अथ खैनी कथा
गाँव में खूब खैनी खायी जाती है । क्या मर्द ,क्या औरत ! जब एक औरत को खैनी ठोकते मैं देखा तो देखता रह गया । उसकी सुंदरता नहीं ,औरतों का खैनी खाना मेरे लिये सातवां आश्चर्य था । अपने सुंदर ,गुलाबी ओठ को थोड़ा आगे खींच वह खैनीचूर्ण को मोती सी दंत पंक्तियों के आधार में समर्पित कर इस धरा पर इस भाव से थूकी, मानो कह रही हो ,सब मोह माया है । फिर वह गड़ासे से चारे की कुट्टी काटने लगी । मैं तो डर गया यह देख कारण कि जिस ऊर्जा से वह कुट्टी काटने लगी ,वह दृश्य बेहद डरावना था ।
गाँव में खैनी बहुत ही लोकप्रिय है । कुछ लोग इसे बी बी सी भी कहते हैं । वह ब्रिटेन वाला नहीं । शुद्ध सरईसा वाला । बिहारी वर्जिनिया ! बुद्धि बर्द्धक चूर्ण ! बुद्धि कितना बढ़ती हो ,मुझे नहीं मालूम क्योंकि जब मैं एक बार खाया तो पूरा दिमाग ही घूम गया था । फिर तो तौबा मेरे यार ! गाँव में दिशा मैदान जाने के पूर्व ,क्षमा करेंगे ,अब खुले में नहीं जाते पर शौचालय जाने के पूर्व लोग लोटा से पहले चुनौटी खोजते हैं । क्योंकि यह वह दिव्य चूर्ण है जो “कायम चूर्ण” से पहले से हमारे आसपास कायम है । जब लोग इसे ले शौचालय जाते हैं तो वहाँ से इस तरह प्रफ्फुलित आते हैं मानो रावलपिंडी जीत के आ रहे हों !
खैनी सच में सच्ची साम्यवादी है । क्या बड़ा , क्या छोटा ! सब बराबर ! सब एक समान ! सबके ओठ तृप्त और हाथ फैले हुए । खैनी भगवान बुद्ध के आने के पूर्व ही भिक्खु सम्प्रदाय की स्थापना कर चुकी थी । खैनी देहि ! भिक्षाम देहि ! हाथ पसरे हुए हैं । पर यहाँ दाता भी खुश , याचक भी खुश । समानता का भाव है । दोनों एक ही रस का पान कर रहे हैं , एक ही रंग के थूक रहे हैं , एक ही तरह की तृप्ति को प्राप्त कर रहे हैं । क्या एकात्म मानवतावाद है ! धन्य है !
खैनी कला का भी विकास करती है । आप जहाँ तहाँ थूक अमूर्त चित्रकारी कर सकते हैं । इस शस्य श्यामला धरा को धन्य कर सकते हैं । यत्र ,तत्र ,सर्वत्र थूक थाक कर अपने थूकम फ़ज़ीहती व्यक्तित्व का सौम्य प्रदर्शन कर सकते हैं । तो लटाइये , लगाइए और पाइए ।
पर ध्यान रखिये , छोटे भाई की नज़र आप पर है । बड़े भाई की मत पूछिए ! उन्हें तो खुद नज़र लग गयी है ! एक वक्त था उनकी खैनी बड़े बड़े आई ए एस ऑफिसर मलते थे । पर अब वो बात नहीं रही ! अब तो छोटे भाई जब खैनी का पावन कर ज्ञान की बात करते हैं तो मुझे ज्ञान भवन के बगल में बने सभ्यता द्वार के बुर्ज पर चढ़ माता गंगा की गोद में कूद जाने का मन करता है । पर पटना नगर निगम एवं हम सभी पटना वासियों का अद्भुत पर्यावरण प्रेम है कि माता गंगा पटना से दूर चली गयी हैं और इधर तो ताकती भी नहीं तो मैं इस सभ्यता द्वार से कूदने के असभ्य कृत्य से बच जाता हूँ !
(आगे भी जारी , आज इतना ही )
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डॉ शंभु कुमार सिंह
पटना
9 जून , 2018
22:25 pm