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जाति और अंतरजातीय विवाह

by Dr Shambhu Kumar Singh

अंतरजातीय विवाह और जाति विमुक्ति

कल एक बहुत ही प्रगतिशील मित्र मिल गए। पूरा गुस्साए हुए थे जाति व्यवस्था पर। बोले कि अंतरजातीय विवाह से जाति खत्म होगी ! मुझे तो उनकी बात बड़ी क्रांतिकारी लगी !मैं तो उनका बहुत बड़ा फैन हो गया ! पूछा कि लीजिये अंतरजातीय विवाह हो गया! अब बताइए जाति कैसे टूटती है?
क्या अंतरजातीय विवाह से पैदा बच्चे जाति विहीन पैदा होंगे ? अगर नहीं तो उनकी क्या जाति होगी ? मित्र माथा खुजलाने लगा! बोला बच्चे की जाति तो होगी ? मैं पूछा ,कौन जाति होगी तो कहा कि उसके पिता की जाति होगी ! तो फिर जाति कहाँ टूटी ? वह भाग खड़े हुए !
मुझे लगता है अंतरजातीय विवाह से जाति एक प्रतिशत भी नहीं टूटती ! बल्कि कभी कभी अप्रत्याशित रूप से और भी क्लिष्ट हो जाती है। फिर संविधान में भी कहीं जाति मुक्त व्यवस्था की बात नहीं देख रहे, कोई कानून नहीं। सरकारी फार्म आदि में धर्म ,जाति के कॉलम हैं। उसको नहीं भरियेगा तो सम्भवतः आवेदन रिजेक्ट भी हो जाये ? तो किसी भी हालत में जाति नहीं जा सकती !
अभी एक समाचार पढ़ा था कि कोई महिला हैं जिनकी जाति औपचारिक रूप से खत्म हो गयी है। अब वे किसी भी जाति में नहीं हैं। इससे जाति नहीं जाएगी। दरअसल जाति एक मानसिक स्थिति है। उसमें बदलाव की जरूरत है। यह जब बदल जाये तो आप सिंह हों या पासवान ,कोई फर्क नहीं पड़ता। अपनी जाति में शादी करें या किसी अन्य जाति में कोई फर्क नहीं पड़ता । जाति एक मनोवैज्ञानिक विषय है लोग उसे समाजशास्त्रीय विषय बनाये हुए हैं। यह विचार , व्यवहार से जुड़ी बात है। जाति एक दिमागी ग्रंथि है। यह खत्म हो जाये तो आपका कोई भी सरनेम हो कोई बात नहीं! तो इसको बदलिए। यह जो शिगूफ़ा अंतरजातीय विवाह से जाति को समाप्त करने का है न, वह केवल मूर्खता है।
मैं तो कई बार देखा हूँ कि अंतरजातीय विवाह और विषाद पैदा करते हैं। अब एक तथाकथित ऊँचे कुल की स्त्री की शादी एक तथाकथित निम्न कुल या जाति में हो जाती है। दोनों काफी पढ़े लिखे हैं।प्यार भी खूब करते हैं। पर दिमागी ग्रंथि तो वही है। सुनिये तथाकथित निम्न कुल के पति महोदय की बातचीत अपने मित्रों से , “वह इस बड़े फलाने जाति से है, रोज पैर दबवाता हूँ, भोगता जो हूँ वह तो हूँ ही , जूठा भी खिलाता हूँ।” अब बेचारी पत्नी तो प्यार में पागल है । इधर जाति का जिन्न तांडव कर रहा है। उसे पता ही नहीं !
तो सबसे बड़ी बात यह है कि जाति संबंधित कुंठाओं से मुक्त हों , चाहे जाति छोड़ें या नहीं या अंतरजातीय विवाह करें या नहीं !
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(लेखकीय कॉपीराइट सर्वाधिकार सुरक्षित)
©डॉ. शंभु कुमार सिंह
28 जून ,21
पटना
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