छींका
हमारी बज्जिका में इसे सिकहर कहते हैं।
माँ ,दादी इसी पर दही की कतरी रखती थी।
पहले सभी घर में एक दो टंगा मिल जाता था।
मुहावरा भी है कि बिल्ली के भाग्य में छींके का टूटना।
तो यह मूलतः दूध दही सुरक्षित रखने का घरेलू साधन था।
अब लगभग विलुप्त है।
दूध दही भी पाउच और पैकेट में आ जाता है।
बिल्ली अब देखते रह जाती है।
अब यह जो छींका है वह मुझे धमदाहा हाट में एक बेचता मिल गया, उसी से दो खरीदा। 40 रुपये का एक। यानी अस्सी के दो । मोल मोलाई कीजियेगा तो कुछ और दाम कम कर देगा। पर कितना मोल मोलाई कीजियेगा, दस पांच से क्या होगा, दे दीजिए और ले आइये एक ।हो सकता है, बच्चे तो देखे भी नहीं होंगे ? टांग दीजिये कहीं घर में !
मेरी श्रीमती जी इसे देख खुश तो हैं पर परेशान हैं कि इसे कहाँ टांगे? अब शहरी फ्लैट में इसे टांगना भी एक समस्या है।
मजाक मजाक में मैं उन्हें कह दिया कि दोनों कान में पहन लो, झुमका लगेगा! नाराज हो गयीं। गुस्सा के इसमें से एक सेव निकाल दे मारी।
अब मारो न फूलगेंदवा भी नहीं कह सकता, वैसे पपीतवा से नहीं मारी, गनीमत है!
??
??
Dr.Shambhu Kumar Singh
23 Feb.,21
Patna
www.voiceforchange.in
www.prakritimitra.com