अय्ये जी ,देखिये , यह फूद गया है !
क्या ?
अरे देखिये न , यह वाला पौधा फूद गया है ! अब फूद जाना क्या होता है ,मुझे पता नहीं । श्रीमती बोल तो हिंदी ही रही हैं, पर फूद सब वो अपनी बोली से डाल रही हैं तो थोड़ी समझने में दिक्कत हो रही है । फुदना तो जानते हैं । आदमी में फुद्दी मिशर हैं एगो पूर्णिया में उनको भी जानते हैं । पर यह फूद जाना क्या होता है ,श्रीमती जी ही जाने ?
सोफे पे तुरंत ही बैठा था । मोबाइल खोल कर मोनिका का मैसेज पढ़ रहा था कि श्रीमती जी की बच्चों सी किलकारी सुनाई दी । दरअसल श्रीमती जी मगध क्षेत्र की हैं तो मगही भी बोलती हैं । साबुन को सबुनिया ,बाल्टी को बालटा ! कप को कप्पा । तो कुछ शब्दकोश मैं उनकी भाषा का बना लिया हूँ पर आज तो फूद रहा है कुछ ,श्रीमती जी बच्चों सी कूद रही हैं ।
तो सोफे से उठ कर जाना ही पड़ा । फेसबुक पर अष्ठयाम करने ही जा रहा था , झाल मंजीरा सजा ही रहा था कि उठना पड़ा । लाख मोनिका , दीपिका ,नीतू , रजनी का चक्कर रहे , घर की देवी अगर नाराज हो जाये तो नेनुआ की सब्जी भी सपना हो जाये तो ले भई ,देख ही लेता हूँ कि क्या फूद गया है ? चेहरे पर काइयाँ नेता की मुस्कुराहट जैसी चस्पां कर बालकनी में गया जहाँ श्रीमती जी अपने पचास साल की उम्र में भी बच्चों सी किलक रही थी !
बालकनी में जा कर देखा तो मुझे भी खुशी हुई । बहुत से पौधों में नए पत्ते आ रहे हैं । श्रीमती जी की नजर में यही फूद जाना होता है । हमारी बज्जिका में इसे पनक जाना कहते हैं । जो पनक कर पत्ते आते हैं उन्हें पनकी कहते हैं। बचपन में बांस की पनकी तोड़ गाये के बछड़ों को खूब खिलाया है तो यही है फूद जाना ।
मैं उनकी खुशी में शामिल हुआ । अच्छा लगा कि प्रकृति मुस्कुरा रही है । अगर स्त्री को पृथ्वी माना जाए ,माना क्या जाए वो है ही तो प्रकृति के फूदने से पृथ्वी विहँस रही है । शुद्ध हिंदी में कहें तो प्रकृति पल्लवित पुष्पित हो रही है । हमारी भाषा भी कई भाषाओं और बोलियों के मेल से जैसे पल्लवित पुष्पित हो रही वैसे ही यह धरती सावन भादो में पल्लवित पुष्पित हो जाती है ।
आप भी देखिये ,आपकी बाड़ी ,बालकनी या छत पर लगाया गया कोई पौधा फूदा है या नहीं ?
पृथ्वी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
जीना है तो एक पौधा लगाएं !
जिंदगी को फूदने दीजिये उर्फ
पल्लवित पुष्पित होने दीजिए ।
हरित सुप्रभात !
???
प्रकृति मित्र
©Dr.Shambhu Kumar Singh
9 August, 2020
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