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आज सुन-डे है!

by Dr Shambhu Kumar Singh

आज ही सुबह की बात है

हमारे यहाँ संडे सुन डे होता है। पत्नी बोलती हैं ,मैं सुनता रहता हूँ। वो करीब एक घण्टा बोलीं ,मैं सुनता रहा। फिर एक पुर्जा पकड़ा दीं। मैं उसे ले कर बाजार गया । अभी अभी करीब 12 किलो के लगभग दोनों हाथों में लटकाए हांफते आवास में प्रवेश किया हूँ । पत्नी जैसा कि स्वाभाविक है भृकुटि तानी मुझे देखती हैं! ढाई ढाई किलो तो केवल प्याज और आलू ही है। कद्दू, भिंडी ,नेनुआ,परवल, बैगन ,मिर्ची, टमाटर,भुट्टा,सेव आदि दूसरे झोले में । पूरा सामान को सी बी आई अधिकारी की तरह देखी , आईना-मुआयना के बाद रिपब्लिक भारत के रिपोर्टर की तरह सोफे से कूद जवाब तलब कर दी। पूछता है भारत जैसा! हालांकि ई नवादा की हैं तो कह सकते हैं ,पूछती है नवादा ,क्या हुआ तेरा वादा ?!
बिफरती बोल रही हैं , बड़का किसान बनते हैं ? इधर से अवार्ड ,उधर से अवार्ड , पर सब्जी खरीदने अभी तक नहीं आया ? ऐसी ही सब्जी खरीदी जाती है?
मैं क्या बोलता , सुन रहा हूँ ,आज सुन डे भी जो है न ! पसीना से लथपथ हूँ। ऐसा लगता है कि रणक्षेत्र से लौटा हूँ पर यहाँ तो हालात ही दूसरी है। दूसरे रणक्षेत्र में घुस गया हूँ ऐसा लग रहा है!
थोड़ी देर बोलने के बाद वो मुझसे पूछती हैं कि आपके लिए पराठा, आलूदम बना रखी हूँ । ला रही हूँ ! पगली ,एकदम इमोशनल कर दी ! चार पराठा, आलूदम, दही चीनी , आंवले की चटनी और सलाद को उदरस्थ कर एक गिलास गर्म पानी पिया हूँ ।
अद्भुत तृप्ति मिली ! तृप्ति से याद आया , गज्जब की वो भी लड़की थी । ग्यारहवीं में साथ ही पढ़ती थी । पूरा क्लास को हिलाए रहती थी । पता नहीं कहाँ होगी अब ? कभी मिले आपको तो बताइएगा !
सुप्रभात !
संडे एन्जॉय कीजिये !
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©डॉ शंभु कुमार सिंह
4 अक्टूबर ,20
पटना
PC : Pramod Kumar Singh

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