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हास्य पर गम्भीर चिंतन

by Dr Shambhu Kumar Singh
हास्य पर कुछ गम्भीर बात !
मेरे एक फेसबुक मित्र हैं। कभार फोन पर उनसे बात हो जाती है । एक बार चर्चा ही चर्चा में उन्होंने कहा कि आपके पास हास्यबोध अद्भुत है । हास्य भी शिष्ट ,शालीन !
मैंने उन्हें कहा कि हास्य को शिष्ट ही होना चाहिए ,बल्कि गम्भीर भी ।
अब वो चकराए । बोले , गम्भीर ?
मैंने कहा ,हाँ, बहुत गम्भीर । नहीं तो वर्तमान में जो भोजपुरी फ़िल्म हो गयी है वही हो जाएगा हास्य। फूहड़ !
दरअसल हास्य गम्भीर हो साथ ही पूरी गंभीरता से कही भी जाये । जो आपको गुदगुदाए तो एक संदेश भी चुपके से कान में कह जाये ।
हम सामान्यतया हास्य के प्रति गंभीर नहीं होते । कुछ लोग ऐसे होते हैं कि उन्हें रिश्वत भी दें तो मुस्कुराने से परहेज होता है । मानो अगर मुस्कुरा दें तो किसी को कोरोना न हो जाए ? तो इतने सचेत !
मुस्कुराने से जीवन में ऊर्जा मिलती है । असमय बूढ़े नहीं होते हैं । मुस्कुराने से आलू मटर नहीं मिले पर दिल जीत सकते हैं । हाँ,आलू मटर के रेट को कम जरूर करा सकते हैं । अब बोरिंग रोड पर बैठने वाली सब्जी वाली से मैं मुस्कुरा कर ही मुफ्त में धनिया पत्ती और मिर्च ले लेता हूँ। मिर्च होती तो तीता है पर उसकी दी हुई मिर्च मीठी लगती है । वह भी मुस्कुरा कर ही दस की सब्जी बीस में मुझे दे देती है और मैं मुस्कुराते हुए झोला घर ले आता हूँ । तो यह है मुस्कुराहट का मीठा आदान प्रदान!
घर में पत्नी जब मुस्कुराती है तो मैं समझ जाता हूँ कोई बहुत बड़ी आफत आने वाली है या ऑनलाइन कोई खरीददारी हो चुकी है नहीं तो ऐसे तो घर हमारा हमेशा हल्दीघाटी का मैदान बना रहता है ।
हास्य बोध वाले लड़कों से लड़कियां पटती भी खूब हैं । पर पटने की लकड़ियां पट से चपत भी लगा देती हैं अगर ज्यादा मुस्कुरा कर उसकी तरफ देख रहें तब ! वो केवल नाम की पटने की कहलाती हैं क्योंकि पटना की हैं नहीं तो बड़ी खतरनाक होती हैं। तो कमसेकम पटना में हास्यबोध का प्रदर्शन सावधानी से करने की जरूरत है ।
सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी । तो सावधान रहें । पर हास्य के मामले गम्भीर भी ।
छिछोरे तो कभी न बनें ।
मैं क्या काफी नहीं हूँ जो आपभी बनना चाहेंगे ?
??
©डॉ. शंभु कुमार सिंह
17 अगस्त ,20
पटना

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