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कहानी -3

by Dr Shambhu Kumar Singh

चल खुसरो……..!

बड़े वाले जीजा जी के साथी हैं अविनाश वर्मा । रिटायर्ड चीफ इंजीनियर! उनके साथ ही पढ़े और साथ ही नौकरी किये। मुझसे बहुत बड़े तो होंगे ही!पर कभी जब हमारे यहाँ आते तो मुझे गालियों की बौछार करते हुए, जाते भी तो गालियों संग ही। हँसमुख, मिलनसार। पत्नी भी पढ़ी लिखी। एक स्कूल में टीचर। वर्मा जी पढ़ाई और पेशे से इंजीनियर पर दिल से कवि ,बेहद भावुक व्यक्ति!
कायस्थों में जैसा कि चलन है वे नौकरीपेशा ही होते हैं ज्यादातर।उनकी जमींदारी लगभग नहीं होती । पर वर्मा जी आरा के एक बहुत बड़े जमींदार परिवार से आते थे। करीब तीस एकड़ जमीन आरा में स्टेशन के बगल में अभी भी। करोडों की संपत्ति।छोटा परिवार! उनको तीन बेटियां हुईं। मीतू, नीतू और शीलू। आरती वर्मा यानी अविनाश वर्मा की पत्नी की इच्छा थी कि एक बेटा भी हो जाता। बंश चलाने के लिए बेटा तो चाहिए ही ,उनकी यही इच्छा थी।
” एक बेटा हो जाता तो हमलोगों का जीवन सफल हो जाता!”आरती कभी कभी बेहद उदास हो जाती।
“क्यों ,अभी क्या असफल लगता है?” अविनाश बोलते।
“नहीं, नहीं। एक बेटा हो जाता तो बुढ़ापे का एक सहारा हो जाता।” आरती अपनी बात को कुछ तर्कसंगत करने की कोशिश करती!
तो वर्मा जी भी पत्नी की बात पर कभी कभी सोचने लग जाते। पर अपने हाथ में तो बेटा है नहीं कि जब चाहा हो गया। कोई बाजार से खरीदना भी है नहीं कि गए और ले आये।
पत्नी बोलती, “अल्ट्रसाउंड करा लिया करेंगे।’ इस बात पर बहुत दुखी होते वर्मा जी और पत्नी पर नाराज भी हो जाते।
” यह भी कोई पुत्र सुख की चाहत है कि बेटियों की भ्रूणहत्या कर बेटा पैदा किया जाए? यह पाप मुझसे नहीं होगा।” और गुस्सा में पत्नी से कई कई दिनों तक नहीं बोलते।
पत्नी भी क्या करती? उसे भी लगता कि इस तरह बेटा पैदा कर क्या सुख प्राप्त करना? तो वह भी चुप हो जाती पर दिल में एक हूक तो उठती ही रहती थी उनको। तीनों बेटियां पढ़ाई लिखाई में शानदार। दिखने में खूबसूरत। सलीकेदार भी। उन सबों की बड़ाई दुश्मन भी करे। कोई अवगुण नहीं। समय पर सबकी शादियां अच्छे घरों में हो गयी। सभी खुशहाल। बड़ी वाली मीतू अमेरिका में। वह अपने पति के साथ ही न्यूयॉर्क में सेटल हो गयी थी। दूसरी बेटी नीतू गुरुग्राम में टी सी एल में मिडल क्लास मैनेजर। पति वहीं फ्लिपकार्ट में जॉब करता था। तीसरी बेटी भी पति संग सिंगापुर । वह अभी कोई नौकरी नहीं कर रही है। सभी सुखी और सेटल। कोई परेशानी नहीं। वर्मा जी के भाग्य से सभी लोग जलते भी थे। अहा कितना सुंदर परिवार!
वर्मा जी 2005 में रिटायर कर गए। पत्नी भी 2008 में। अब पटना में दोनों पति पत्नी रहने लगे। कभी मन हुआ तो किसी बेटी के यहाँ चले जाते। अभी कुछ बरस पहले अमेरिका भी गए। मीतू बहुत आग्रह कर बुलाई थी। गए भी। अमेरिका बहुत ही भव्य लगा उनको। पर वहाँ किसी को किसी से बात करने की फुरसत नहीं। पड़ोस में भी कोई बूढ़ा नहीं जो बात करे। बल्कि वहाँ के लोग आश्चर्य करे कि ये लोग घर में ही रहते हैं ? क्योंकि वहाँ सभी के माता पिता ओल्ड एज होम में रखते हैं। मदर्स डे ,फादर्स डे पर केक, मिठाई , कपड़ा आदि ले कर उनके बच्चे मिलने जाते। माता पिता भी खुश। उनका केयर ट्रेंड नर्स करे। कोई दिक्कत नहीं। यह देख वर्मा जी घबरा ही गए।
