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हे प्रभु !

by Dr Shambhu Kumar Singh

हे प्रभु !

वह जो अबोध
यूं ही मुस्कुराती है
जिसे न पता है
छल कपट
बढ़ाती है हाथ
बरबस
छूने को हमारा चेहरा
उसी मासूम
छोटी बच्ची की
कोमल अंगुलियों में
जकड़ी उसकी माँ के
हाथ को छुड़ा
हे प्रभु
तूने कौन सा
न्याय किया है
लिखते तो रहे गीत
तुम हमेशा
खुशियों से
आज क्यूँ इसे
आंसुओं से लिखा है ?

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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
19 मई ,21
पटना
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