पत्नी को काबू में रखने के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र
दरअसल मैं अपने इस आलेख के शीर्षक से इत्तेफाक नहीं रख रहा हूं तो आगे आलेख क्या लिखूं? काबू की जगह वश लिखा जा सकता है। या कुछ और। तो शीर्षक पर बहुत ही गहन चिंतन कर रहा हूं। कोई सटीक शीर्षक मिल ही जायेगा । तब तक आलेख लिखता हूं। लेखन एक तरह से सृजन का कार्य है। तो सृजन की प्रसव वेदना शुरू है। अच्छा है कि आलेख लिख ही दूं पहले , शीर्षक को आगे देखूंगा।
वैसे भी मेरी आदत है आलेख लिखो , शीर्षक बाद में लिखना। जैसे बहुत पहले जब टेप वाला ऑडियो कैसेट मिलता था तो मैं उसे खरीद लेता था। यह अलग बात है कि कभी टेप रिकॉर्डर नहीं खरीदा। करीब पांच सौ कैसेट खरीदने के बाद टेप रिकॉर्डर कम प्लेयर खरीदने गया तो मालूम हुआ कि जमाना डी वी डी का आ गया है। मन बहुत ही उदास हो गया था। तो आज मैं कोई सूटेबल शीर्षक भी खोज ही लूंगा। ताकि मन उदास न हो!तब तक आईए मूल पाठ का पठन करें।
पत्नी जब पति गृह आने लगती है तो उसे सगे संबंधी बोलते हैं , यह तो गऊ है गऊ। एकदम सीधी गऊ ,तो ऐसी स्थिति में क्या काबू करना ? पर किसी किसी को पत्नी बड़ी मरखंडी मिलती है। उसको काबू कैसे किया जाए यह जानना लाजिमी है। नागिन टाइप पत्नी को भी वश में रखने हेतु बीन बजाने की जरुरत नहीं पड़ती बल्कि कुछ अलग किस्म की जुगत भिड़ानी पड़ती है। इसकी विशद चर्चा मैं यहां करुंगा। अतः जो पत्नी को वश में करने को इच्छुक हों वो कृपया जरूर इसका पठन पाठन करें और मनन भी।
एक बात और , कोई किसी को क्यों वश में करेगा या रखेगा ? क्योंकि यह सामंती मानसिकता है। प्रेम तो समर्पण है काबू करना नहीं। महिलावादी लोगों केलिए भी काबू वाली बात आपत्तिजनक है।तो मैं धर्मसंकट में हूं कि शीर्षक की कौन कहे , आलेख भी लिखुं या नहीं लिखूं , बड़े संशय में हूं। अब सब बड़की भउजी की छोटकी बहिन, फुलवा की तरह भोली भाली तो नहीं ही है कि मेरे गुण अवगुण का ध्यान न धरे। “प्रिय, मोरे अवगुण चित न धरो!”
लफुआ भईया अपनी पत्नी से बहुत ही त्रस्त रहते थे। वो पत्नी को काबू में करने की हर एक जुगत में रहते थे। फिर मैंने चितकोंहड़ा पुल के बगल में रहते बाबा बंगाली, गोल्ड मेडलिस्ट से मिलने की राय दी। उनके बारे में मैं राजा बाजार पिलर नम्बर तेईस पर चूना से लिखा हुआ पढ़ा था। दो तीन टोटो रिक्शा में भी लगे इश्तेहार में पढ़ा था कि बाबा बंगाली गोल्ड मेडलिस्ट सब तरह की परेशानी दूर करते हैं। चार्ज भी लिखा हुआ था। फकीरी चार्ज एक सौ रुपए। वी आई पी चार्ज पांच सौ रुपए। राजशाही चार्ज एक हज़ार रुपए और सुपर बादशाही चार्ज पांच हजार रुपए। लफुआ भईया को पैसे की क्या कमी, कमी थी तो शांति की। तो चट सुपर बादशाही फी देने को तैयार हो गए।
बाबा बंगाली गोल्ड मेडलिस्ट आंख में अंजन लगाए काले कपड़े पहने मिले। दो तीन मुंड, मोरपंख, झाड़ू, दारू आदि तमाम लटके झटके के साथ हम लोगों के समक्ष अवतरित हुए। अकडम बकडम मंत्र पढ़ बोले बेटा , “मैं मारण, तारण , उच्चाटन, वशीकरण आदि सभी करने का गोल्ड मेडलिस्ट हूं और तुम्हारी हर परेशानी को दूर करने की गारंटी देता हूं।” यह सुन लफुआ भईया इमोशनल हो गए। इमोशनल तो मैं भी ही गया था। इतना बडा कुसंत, सॉरी , संत बाबा मैंने नहीं देखा था। तो उनकी बात मानने को लफुआ भईया को तैयार किया। बाबा बंगाली गोल्ड मेडलिस्ट ने केवल इतना कहा कि शेर के तीन बाल तोड़ कर ले आओ। उससे बनी ताबीज पहनोगे तो पत्नी ऐसी वश में आएगी कि अगले जनम तक साथ नहीं छोड़ेगी , वश में ही रहेगी।
लफुआ भईया को इसी जनम की चिंता थी। वो कहते हैं कि अगले जनम कोई क्या हो, कौन जानता है ? वैसे एक राज की बात वो बताए कि अगले जनम वह कुत्ता योनि में पैदा होंगे तो क्या चिंता करना ! यह बात उनको एक बहुत बड़े नजूमी ने बताया था। खैर , शेर के तीन बाल खुद तोड़ने के लिए एक अदद शेर तो चाहिए ही था। उसके लिए गुजरात के गिर या पटना के संजय गांधी जू में शेर को पटाना था। पटने पटाने में लफुआ भईया माहिर हैं। क्या शेर , क्या ….! तो करीब छः महीने के प्रयास के बाद शेर उनको देखते ही दुम हिलाने लगा। मौका पा लफुआ भईया उसकी पूंछ से तीन बाल तोड़ लिए।
शेर का बाल लेकर हमलोग उसी दिन बाबा बंगाली गोल्ड मेडलिस्ट की शरण में गए। शेर के बालों को सूंघ, चाट , देख पूरी तरह से आश्वस्त आश्चर्यमिश्रित हो बाबा बंगाली गोल्ड मेडलिस्ट बोले , “बेटे लफुआ , तुम तो महान हो ! अब शेर का बाल कैसे लाए , यह राज बताओ ?” लफुआ भईया पूरी कहानी बाबा बंगाली गोल्ड मेडलिस्ट को बताए। वह तरीका भी बताए कि कैसे शेर को काबू किए! यह बात सुन बाबा बंगाली गोल्ड मेडलिस्ट बोले , “बेटा लफुआ , तुम्हारी पत्नी शेर से भी ज्यादा खूंखार है क्या?” लफुआ भईया बोले , “नहीं बाबा।” यह सुन बाबा बंगाली गोल्ड मेडलिस्ट बोले , “जाओ बेटा , तुमको रहस्य का ज्ञान हो चुका है। जब तुम शेर को काबू कर सकते हो तो पत्नी को क्यों नहीं ? जाओ बच्चा , शेर वाला फार्मूला ही आजमाओ। “
आज तक लफुआ भईया की पत्नी उनके काबू में हैं। बिना खर्च किए मुझे भी ज्ञान मिल गया। तो आज इस वाकये को जकरबर्ग भईया के इस पटल पर लिख दिया ताकि सनद रहे। लोग लाभान्वित होता रहे!
जय हो!
🙏🙏
© डॉ शंभु कुमार सिंह
6 अगस्त, 23
पटना
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