“ऐसे में तो मर ही जाएं हमलोग” ,वो सोचते।
एकदिन तो गजब हो गया जब किसी ने कहा मीतू से कि एक शानदार ओल्ड एज होम नजदीक ही है पापा मम्मी को वहाँ रख दो ,इन सबों को मन भी लगेगा। वर्मा जी को बहुत ही बुरी लगी यह बात। जल्दी जल्दी कर अमेरिका से भागे। उनको उससे अच्छा पटना ही लगा। सुबह उठते । दोनों जने चल देते ईको पार्क। एक घण्टा टहलते। हम उम्र बहुत मित्र बन गए थे। मिल कुछ देर बतियाते और फिर साथ ही नुक्कड़ पर चाय भी पीते। खूब मजे थे उनके। मस्ती भरी जिंदगी। बुढ़ऊ वैसे ही जिंदादिल। जीजा जी के मित्र होने के बहाने अभी भी उसी तरह गरियाते। क्या फर्राटेदार गाली बकते हैं वर्मा जी! आरती दी गुस्सा भी जाती। बोलती ,”मेरे भाई को तंग कर देते हैं”। पर वर्मा जी ,बहुत बड़े थेथर हैं। गाली की आदत नहीं छूटी। मैं भी उनकी बात का बुरा नहीं मानता।
जिंदगी शानदार चल रही थी उनकी। पर पिछले बरस एक दुर्घटना हो गयी। अब दुर्घटना पर किसका कंट्रोल? तो फिसल गयीं बाथरूम में आरती दीदी। कूल्हे की हड्डी टूट गयी। दाहिने हाथ की कलाई की हड्डी भी। गुरुग्राम वाली बेटी तो दूसरे दिन ही चली आयी। कुछ दिनों बाद अमेरिका और सिंगापुर वाली बेटियां भी। सभी ने बेहतर चिकित्सा की व्यवस्था की और इनके थोड़ा चलने फिरने पर विदेश वाली बेटियां चली गयीं अपने अपने देश। बच गयी नीतू। गुरुग्राम वाली। उसकी भी छुट्टी खत्म हो रही थी। तो उसे भी गुरुग्राम जाने की जल्दी थी। पर पापा मम्मी को अकेले यहाँ पटना में छोड़ जाना संभव नहीं लगता था उसे। “क्या करे वह?”
इधर वर्मा जी किसी बेटी के यहाँ जा रहने के बिल्कुल खिलाफ। वहाँ शहर के फ्लैट भी तीन रूम के जिसमें उनको दम घुटता था। तो गर्दनीबाग का उनका यह घर ही उनकेलिए मन माफिक था। इसे वे छोड़ना नहीं चाहते थे। कुछ फूल के पौधे भी लगाए हुए थे जिनमें दोनों उलझे रहते।
पर बेटी मान मनुहार कर उन्हें गुरुग्राम ले जाने को उतावली। इन्हें ले जाने का एक कारण यह भी था कि उसकी मम्मी जो पहले सब काम खुद कर लेती थी अब वह दुर्घटना के बाद सही ढंग से नहीं कर पाती थी। चाय भी बड़ी मुश्किल से बना पाती थी। सबसे बड़ी बात यह कि वर्मा जी भूलने की बीमारी के शिकार हो गए थे। कभी कभी एकदम कोई बात भूल जाते! तो उनको भी अकेले पटना में छोड़ना संभव नहीं। एक बार तो सब्जी लाने निकले बाहर और गर्दनीबाग आने के बदले चले गए बोरिंग रोड। वह तो जब उनकी याद लौटी तो घर लौट आये पर तब तक घर में कोहराम मचवा दिए थे। तो बहुत राय विचार के बाद नीतू अपने माता पिता को साथ ही गुरुग्राम ले गयी।
