गिलहरी और उसके बच्चे !
गिलहरी बड़ी प्यारी सी होती है। फुदकती ,फलों को कुतरती , उछलती और फिर शोर मचाती ! यह शांत जीव नहीं है। यह कई एक प्रकार की होती है पर अपने पटना में वही जो सामान्य है!
हमारे एक मित्र हैं प्रशांत जी ! “प्रकृति मित्र” से भी जुड़े हुए हैं। उनके पटना आवास के आगे एक पीपल का पेड़ है। उस पर गिलहरियों का कुनबा ही बसा हुआ है। गिलहरी यानी लुक्खी ! प्रशांत जी और उनके भाई प्रभात जी ने यह निर्णय किया कि इन गिलहरियों केलिये एक सुंदर घोसला बने या घर हो पेड़ पर तो अपना एक पुराना पिट्ठू बैग पेड़ पर डाल दिया । गिलहरियों को भी यह बैग पसंद आया और एक नया घर बस गया। उनमें बच्चे भी जनमे।ये बच्चे बड़े प्यारे प्यारे पर उससे भी ज्यादा खुराफाती ! तो वे बैग में आराम से कई एक छेद कर दिए और उसी से अंदर बाहर आने जाने लगे,मानो स्कूल में दिए कोई टास्क को पूरा कर रहे हों! प्रशांत जी यह देख चिंतिंत हुए कि इस कार्य केलिये वे अपना बैग भले ही पुराना ही तो नहीं ही दिए थे? तो चिंतित से थे! जैसा कि होता है अपनी चिंता किसी बड़े बुजुर्ग से शेयर करने से निदान निकलता है तो वे दोनों भाई मुझसे ही बोले ! उनको भी मैं ही पूरे पटना में एकमात्र बुजुर्ग नजर आया ? खैर ,मैं क्या करता , पंडित विष्णुदेव शर्मा की तरह उनको कहानी सुनाया ,बल्कि एक सच्ची कहानी ही सुना डाली। कहा कि मेरे बाबूजी एक बार मुझे न्यूटन की एक कहानी सुनाए थे तो हे भोले बालक द्वय, आप दोनों भी उसी कहानी से कुछ बोध प्राप्त करें!
कथा इस प्रकार है , न्यूटन एक बिल्ली पाला था। तो न्यूटन ने बिल्ली केलिए एक घर बनाया और उसमें बिल्ली के आने जाने केलिये एक गेट भी बनाया। कुछ दिनों के बाद बिल्ली दो बच्चे दी। न्यूटन ने फिर बिल्लीघर में दो छोटे छोटे गेट बना दिये बच्चों के लिए। यह सब न्यूटन के पिता देख रहे थे, वे न्यूटन से बोले ,बेकार तुम इतने गेट बना डाले, इस बड़े गेट से ही तीनों निकल आते जाते, तुमको क्या दिक्कत थी! इस पर न्यूटन ने जवाब दिया कि अगर तीनों का मन एक साथ एक बार ही बाहर आने का करे तो क्या होगा ? तो इसीलिए तीन गेट बनाये गए हैं। अब न्यूटन के पिता किंकर्तव्यविमूढ़ थे!
इस कथा को सुन समझ प्रशांत जी दोनों भाइयों का मन हल्का हुआ कि इन गिलहरियों ने भी इतने छेद व्यर्थ नहीं बनाए हैं। उनका बैग देना व्यर्थ नहीं गया।
यह सब गहन सोचते प्रशांत जी उस पीपल को देख ही रहे थे कि एक छोटी गिलहरी आयी और उनकी थाली से एक रोटी ले भागी। अब प्रशांत जी के पिताजी की बारी थी बोलने की , ए सोनू बाबू ,यह क्या सोचते रहते हैं कि थाली से भी रोटी गिलहरी ले जाये और आपको पता नहीं चलता ?
अब तो यह सोनू बाबू ही बताएं कि क्या सोचते रहते हैं?
वैसे हम आपको यह बता दे कि सोनूबाबू प्रशांत जी का घरउआ नाम है और बुलबुल प्रभात जी का !
बुलबुल अभी रोटी बेल रहे हैं!
अब कथा समाप्त करने की मैं आज्ञा चाहता हूँ !
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
28 मई ,21
पटना
Prakriti Mitra
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