पत्नीसेपरेशान
मैं , डॉ शंभु कुमार सिंह पूरे होशोहवाश में यहां घोषणा करता हूं कि मैं अपनी पत्नी से बहुत ही परेशान हूं। मेरी एक अदद निजी पत्नी मुझे घनघोर परेशान किए हुए हैं। सुबह जब जगता हूं तो ड्राइंग रूम के सोफे पर बैठ कर इधर उधर हुलुक बुलुक कर ही रहा होता हूं कि श्रीमति जी प्राणायाम कर चुकी होती हैं। वह जेलर की तरह औचक निरीक्षण करते हुए आ धमकती हैं। बोलती हैं, अय्ये जी , आप को जगे इतनी देर हो गई, और अभी तक हाथ मुँह तक नहीं धोए हैं? ऐसा क्यों ?
मुझे भी कोई जवाब नहीं सूझता है तो बाथरूम जा फ्रेश इरेश हो जाता हूं। पता नहीं किस मंत्र से वो तब तक ब्रेकफास्ट भी बना डालती हैं और टेबल पर सजा भी देती हैं। आदेशनुमा अनुरोध भी करती हैं कि नाश्ता कर लीजिए।
मुझे लगता है अलादीन अपना जिन्न मेरे ही घर ही छोड़ गया है!? पलक झपकते हाजिर। हुकुम हो आका! परेशान हो गया हूं।
अब देखिए नाश्ते में रोटी, तरकारी, सलाद, चटनी, दही आदि है। वह खाते वक्त सामने बैठ ऐसे निगरानी करती रहती हैं मानो मैं नीट का टेस्ट दे रहा हूं? अय्ये जी, ई काहे नहीं खा रहे हैं, इसमें बहुत विटामिन होता है ? रोटी को दही के साथ भी खाइए न , एकदम ताजा दही है। और खीरा तीतुआ नहीं न है? मने पी एच डी का वाइवा चल रहा हो!
एक भी रोटी छोड़िएगा नहीं , अन्नपूर्णा हैं अन्नपूर्णा।
कभी कभी तो यह भी जिद करती है कि एक रोटी रसोई में बची हुई है उसको भी खा लीजिए, बर्बाद नहीं होगी। अरे यार , मेरा पेट पेट है कि भट्ठी है ? कितना खाना खाएं?
हां , खाया पिया देह तो दूर से ही दिखाई दे रहा है! हवा जोर से बहे तो उड़ जाइएगा।
मने तंग आ गए हैं। लगता है किसी नवोदय विद्यालय के हॉस्टल में हैं और पत्नी नहीं किसी वार्डन से पाला पड़ा हुआ है !
मन करता है किसी दिन झोला उठाऊं और निकल चलूं ! एकदम्मे तंग कर दी है। पर पी एंड एम मॉल से जितना झोला ओला आया था , सब को आलमारी में बंद कर के रखी हुई है। अब ट्रॉली ले कर तो निकल नहीं सकता हूं? फकीर को शोभेगा भी नहीं !
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© डॉ शंभु कुमार सिंह
पटना
22 अगस्त, 24
(फोटो दो साल पूर्व गुडगांव यात्रा की है। )