“काम” पर कुछ काम की बातें !
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हमारी भाषा और बोली में प्रयुक्त “काम” अंग्रेजी में कोई उपयुक्त पर्यायवाची शब्द नहीं रखता। वरन उसके हिसाब से “काम” बस सेक्स है। जबकि भारतीय विचार और दर्शन में “काम” एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह चार प्रालब्ध में से एक है। मोक्ष के समकक्ष “काम’ है। यह मशीनी दैहिक क्रिया नहीं है। यह एक शारीरिक अनुष्ठान के साथ आत्मिक आनंद भी निर्मित करता है।
हिंदी का शब्द “सहवास” या “संभोग” में प्रयुक्त ‘सह’ और ‘सम’ का विशेष अर्थ है । काम एक पक्षीय नहीं होता वरन इसमें दोनों की हिस्सेदारी समान है जबकि कुछ जगहों पर यह मात्र उपभोग का कार्य है और इसमें कोई एक उपभोक्ता और दूसरा मात्र पदार्थ है।
भारतीय संस्कृति में “काम” के देवता भी हैं ,कामदेव और देवी भी हैं ,रति! “काम” के मंदिर भी हैं। यहाँ “काम” को शक्ति और सृष्टि से जोड़ा गया है। भारतीय मिथकीय आख्यानों का गम्भीर अध्ययन हमें भारतीय संदर्भ में “काम” को सही ढ़ंग से समझने और निरूपित करने में मदद करता है। “काम” से जुड़े पर्व भी हैं हमारे यहाँ ,होली उनमें एक है। मदनोत्सव की अवधारणा भारतीय संस्कृति में ही संभव है।
लोकाचार ,आम व्यवहार में भी हमने “काम” को बड़े ही सुसंस्कृत ढ़ंग से स्थापित किया है। रिश्तों में आम हास परिहास को हम काम से भी जोड़े हैं जो सुंदर है। विवाह के अनुष्ठान को हम एक अलग फलक प्रदान किये हैं।
अब केवल सेक्स कहने से हम कुछ नहीं समझ पाएंगे। यह शब्द हमारी संस्कृति से निकला भी नहीं है। बाहरी संस्कृति में सेक्स मात्र दैहिक संबंध है। आनंद का कुछ क्षण भोगना। जैसे अन्य जीव जंतु करते हैं। अभी अभी एक महान फुटबॉल खिलाड़ी ने जब कहा कि उसके कितने बच्चे हैं वह उसे नहीं मालूम क्योंकि उसके अगणित स्त्रियों से सम्बंध रहे हैं। मतलब उनको जहाँ मौका मिला सेक्स का आनंद लिया। फिर स्त्री अपने रास्ते ,यह किसी और की खोज में ! मैं यह समाचार सुन सन्न हूँ कि क्या ऐसा भी हो सकता है? पर सत्य यह है कि ऐसे होते हैं। खुद हमारे एक सिने अभिनेता ने अपने बॉयोपिक में स्वीकारा भी कि उसके तीन सौ से ज्यादा स्त्रियों से सम्बंध रहे हैं। मतलब आप पुरुष नहीं रोबोट हैं।हमलोग तो निरीह ,नामर्द !
इन तथ्यों को देखता हूँ तो सोचता हूँ , इनमें और जानवरों में क्या अंतर है? बल्कि कुछ जानवर या जीव तो बेहद एकनिष्ठ होते हैं। कुछ पक्षियों में तो अद्भुत एकनिष्ठता होती है। साथी के वियोग में प्राण तक त्याग देने वाले!
पर हम मानव जो सबसे ज्ञानी हैं, विवेकशील ,उतने ही अधम भी हो सकते हैं जिसका दृष्टांत ऊपर दिया जा चुका है। एक साथी से संसर्ग किया जाए या अनेकों से मूल रूप से आनंद में कोई कमी नहीं होती ,कमी हमारे विचारों और व्यवहारों में होती है। बहुसंसर्गी ऐसा नहीं कि बहुत सुखी और आनंदित होता है। वह कहीं न कहीं अपराध बोध से ग्रसित आत्मग्लानि में डूबा होता है भले ही बाहर कितना बड़ा तीसमार खाँ क्यों न बना फिरे!
हमें भी सेक्स और काम के अंतर को समझना चाहिए। काम का ही रंगीला उत्सव ,होली आ रहा है ! आइये उसको मनाने की तैयारी करें।
मुझे तो अभिये से बड़की भउजी की छोटकी बहिन फुलवा कह रही है, अय्ये जिज्जा, आओ न ,मुहवाँ काला कर देते हैं !
हे साधो !?
©डॉ. शंभु कुमार सिंह
6 मार्च,2021
पटना
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(तस्वीर साभार फेसबुक मित्र Farzana Cooper के वॉल से !)
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