Home Blog एक वह मुलाकात

एक वह मुलाकात

by Dr Shambhu Kumar Singh

एक वह मुलाकात !

अंकल हैं ?
नहीं । अंकल और आंटी दोनों गाँव गए हैं । आइये, अंदर आइये ।
मैं थोड़ा ठिठक कर अंदर जा सोफे पर बैठ गया हूँ । दरअसल जब अंकल हैं ही नहीं तो किससे बात हो ? इस लड़की को तो पहचानता भी नहीं । यह सोच ही रहा था तब तक वह लड़की एक गिलास पानी और बिस्कुट टेबल पर रख सामने खड़ी है । एकटक मुझे देख रही है । उम्र करीब 18 -19 साल । लंबी । बाल पोनी टेल में । मिडी पहने हुए पैरों में घरेलु स्लीपर ।
थोड़ी देर खड़ी रह वह बैठ जाती है । यह वह घर है जहाँ मेरे पिताजी कुछ दिन रहे थे और पढ़ाई की थी । अंकल के पिताजी तब बिहार सरकार में नौकरी करते थे । बाबूजी के पिताजी का तब देहांत हों गया था जब वे बहुत छोटे थे । दादी बड़े ही कष्ट से उन्हें पढ़ाई । बाबूजी ने लॉ किया फिर समाजशास्त्र में एम ए । जब पटना विश्वविद्यालय में होस्टल नहीं मिला था तो बाबूजी को इन्हीं अंकल के पिताजी ने अपने आवास पर जगह दी थी । खाने पीने का भी कुछ पैसा नहीं लिया था । बाबूजी जब इनकी चर्चा करते उनकी आवाज रुँध जाती थी । उनके उस उपकार को वो कभी भूले नहीं । आजन्म ।
आज इन्हीं अंकल के घर आया था मैं । मैं करीब 23 साल । पटना पढ़ने ही आया हूँ । मुझे पटना में एक आवास लेना था और एक आवास की जानकारी देने को अंकल मुझे बुलाये भी थे परसों ही पर मैं आज आया । क्या करूँ,क्या नहीं सोच ,मायूस मैं लौटने लगा । तभी वह लड़की पूछी कि आप किस सिलसिले में यहाँ आये हैं ? मैंने कहा कि एक डेरा खोज रहा था जिसकी जानकारी अंकल देने हेतु बुलाये थे ।
रात के 9 बजने वाले थे । मेरे आये करीब आधा घण्टा से ज्यादा हो गया था । मैं उठ चुका हूँ । गेट तक आ गया हूँ । तभी वह लड़की आ जाती है ,बोलती है कि अगर आप चाहें तो यहीं रात को ठहर जाएं । रोटी भी बनी हुई है खा लीजिये ,कोई दिक्कत नहीं है । मैं थोड़ी देर के लिये ही सही ठिठक जाता हूँ । क्या रुक जाऊं? कुछ देर सोच उसे बोलता हूँ कि पटना में है जगह जहाँ मैं चला जाऊंगा ।
वह पूछती है ,कहाँ ?
मैं ,गर्दनीबाग में । मेरे बड़े जीजा जी रहते हैं । वह बोलती है , इस रात में इतनी दूर चले जाइयेगा ? बहुत दूर है । रुक जाइये । मुझे कोई दिक्कत नहीं है । आप इस कमरे में सो जाइयेगा । वह मुझे उंगली से एक कमरे की इशारा करती है ।
मैं विनम्र इंकार कर देता हूँ और लौट जाता हूँ । वह मुझे बाहर तक छोड़ने आती है । मैं उसे एक बार फिर धन्यवाद बोलता हूँ ,शुभरात्रि भी । थोड़ी दूर आगे जा पीछे मुड़ देखता हूँ। वह लड़की अभी भी खड़ी है । मुझे पीछे देखते देख वह हाथ हिला बाय करती है । प्रत्युत्तर में मैं भी हाथ हिला देता हूँ ।
दो दिन बाद फिर एक बार अंकल के यहाँ गया । अंकल ने बड़े ही आग्रह कर खाना खिलाया । एक डेरा भी दिखलाया । वह लड़की वहाँ फिर मिली । वही खाना खिला रही थी । अंकल बोल रहे थे कि यह शंभु है ,सीताराम भाई का बेटा । बहुत ही अच्छा लड़का । हमलोग इस पर आंख मूंद विश्वास करते हैं । पढ़ने में बहुत ही तेज !
मैं अब लौट रहा था । मन अद्भुत प्रफ्फुलित था । लगा मैं उड़ रहा हूँ । आनंद का वह चर्मोत्कर्ष था । ऐसा आनंद जो व्यक्ति के जीवन में कभी कभी आता है !
??
©डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना, 11 जून, 20

Related Articles