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पीतल एक महत्वपूर्ण धातु है।भारत ही नहीं पूरे विश्व में इसकी उपयोगिता बढ़ी है और अब स्थिति यह है कि यह सामान्य रूप से उपलब्ध नहीं होने लगी है।एक जमाना था जब हमारे घर में पीतल के बर्तन काफी हुआ करते थे पर अब स्थिति यह है कि हम इसे खरीद ही नहीं सकते।
पीतल देखने में सोने जैसा ही है। उतनी ही उपयोगी भी। बल्कि सोना से ज्यादा उपयोगी। पीतल के तार बनते हैं तो कलश,घरेलू बर्तन भी।पीतल के आभूषण,सजावटी सामान, मेडिकल उपकरण, बिजली में उपयोग होने वाले उपकरण आदि आदि बनते हैं। कुछ का उपयोग भी हम सब करते हैं। पीतल की एक मिश्र धातु है फूल जिसकी थाली,कटोरी भारतीय परिवारों में बहुत लोकप्रिय रही है। मेरी माँ फूल के बर्तन पहचानने में माहिर थी और गांव की महिलाएं उसे अपने खरीदे बर्तन की गुणवत्ता की सत्यता जानने हेतु अनुरोध करती थी। अब स्टील का जमाना आया और पीतल के बर्तन हमारी रसोईघर से गायब हो गए । ये बर्तन स्वास्थ्य केलिये भी काफी उपयोगी थे। पर स्थिति यह है कि अब इनका उपयोग ही कम गया।
हम पीतल के हस्तशिल्प भारतीय बाजारों में खूब देखते हैं। उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद में पीतल के हैंडीक्राफ्ट के आइटम खूब मिलते हैं। मुरादाबाद के अलावा लखनऊ ,अलीगढ़ में भी ये मिल जाते हैं।जयपुर भी पीतल के हस्तशिल्प उत्पाद हेतु ख्यात है। दक्षिण में भी हम इनकी अच्छी उत्पादकता पाते हैं।
पीतल के हस्तशिल्प में दीपदानी, घण्टियाँ,हाथी,कछुआ, गाय बछड़ा,गमले,फूलदानी आदि बने आइटम पाते हैं।सुंदर पच्चीकारी इनकी विशेषता है। इनपर रंग भी कहीं कहीं किसी आइटम पर चढ़ाया जाता है। पीतल के हैंडीक्राफ्ट का भारत में घरेलु बाजार के साथ निर्यात का भी बहुत बड़ा बाजार है। अपने पटना में उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के कलाकार पीतल से अच्छी कलाकृतियां बना रहे हैं। इन कलाकृतियों को हम बिहार म्यूजियम के काउंटर पर देख सकते हैं तो गांधी मैदान के पूर्व दिशा स्थित खादी मॉल में भी खरीद सकते हैं। दिल्ली में जनपथ पर कितने ही इम्पोरिया है जहाँ ये कलाकृतियां हमें मिल सकती है। बाबा खड्ग सिंह मार्ग पर स्थित इम्पोरियम में भी इनकी उपलब्धता काफी है। विदेशियों को ये खूब लुभाती है। इनकी लोकप्रियता काफी है तो बिक्री भी अच्छी है। यह इनके कलाकारों को एक आर्थिक सम्बल भी प्रदान करती है। पटना में हम दीवाली के समय पटना वीमेंस कॉलेज के आगे सड़क किनारे इसे बिकते देख सकते हैं । यह बाजार एक सप्ताह ही रहता है पर इसकी खूब बिक्री होती है। धनतेरस में तो हमारे यहाँ पीली धातु खरीदने का विधान भी है। जो सोना नहीं खरीद पाते वह पीतल के ही बने सामान खरीद खुशी को गले लगाते हैं। बल्कि सोना के साथ साथ इसे भी खरीदते हैं।
कभी आपको भी कोई कलाकृति खरीदने की जरूरत हो तो कृपया पीतल की कलाकृतियों को एक बार जरूर देखने का कष्ट करेंगे, मुझे पूरा विश्वास है आप पहली नजर के प्यार जैसा ही कुछ कुछ महसूस करेंगे !
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
4 सितंबर,20,पटना
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