस टी सेट का एक दो पॉट टूट गया तो बाद में पूरे सेट को हटा दिया गया। मेरी याद में फिर कभी टी सेट नहीं खरीद किया गया। लोगबाग बोलते भी थे चाय पीने हेतु इतनी जहमत की क्या जरूरत है !
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डॉ शंभु कुमार सिंह
पटना
2 जून,24
(तस्वीर प्रतीकात्मक है जो इंटरनेट से लिया गया है)

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1 comment

Dr Shambhu Kumar Singh August 23, 2024 - 1:50 pm

Great Article 👍

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