सुप्रीम कोर्ट में कई तरह के मामलों पर सुनवाई होती है। आज का समाचार है कि सेम सेक्स मैरिज पर सुनवाई होगी।
पहले तो जानिए सेम सेक्स है क्या ?
यह सेम “शेम” नहीं है बल्कि “समान” के रूप में यहां प्रयुक्त है। यानि समान सेक्स में शादी। शेम यानि शर्म की तो बात ही नहीं कीजिये।
जैसा कि सभी जानते हैं कि मानव जैसा घृणित जीव कोई नहीं है। प्रकृति ने स्त्री पुरुष बनाया है। दोनों के मिलन से ही पूर्णता की प्राप्ति होती है।
प्रकृति ने संभोग या सहवास का जो मनोविज्ञान या शरीर क्रिया विज्ञान रचा है उसे जरा गौर से देखिए। देखिए ही नहीं उस पर सोचिए भी। यह ख़ुद में पूर्ण है। त्रुटिहीन।
सहवास पूर्व शारीरिक और मानसिक बदलाव पर ध्यान दीजिए। स्त्री अंग लुब्रिकेटेड हो जाता है , पुरुष अंग में तनाव आ जाता है। और भी कई एक रासायनिक, मानसिक, बायोलॉजिकल बदलाव होने लगते हैं। कामक्रिया प्रकृति ने हमें उपहार में दिया है। इसके मूल में मानवों का श्रृष्टि की रचना में सहभागिता सुनिश्चित करना है। इसे आनंद से भी जोड़ दिया गया है ताकि मानव इससे भागे नहीं । नहीं तो यह एक ऐसा जीव है जिसको कुछ भी सृजन करने को कहा जाय, वह तब तक उस तरफ़ मुखातिव नहीं होगा जबतक कि उसे कोई लोभ नज़र नहीं आए। है ही बहुत स्वार्थी।
अब इस प्रकृति प्रदत्त विधान को तोड़ने हेतु कुछ लोग उद्धत हैं। वो सेम सेक्स मैरिज एक्ट की मांग कर रहे हैं। पहले तो कहूंगा यह पूरी तरह से अप्राकृतिक , अनैतिक, अवैज्ञानिक और अस्वास्थ्यकर है। फिर भी नहीं मान रहे हो तो करो। कौन रोक रहा है?
कानून की संगत धारा को भी कुछ दिन पूर्व शिथिल या शून्य किया जा चुका है। अब क्या दिक्कत है ?
पर ऐसे बौराए लोगों को अब समान सेक्स में शादी भी करनी है और उसे कानूनी जामा भी पहनाना है। भई ऐसा क्यों? अप्राकृतिक कृत कर रहे हो तो कोई दिक्कत नहीं फिर कानूनी की क्या जरूरत है? कानूनी नहीं होने पर मजा कुछ कम हो जाता है क्या?
इस शादी से बच्चे भी पैदा नहीं होने हैं। तो क्या दिक्कत है , लो मजा!
अब ऐसा ही ट्रेंड रहा तो कुछ दिन में देखिएगा कोई जानवरों से शादी करने और उसे मान्यता दिलाने को न्यायालय चला जाएगा? कोई बकरी से शादी कर रहा है तो कोई कुत्ते से। कोई गधे से। कुछ दिन पहले किसी लड़की ने ख़ुद से ही शादी करने का अद्भुत ड्रामा की।
तो यह सब इस ग्रह के सबसे मूर्ख और धूर्त प्राणी के चोंचले हैं। पतन के रास्ते पर चलने का उपक्रम ! घातक, शर्मनाक और पूरी तरह से सभ्य समाज हेतु अस्वीकार्य है यह !
अब माननीय सुप्रीम कोर्ट जो निर्णय करे ?
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डॉ. शंभु कुमार सिंह
पूर्णिया
19 अप्रैल, 23