आपदा में अवसर
युवा पत्रकार मित्र प्रशांत जी के साथ एक जगह जा रहा था। रास्ते में प्रशांत जी के मित्र का भी घर पड़ता था। योजना बनी कि उनसे भी मिला जाए! हमलोग अब उनके दरवाजे पर खड़े हैं। देखा कि सचिन जी बाहर एक चौकी पर पकौड़े छान रहे हैं! प्रशान्त जी उसे देख पहले तो ठिठके, सोचने लगे शायद सचिन जी की पत्नी मैके तो नहीं चली गयी जो इतनी गर्मी में वह बाहर बरामदे में खाना बना रहे हैं?या कहीं पत्नी से झगड़ा तो नहीं हो गया जिसके कारण वे अलग चूल्हा जला रहे हैं? विभिन्न आशंकाओं से घिरे हम सचिनजी के समक्ष खड़े थे।
सचिन का अपना व्यवसाय है संगमरमर का। मकान निर्माण में उनके संगमरमर की अच्छी मांग रहती है। इतनी आमदनी हो जाती है कि घर भी चल जाता है और कुछ बचत भी हो जाती है। घर में खुशहाली थी। तो अब यह क्या हो गया कि सचिन बाहर बरामदे में पकौड़े छान रहा है? प्रशान्त जी यक्ष प्रश्न से जूझ रहे थे।
हमलोग सचिन जी से यह पूछे या नहीं यह चिंतन कर ही रहे थे कि तभी उनकी पत्नी एक गिलास में चाय ले बाहर आई और सचिन को दी। वह हमलोगों की तरफ देख मुस्कुराई भी। अब तो और भी मामला रहस्यमय हो गया? क्या बात है ? यह पकौड़ा क्यों छना रहा इतनी गर्मी में बाहर तब ?
आखिर पूछ ही लिए प्रशांत जी अपने मित्र से ,कि सबकुछ कुशल है न ? मित्र मुस्कुराया और बोला कि हाँ सबकुछ कुशल है और एक एक प्लेट पकौड़े हमलोगों की तरफ बढ़ा दिया।
दअरसल राज तब खुला जब हम पकौड़े को मुँह में डाले। हुआ यह था कि सचिन जी का व्यवसाय ,संगमरमर का व्यवसाय ठप्प था लॉक डाउन के कारण। घर में बचत के कुछ रुपयों से घर को सम्भालने की कोशिश की गई।पर जब बचत राशि भी खात्मे की कगार पर पहुंच गई तो जान बचाने हेतु सचिन जी को अपने ही मकान के बाहर बरामदे पर पकौड़े की यह दुकान खोलनी पड़ी। पकौड़े अच्छे बने हैं। साथ में पुदीने की चटनी। जायकेदार। बीस रुपये का एक प्लेट।
हम लोग जब तक प्लेट खत्म करते तब तक मुहल्ले के करीब 30 ग्राहक धमक चुके थे। कुछ उसी जगह खा लिए कुछ घर केलिये ले लिये।
तो यह है प्रशान्त जी के मित्रवर का उद्यम ! आपदा में अवसर यही है। आत्मनिर्भर बनने के कई रास्ते हैं। आप अपने मनोकुल कोई भी व्यवसाय चुन सकते हैं।
और हाँ जब भी पटेल नगर रोड नम्बर तीन में जाएं तो सचिन जी के बनाये पकौड़े का मजा जरूर ले लें। यह मौका बस सीमित समय के लिए है क्योंकि कल ही वे बोल रहे थे कि जल्द ही संगमरमर वाली दुकान भी खुल रही है । तो जल्दी कीजिये !
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डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना
13 अक्टूबर 20
प्रकृति मित्र
Prakriti Mitra
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(इस पोस्ट में कुछ पहचान छिपाए गए हैं। नाम बदल दिया गया है। फिरभी कहानी में सत्यता को बाधित नहीं किया गया है!)