नीतू का गुरुग्राम का फ्लैट तीन बेड रूम का। उसके सास ससुर भी साथ रहते थे वहाँ। तो किसी तरह इनको एडजस्ट किया गया। बॉलकनी में घेर कर इनका एक रहने का रूम बनाया गया। बाथरूम हॉल में। रात में जाने में दिक्कत होती पर उनका मन लगने लगा। बेटी खाना बना ऑफिस चली जाती।छोटी नातिन से खूब बात करते। लगा गुरुग्राम आ सही ही किये! एक मेड आती और सभी को खाना आदि दे देती। वर्मा जी की समधी समधिन से भी खूब बात होती। कभी मन किया तो टी वी देखिये नहीं तो आराम कीजिये।इस तरह कुछ दिन तो अच्छा चला वहाँ ।पर बाद में चिकचिक होने लगी। कभी दामाद नाराज लगे तो कभी समधी समधिन मुँह लटकाए मिलते। कभी कभी कोई दो दो दिन नहीं बोलता। वर्मा जी दोनों जने का तो दम ही घुटने लगा। नीचे जाते भी तो कितने देर रहते? बड़ी मुश्किल हो गयी थी उन सबकी! बेटी तो धर्मसंकट में फंसी हुई थी। इधर बूढ़े माँ बाप उधर पति ,सास ,ससुर! बहुत कठिनाई से संतुलन बिठाना पड़ता। कोई विशेष चीज मम्मी पापा को देना संभव नहीं। जबकि पेंशन से पच्चीस हजार प्रति माह निकाल वर्मा जी अपनी बेटी को दे देते थे। पर स्थिति यह कि कोई फरमाइश नहीं कर सकते थे। कुछ बोलते तो उनके समधी समधिन कान लगा सुनने लगते। बल्कि एकदिन तो कह भी दिए ,”समधी साहब , और बेटियों को भी सेवा का मौका देना चाहिए। आखिर उनको भी माता पिता की सेवा करने का पुण्य मिलना चाहिए।” वर्मा जी कोई बक्लोल नहीं थे। अपने यूनिवर्सिटी के टॉपर थे। सब बात समझते थे। पर अब करें तो क्या करें उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था?
वर्मा जी जब आज सोने जा रहे थे तो अपनी पत्नी से बोले, “आरती ,सोचते हैं एक बार पटना चल जाते। वहाँ का घर भी कितना उदास होगा?”
आरती क्या बोलती। सब बात समझ रही थी।
दोनों सोचते, “काश एक बेटा होता तो यह समधी समधिन का झंझट नहीं होता। कोई टोकता भी नहीं कि बेटी के यहाँ रहते हैं! वह जैसे रखता ,रह लेते!कोई कहता तो नहीं कि समधी, दूसरे बच्चों को भी सेवा का, पुण्य कमाने का मौका देना चाहिए।”
बड़े दुखी लगे वर्मा जी। पत्नी उनके सिर में तेल मालिस कर सो गई। कमजोर हाथ से ही वर्मा जी का सिर सहला दी कि शायद नींद आ जाये। पर इधर उसे ही नींद आ गयी। रात तीन बजे आरती की नींद टूटी तो देखी वर्मा जी की आंख खुली हुई है। पहले तो डर गई आरती। वर्मा जी की आंखें एकटक छत क्यों निहार रही है? वह फिर उनके चेहरे की सहलाने लगती है। उसे लगा कि वर्मा जी का चेहरा भींगा हुआ है। वह चौंक कर बोलती है ,”आप रो रहे हैं क्या अविनाश?”
वर्मा जी इनकार में सिर हिलाते हैं और उसके सीने पर सिर रख सिसकने लगते हैं।
सुबह वर्मा जी बहुत ही खुश नजर आए। उन्होंने बेटी ,दामाद और समधी, समधिन को कहा , ” यहाँ जगह की कमी है , आप सबों को भी दिक्कत होती होगी तो हमने बगल वाले ही अपार्टमेंट में एक फ्लैट ले लिया है। तो आपलोगों की इजाजत हो तो हमलोग अगले महीने उसमें शिफ्ट कर जाएं?”
बेटी तो कुछ नहीं बोली पर समधी साहब ने कहा , “ऐसी क्या बात हो गयी समधी साहब? हम लोग तो मजे में ही रह रहे थे? पर जैसे आपकी इच्छा ?!”
अगले महीने वर्मा जी अपने नए फ्लैट में शिफ्ट कर गए। बेटी की आंखों में आँसू थे। छोटी नातिन रो रही थी , “नाना नानी, हमलोगों को छोड़ कर नहीं जाओ! नानू, नहीं जाओ!”

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Story

©Dr.Shambhu Kumar Singh
3 April, 21
Patna
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