बड़ा की बड़ाई
अभी दिमाग में बहुत उथल पुथल चल रहा है। सोच रहा हूँ कि बड़ा बड़ा होता है कि बड़ी? हालांकि बड़ा और बड़ी में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। बड़ा और बड़ी में वही अंतर है जो बड़की भउजी और पत्नी में होता है। तो आप कहेंगे कि फिर फुलौड़ी को कौन सी जगह दी जाए? तो फुलौड़ी को फुलवा समझ लीजिए। चटनी संग चट कर जाइये !
बड़ा भी चटनी संग खाया जाता है। दाल संग भी खाये जाते हैं। कुछ लोग इसे सलाद संग भी खाते हैं । बड़ा बनाने में मुख्यरूप से उड़द का उपयोग होता है । बड़ी में चने के बेसन का । बड़ा को अगर दही बड़ा के रूप में खाना है तो उनको थोड़ी अलग तरीके से बनाते हैं । फिर दही और मसालों संग मजा लेते हैं। हमलोगों के यहाँ बिहार में ही बड़ा को चटनी संग खाया जाता है । दक्षिण में सांभर दाल के साथ चटकारे ले !
दक्षिण भारतीय व्यंजनों में बड़ा का बड़ा ही नाम है। डोसा का यह मौसेरा भाई है । इडली का देवर ! बड़ी उत्तर भारतीय भोजन में ख्यात है खासकर पंजाब के क्षेत्र में।हमलोगों की माँ भी बड़ी खूब अच्छा बनाती थी। होली में बड़ी को ले कर हमलोग होलिका दहन स्थल जाते थे और उनको समर्पित करते थे ।
बिहार के भोज भात में कढ़ीबड़ी की काफी लोकप्रियता है। कढ़ी बने और उसमें बड़ी नहीं हो तो मजा नहीं आता। विदेशों में बड़े और बड़ियों की लोकप्रियता खूब है। इंग्लैंड में तो कई ऐसे रेस्टोरेंट हैं जहाँ कढ़ी की विशेषता के साथ भोजन परोसे जाते हैं। हमलोगों के घर कढ़ी में दही को अनिवार्यतः डाला जाता है। पहले जब भैंस थी तो जब मट्ठा निकाला जाता था तो उस दिन कढ़ी जरूर बनती थी।
बड़े-बड़ी के ही बच्चे हैं बचका। वैशाली जिले में हम इसे चक्का कहते हैं। बैगन,आलू,कद्दू के चक्के खूब हमलोगों के यहाँ बनते हैं। साग के पत्तों का भी चक्का बनता है। ओल के पत्तों, नेनुआ के फूलों, अरबी के पत्तों के भी बचके बड़े रुचि के साथ खाए जाते हैं। तिलकोर के पत्तों के बचके तो मिथिला में ख्यात है। पहुना को कुछ और खिलाइए या नहीं तिलकोर के पत्तों के बचके नहीं खिलाये तो क्या खिलाये?
सरकार तो पकौड़े को भारत के आर्थिक उत्थान हेतु एक महत्वपूर्ण व्यंजन मानती है। पकौड़े छानिये और देश के विकास में योगदान दीजिये। हाँ, चटनी जरूर दीजियेगा नहीं तो कोई मजा नहीं! वैसे यह जल्दी ही राष्ट्रीय व्यंजन हो जाये,मैं तो प्रार्थना करता रहता हूँ।
अब क्या लिखें? लिखते लिखते मुँह में पानी आ गया।तो जा रहा हूँ बनाने। आप भी जब बनाएं तो हमें जरूर याद कीजियेगा! हो सके तो बुला लीजिएगा। मेरी रसना आपको बहुत ही आशीष देगी।
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
21 अगस्त,20
प्रकृति_मित्र
रसोईघरसे
Prakriti_Mitra
Rasoi_Ghar_se
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(तस्वीर इंटरनेट से !)