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खुराफाती लाल की लल्ली

by Dr Shambhu Kumar Singh

थोड़ा खुराफाती हूँ । कभी कभी कोई न कोई खुराफात कर ही देता हूँ । परसों ऐसे ही घर में सोफे पर सुबह सुबह लेटा हुआ था । अखबार आता नहीं कि चाटा जाए तो क्या करूँ ? परेशान था । देखा सामने ही श्रीमती जी भिंडी को काट रही थीं । भुजिया अनुष्ठान में लगी हुई थी । मैंने उन्हें कहा कि क्यों परेशान हो रही हो ,दही चिउड़ा खा लेंगे ! वह बोली ,कहाँ है दही चिउड़ा ?
डॉमिनोज को जानती हो न ?
अब डॉमिनोज को कौन नहीं जानता ? बच्चे बच्चे की जुबान पर और चप्पे चप्पे की दुकान पर यह नाम फेमस है ! लोग अपना नाम भूल जाएं पर डॉमिनोज का नाम नहीं भूल पाएंगे !
मैं समझ गया यह जी के में मुझसे बीस ही है तो थोड़ी देर चुप रहा । फिर बोला , यही डॉमिनोज अब चिउड़ा दही भी दे रहा है । पिज्जा बंद ।
वह कुछ नहीं बोली ! पर इतना जरूर बोली कि अभी रोटी भुजिया खा लीजिये ,डॉमिनोज के चिउड़ा दही को किसी दिन मंगवा लेंगे ।
मैं बहुत खुश ! चलो ,आज इसे मूर्ख बना दिया !
पर आज साढ़े नौ बजने को है । श्रीमती जी योगा आदि कर के ग्रीन टी में डूबी हुई हैं । मैंने उन्हें कहा कि कुछ खाने का जुगाड़ करती नज़र नहीं आ रही हो ,आज क्या बनाओगी ?
वह थोड़ी मुस्कुराई ! फिर बोली , डॉमिनोज को बुक कर दिया है आर्डर ! दही चिउड़ा आता ही होगा ! थोड़ी प्रतीक्षा कीजिये ! वह फिर मुस्कुरा रही है !
देवा रे देवा, आज तो दिमाग का दही हो गया !
श्रीमती जी तो जलेबी जैसी सीधी निकलीं !
??

©डॉ. शंभु कुमार सिंह

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