“पितर पख” चल रहा है,यह भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर है!कि हम उनकी मृत्यु के बाद भी उनको जल समर्पित करते हैं, यह एक प्रतीक है, हमारी भावनाओं का,साथ ही यह सीख भी प्राप्त करने की कि जिनको मृत्यु उपरांत भी नहीं भूल पाए,उनको जल अर्पित करते रहे, उनको उनके जीवन काल में पानी ही नहीं ,अच्छे भोजन,वस्त्र,सुविधा और सुवचन तो जरूर दें । यह नहीं भूलना चाहिए कि ये बातें केवल उन्हीं तक सीमित नहीं रह जाती है, हम भी उसी कड़ी के एक अंश हैं। तो जितना दोगे उतना ही प्राप्त भी करोगे!
हो सकता है हमारे पितर या हमने ही कभी कोई गलती की हो ,यह उतना मायने नहीं रखता ,मायने यह रखता है कि हम संभलते कब से हैं !
तो देरी अभी भी नहीं हुई है । हमें अपने पितरों को जल जरूर अर्पित करना चाहिए । उन्हें जल मिले या नहीं पर हम आने वाली पीढ़ी को जरूर एक सौम्य संदेश दे रहे हैं ! नई कोंपलों को जल से सिंचित जरूर कर रहे हैं !
पितरों को नमन !
आप सभी को सुप्रभात !
हमारे अस्तित्व की बुनियाद हैं हमारे पितर !
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डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना
4 सितंबर,20
प्रातः
(तस्वीर में मेरे माँ बाबूजी !)
1968 ,समस्तीपुर,मिथिला स्टूडियो
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