वह गुलमोहर का पेड़
मैं देखता हूँ
बार बार
सपनों में
अपने गांव का
वह गुलमोहर का पेड़
जिसकी डालियों पर कभी
बचपन में झूला था
जिसकी पत्तियों
की खूबसूरती पर
मोहित होता था
गांव की बेटियों की
जब हो शादी
इस गुलमोहर के फूल
शोभते थे बंदनवार में
इस गुलमोहर के पेड़ पे होते थे
बहुत ही घोसलें परिंदों के
एकबार गिरा था एक बच्चा
घोसलें से
तो फूट फूट रोया था मैं
इसी गुलमोहर के पेड़ नीचे
बेचती थी बुढ़िया नानी
चनाजोर गरम
देती थी दस पैसे का
भर भर ठोंगा
इसी गुलमोहर के पेड़ नीचे
सुस्ताते राहगीर भी थे
यही गुलमोहर का पेड़
आता है हमारे सपनों में
हर दिन बार बार
लगा बुला रहा है गांव
आज गया गांव
जहाँ था वह गुलमोहर का पेड़
आज एक समतल जमीन
और
विलखता ठूंठ नजर आया
हाँ कट गया था
मेरे सपनों में आने वाला
मेरे गांव का
वह गुलमोहर का पेड़ !
??
©डॉ. शंभु कुमार सिंह
24 जुलाई ,20 ,पटना