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बहारों फूल बरसाओ !

by Dr Shambhu Kumar Singh

गाड़ी वाला आया देखो कचरा निकाल

अभी अभी कचरा को कचरा गाड़ी में डाल कर आया हूँ। हरे वाले डब्बे में डाला। अपने पटना की जो नगर पालिका है कुछ न कुछ सांगीतिक करती ही रहती है। कहीं कहीं सांगीतिक के अलावा ड्रामैटिक भी कर डालती है। जैसे परसों ही लफुआ भइया बीच सड़क मेन होल में गिर गए फिर जो ड्रामा हुआ वह कोनो टी वी पर नहीं देख सकते हैं आप ! एकता कपूर का बाप भी उस तरह के डिरामा नहीं कर सकता है। बड़की भउजी नगरपालिका को भर मन गाली दी , मैं कुछ नहीं बोला । काहे को बोलेंगे? दरअसल मेरे मन की ही दबी भावना को बड़की भउजी अभिव्यक्त कर रही थी।
अब इसी मार्च के पहले सप्ताह में बड़की भउजी की छोटकी बहिन फुलवा की सखी रमकलिया की शादी थी। फुलवा बोली मुझे ,अय्ये जिज्जा ,तू तो सांस्कृतिक ,असांस्कृतिक सब काम में माहिर हतअ त रमकलिया के शादी में दूरा लगे बखत बैंड बाजा डी जे वाला तय कर देहु। स्पिकमैके के स्टेट कोऑर्डिनेटर भी हैं तो यह आजा बाजा करे के तोरे हौ।
अब मेरा तो दिमाग चकरा गया! क्या करें पर यह फुलवा का चूंकि अनुरोधनुमा आदेश था तो बहुत कोशिश करने पर करबिगहिया में स्टेशन के बगल में ही एगो डी जे कम्पनी को देखे तो उसी को तय कर लिए। मास्टर अफलातून आलम को बयाना का पांच हजार भी दे दिया।
ठीक समय पर बारात आयी। दुरा लगा। बैंड बाजा बजा। क्या शानदार बजाया मास्टर अफलातून आलम ने! दरअसल अफ़लातून आलम मेरे एक मित्र शफीक भाई का मामूजात भाई भी निकला तो मुझे भी बड़ी खुशी हो रही थी। बिहार में शराबबंदी के बावजूद कुछ लड़के नागिन डांस भी कर रहे थे। अब कौन जा के मुँह सूँघे? हम त खुदे मास्क लगाए हुए थे। अजुध्या जादो कक्का भी हल्का हल्का झूम रहे थे इस डी जे के संगीत पर। एकदम हिला दिया था साला। लड़का सब क्या लड़की सब भी नागिन जैसी लहरा रही थी। हालांकि वह सब केवल स्प्राइट ही चखी थी।
माहौल एकदम संगीतमय हो गया था। सभी लोग झूम रहे थे। दुल्हा दुल्हन एक दूसरे के गले में जयमाला डाल चुके थे और राजसिंहासन जैसी कुर्सियों पर बैठ एक दूसरे को ललचाई नजरों से देख रहे थे। रमकलिया सच्चे कच्ची कली कचनार की लग रही थी। माहौल में संगीत ,रोमांस ,कामुकता और छिछोरापन छा चुका था। बेटर स्टार्टर को ले घूम रहे थे। मैं टांगों पर ज्यादा ध्यान देता हूँ चाहे मुर्गी की हो या जिसकी हो ! तभी एक बेटर को देखा चिकेन पकौड़ा ले के आ रहा था। टूट पड़ा मैं उधर और एगो लेग पीस पर कब्जा कर सका। बहुत ही सुकून मिला इस सफलता में। हालांकि इस टांगों की छीनाझपटी में मेरे नाजुक टांग पर किसी भारी भरकम व्यक्ति के गिर जाने के कारण दर्द भी उखड़ चुका था। स्टार्टर लूट की इस छीनाझपटी को देख ही रहा था कि देखा बहुत जोरों से दौड़ा दौड़ी शुरू हो गयी है। मैं सोचा कि कोई बहुत ही टेस्टी स्टार्टर आइटम लेकर बेटर आ रहा होगा उसी के स्वागत में हम सब अलबलाये हुए होंगे पर कहानी दूसरी निकली। हुआ यह कि वहाँ बाहर डी जे डांस में किसी ने मास्टर अफ़लातून आलम को बोला कि कुछ नया बजाओ और पांच सौ का एगो नया नोट उसके पॉकेट में ठूंस दिया। आलम ने बजा दिया ,गाड़ी वाला आया ,देखो कचरा निकाल ! अरे कचरा निकाल ! पहले तो लोग सबको यह सामान्य सा लगा क्योंकि रोज रोज न सुनते हैं पर रात के दस बजे ई कोन गाड़ी वाला आया है,यह जानकारी लेने को अजुध्या जादो कक्का बाहर निकले! पर वहाँ तो डी जे आलम साहब मस्त मगन गाड़ी वाला आया देखो कचरा निकाल, बजा रहे थे। फिर जो घटित हुआ उसकी चर्चा कल्पना से परे नहीं है। अजुध्या जादो कक्का बमके हुए थे। हमहुँ सोचे कि एतना रात में ई म्युनिसिपल वाला कितना कर्मठ हो गया है कि कचरा लेने आ गया! पर कहा न बात वह नहीं थी। कुछ दूसरी ही थी।
आजो गए थे। मास्टर अफ़लातून आलम को देखने पी एम सी एच। हड्डी वार्ड ,बेड नम्बर 4! ठीक ही हैं। बोल रहे थे कि ,भइया खरमास के बाद अप्रैल के लगन में बाजा बजा पाएंगे न ? मुझे तो लगता है शायद नहीं क्योंकि प्लास्टरे कटने में ही अप्रैल निकल जायेगा पर भगवान ने चाहा तो यह भी संभव है कि सतुआनी के बाद लगन में वे बैंड बाजा बजा पाएंगे !
आमीन !
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
18 मार्च ,2021
पटना

www.voiceforchange.in
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(जो बजना चाहिए वो तो नीचे है!)
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