कविता क्या है ?
मैं हिंदी में एम ए किया फिर डॉक्टरेट भी । हिंदी में मेरा स्पेशल पेपर “सुरदास” थे । सुरसाहित्य । हालांकि कबीर भी मुझे प्रिय रहें हैं । आधुनिक कवियों में निराला ।
कविता पढ़ता रहा हूँ , लिखता भी हूँ । पर यह कविता क्या है ? मैं हिंदी का बहुत बड़ा विद्वान नहीं तो कोई शास्त्रीय परिभाषा नहीं बता सकता । इसे आप बड़ी बड़ी पोथियों में पढ़ जान सकते हैं । पर कविता , मुझे लगता है पढ़ने की चीज से ज्यादा महसूस करने की चीज है । डॉ. नागेंद्र भी बोलते थे कविता को कैसे पढ़ायी जाए ? यह गणित तो है नहीं । गणित में दो और दो चार होता है पर कविता में पांच ! तो बड़ी मुश्किल है कविता को पढ़ाना ।
उसी तरह से लिखना भी ! क्योंकि कवि तो हर व्यक्ति है ! यह अलग बात है कि वह शब्दों को कविता में नहीं पिरो सकता है । यह हुनर कुछ ही लोगों के पास है । दरअसल, कविता भावों का ,संवेगों का , संवेदनाओं का शब्दरूप है । भाव तो सभी के दिल में होते हैं । उन्हें शब्द रूप में कोई कोई ही व्यक्त कर पाता है ।
बच्चन जी से किसी ने कहा कि आपने जीवन में दुखों को बहुत ही निकट से देखा , महसूस किया तो क्या इन दुखों और पीड़ा के कारण आप कवि बन गए ? यानि उसके कहने का अर्थ यह था कि क्या घनीभूत पीड़ा कवि को जन्म देती है । बच्चन जी ने कहा कि नहीं । क्योंकि पीड़ा तो सभी को होती है ! कौन नहीं दुखी है ? तो क्या सबके सब कवि हो जाते हैं ? यानि कवि होने के लिए केवल भाव ही नहीं शब्दों का शिल्पी भी होना आवश्यक है नहीं तो कविता गूंगे के खाये गुड़ की मिठास है । मैं तो कहता हूँ , घनीभूत पीड़ा कविता को जन्म देती है , कवि को नहीं । कवि को कविता के पूर्व जन्म लेना पड़ता है जो शायद पीड़ा की बात नहीं भी हो ?
कविता भावों की बदली है , घनी नहीं हुई कि बरस गयी ! बरसने का माहौल होना चाहिए नहीं तो बादल हवा में तैर कहीं और बरस जाता है । इस बार महिला दिवस के पूर्व आप मेरी कुछ कविताओं को पढ़ पाएंगे । जिनमे स्त्री के विभिन्न रूपों को शब्दों में उकेड़ने की मेरी कोशिश को आप देख पाएंगे । तो देखते रहिये मेरा पोस्ट ! शायद , आप को भी मेरी कविताएं अच्छी लगें ?
वैसे कविता तो मेरे पड़ोस में रहने वाली गदराई बदन वाली वह नवयौवना भी है जिसे बुरी नज़र से देखने के कारण दो बार मैं पीटते पीटते बचा हूँ !
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महिला दिवस की शुभकामनाएं !
डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना
5 मार्च , 19