आज मैं उदास हूँ
अब मैं
कभी कभी
रो लेता हूँ
बिना वजह
भरी आँखें
शून्य में निहारती हैं
शून्य ही
पहले तो
मैं खूब
खिलखिलाता
हँसता रहता था
बार बार
लोग कहते
पगला है
पर अब
हँसी गायब है
न केवल चेहरे
वरन जिंदगी से भी
तो रो लेता हूँ
बरबस ही
चला जाता हूँ
अतीत में
छिप जाता हूँ
माँ के आँचल में
तो कभी
बैठ जाता हूँ
बाबूजी की पीठ पर
कभी खेत में
चला जाता हूँ
तोड़ने हरे खीरे
या फिर
दादी की पूजा हेतु
उड़हुल के फूल
लोग कहते हैं
आदमी जब खुश होता है
भविष्य के सपने
बुनता है
और जब उदास
चला जाता है
अतीत में
मैं अब बार बार
लौटता हूँ अतीत में
हाँ
मैं बहुत ही उदास हूँ !
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना , 23 जुलाई,20
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