आम का तामझाम
आम को लोग आम ही समझते हैं पर है यह खास । और इसके नाज नखरे भी बहुत हैं । इसको पकाने के तामझाम भी । मेरे गाँव ,गराही में जब आम टूट कर आता तो उसे पकाने की व्यवस्था की जाती थी। इसके बड़े तामझाम थे । कई तरीके होते थे इसको पकाने के । पकाने की प्रक्रिया को हम पालना कहते थे । यानी आम अभी पाल पर है। तो जब आम को पाल पर लगाना हो तो कभी बांस की दौरी या टोकरे में जूट का एक दो बोरा बिछा देते थे फिर कच्चे आम सहेज कर रख देते थे। फिर एक बोरा से उसे ओढ़ा देते। तो यह है आम पालने की विधि गाँव में ! ऐसा भी होता था कि कमरे में गेंहू का भूसा बिछा देते थे और उस पर आम को रख बोरे से ढंक देते थे। भूसा न हो तो शीशम के पत्ते भी बिछा देते थे।पीले पीले आम पक ऐसे झांकते थे मानो उबटन लगी दुल्हन घूंघट से निहार रही हो छुप छुप के !
पाल लगने की जानकारी आम खुद देते थे । यानी पक गए हैं । पकने पर आम की खुश्बू पूरे घर को पागल किये रहती है । क्या बूढ़े क्या बच्चे इस खुश्बू के दीवाने बन ताक में रहते थे कि कब आम को चाभा जाए । वैसे भी जब कच्चे आम पाल पर रखे जाते थे तो हम बच्चों को सख्त हिदायत होती थी कि आम को टोना नहीं है । टोना ? ओह, टोना नहीं जानते हैं? मोटे शब्दों में कहें तो छूना। पर टोना एक अद्भुत कर्मकांड है । छूना अलग । तो हम उतावले बच्चे चुपके चुपके आमों को टोटे रहते थे । हम से ऊब कर कर कुछ आम पक भी जाते थे । पर वे वास्तव में पके होते नहीं थे । हमारे टोने से गुलगुल हो जाते थे । यह हमें तब पता चलता था जब ऐसे गुलगुले आम को फंसुल से काटते थे । यह कच्चा ही होता था । तब हम लोग कटे आम को हाथ में लिए एक दूसरे को ऐसे देखते थे जैसे रणक्षेत्र में हारा हुआ सिपाही अपने साथी के कटे सिर को देखता होता था !
आम जब पक जाए तो वह खुद इसकी सूचना दे देता है । आप उसे ले लें । आप कत्थिल या गुलगुल जैसा खाना चाहे खा सकते हैं । पके आम भी गुलगुल हो जाते हैं । सॉफ्ट । जैसे प्यार में प्रेमिका! अब आप की मर्जी कैसे खाना है ? चाकू से काट कर या चूस कर ? अपने प्रधनमंत्री जी कैसे खाते हैं ?
खैर खाइये आम तो थोड़ा संभल कर! आम का चोंप लग जाये तो होठों पर घाव भी हो सकता है । तो चूसने की भी एक कला है । कुछ आम तो चूस कर ही मजा देते हैं जैसे सुकुल । पर मालदह आदि को आप करीने से काट के खाएं ,अद्भुत मजा आएगा ! पर याद रखिये यह आम को पालना और खाने का मजा गाँव में ही मिलता है ! यहाँ पटना में कार्बाइड वाला आम अपने दुर्गंध से क्या मजा दे पाएगा ,यह आप भी जानते हैं ?
©डॉ. शंभु कुमार सिंह
आम को लोग आम ही समझते हैं पर है यह खास । और इसके नाज नखरे भी बहुत हैं । इसको पकाने के तामझाम भी । मेरे गाँव ,गराही में जब आम टूट कर आता तो उसे पकाने की व्यवस्था की जाती थी। इसके बड़े तामझाम थे । कई तरीके होते थे इसको पकाने के । पकाने की प्रक्रिया को हम पालना कहते थे । यानी आम अभी पाल पर है। तो जब आम को पाल पर लगाना हो तो कभी बांस की दौरी या टोकरे में जूट का एक दो बोरा बिछा देते थे फिर कच्चे आम सहेज कर रख देते थे। फिर एक बोरा से उसे ओढ़ा देते। तो यह है आम पालने की विधि गाँव में ! ऐसा भी होता था कि कमरे में गेंहू का भूसा बिछा देते थे और उस पर आम को रख बोरे से ढंक देते थे। भूसा न हो तो शीशम के पत्ते भी बिछा देते थे।पीले पीले आम पक ऐसे झांकते थे मानो उबटन लगी दुल्हन घूंघट से निहार रही हो छुप छुप के !
पाल लगने की जानकारी आम खुद देते थे । यानी पक गए हैं । पकने पर आम की खुश्बू पूरे घर को पागल किये रहती है । क्या बूढ़े क्या बच्चे इस खुश्बू के दीवाने बन ताक में रहते थे कि कब आम को चाभा जाए । वैसे भी जब कच्चे आम पाल पर रखे जाते थे तो हम बच्चों को सख्त हिदायत होती थी कि आम को टोना नहीं है । टोना ? ओह, टोना नहीं जानते हैं? मोटे शब्दों में कहें तो छूना। पर टोना एक अद्भुत कर्मकांड है । छूना अलग । तो हम उतावले बच्चे चुपके चुपके आमों को टोटे रहते थे । हम से ऊब कर कर कुछ आम पक भी जाते थे । पर वे वास्तव में पके होते नहीं थे । हमारे टोने से गुलगुल हो जाते थे । यह हमें तब पता चलता था जब ऐसे गुलगुले आम को फंसुल से काटते थे । यह कच्चा ही होता था । तब हम लोग कटे आम को हाथ में लिए एक दूसरे को ऐसे देखते थे जैसे रणक्षेत्र में हारा हुआ सिपाही अपने साथी के कटे सिर को देखता होता था !
आम जब पक जाए तो वह खुद इसकी सूचना दे देता है । आप उसे ले लें । आप कत्थिल या गुलगुल जैसा खाना चाहे खा सकते हैं । पके आम भी गुलगुल हो जाते हैं । सॉफ्ट । जैसे प्यार में प्रेमिका! अब आप की मर्जी कैसे खाना है ? चाकू से काट कर या चूस कर ? अपने प्रधनमंत्री जी कैसे खाते हैं ?
खैर खाइये आम तो थोड़ा संभल कर! आम का चोंप लग जाये तो होठों पर घाव भी हो सकता है । तो चूसने की भी एक कला है । कुछ आम तो चूस कर ही मजा देते हैं जैसे सुकुल । पर मालदह आदि को आप करीने से काट के खाएं ,अद्भुत मजा आएगा ! पर याद रखिये यह आम को पालना और खाने का मजा गाँव में ही मिलता है ! यहाँ पटना में कार्बाइड वाला आम अपने दुर्गंध से क्या मजा दे पाएगा ,यह आप भी जानते हैं ?
©डॉ. शंभु कुमार सिंह