आज #चाय दिवस है !
चाय हमारी संस्कृति में रच बस गयी है। अब कोई भी ऐसा पारिवारिक या सामाजिक अनुष्ठान नहीं होता जिसमें चाय नहीं हो ! बल्कि कहीं कहीं तो खुद चाय पीना एक अनुष्ठान होता है।
पूर्व के देश जैसे जापान या फिर चीन आदि में चाय बनाना और पीना एक आनुष्ठानिक क्रिया है। पूरे तामझाम के साथ चाय पीना और पिलाना।
हमारे यहाँ मिट्टी के कुल्हड़ में लोग चाय पीते थे वरन अब भी पीते हैं। चीनी मिट्टी के कप तो आम है। कप के साथ प्लेट भी । हम लोग बचपन में चाय तो नहीं पीते थे क्योंकि बच्चे थे पर स्कूल की परीक्षा में कप प्लेट की तस्वीर जरूर बनाते थे।
चीनी मिट्टी के कप प्लेट के अलावा अभी कागज के कप भी प्रचलन में है। प्लास्टिक के कप भी आम हो गए हैं। कुछ दिनों के लिए स्टील के कप का क्रेज पूरा रहा। अब लगभग नजर नहीं आता।जबकि वह धोने में फूटता नहीं था।
चाय को हम लोग लिप्टन या ब्रुक बॉन्ड का ही प्रयाय मानते थे पर बड़े होने पर बहुत सारी कम्पनियों के चाय से रूबरू हुए। भारत में नीलगिरी की चाय फेमस है पर दार्जिलिंग की चाय का कोई जोड़ नहीं। हैप्पी वैली की चाय भी फेमस है। पूर्णिया में अभी भी लोपचू की चाय का बोलबाला है।
सिक्किम में भी कुछ किस्मों की चाय का बड़ा ही नाम है। अपना बिहार भी चाय उत्पादक राज्य की सूची में आ गया है। किशनगंज में अब चाय की अच्छी खेती होती है। कहने को लोग पूर्णिया में भी चाय की खेती की संभावना को तलाश रहे हैं।
एक जमाना था जब चाय पीने हेतु प्रचार करने की आवश्यकता होती थी। अब तो हर जिह्वा को चाय का चस्का लगा हुआ है। मैं चाय नहीं पीता पर इस बार कोरोना काल में ग्रीन टी पीना शुरू किया। इसमें भी कई तरह के ब्लेंड और फ्लेवर आते हैं। ऑर्गेनिक भी ।
चाय मीडिया की भी खूब सुर्खियां बटोरती रही है। खुद हमारे प्रधानमंत्री जी कभी चाय बेचते थे अब सबको पानी पिलाये हुए हैं। अभी पटना में एक ग्रेजुएट चाय वाली अवतरित हुई थी। उसकी देखादेखी एक आत्मनिर्भर चाय वाली भी पैदा हो गयी। मैं सोचता हूँ एक दुकान मैं भी खोल दूँ, डॉक्टर शंभु की चाह ! हाँ ,गांव में अभी भी चाय को चाह बोलते हैं। मैं खुद एक दुकानवाली से ‘लिप्टन की चाह’ कहने पर ठुकाई से बाल बाल बचा हूँ। तो चाय ही अब बोलता हूँ।
मैं चाय ठीक ठाक बना लेता हूँ। एक बार अपनी पड़ोसन प्रोफेसर को चाय पर आमंत्रित किया और खुद चाय बना कर पिलाई। बाद में अब बुलाता हूँ तो कन्नी काट जाती है ! कहीं चाय ठीक नहीं बनी थी क्या ?
अब चाय नहीं पीने वाले से इससे ज्यादा क्या लिखवाना चाहते हैं ? कम लिखा ज्यादा चाय पीना !
मैं चूंकि चाय पीता नहीं पर कप जरूर रखता हूँ। कभी आइए मेरे यहाँ तो ऐसे ही कप में चाय पिलाऊंगा।
चाय पत्ती और चीनी लेते आइयेगा। पानी की दिक्कत नहीं है!
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© डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना
21 मई ,23
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