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हिंदी पत्रकारिता और मैं-2

by Dr Shambhu Kumar Singh

हिंदी पत्रकारिता दिवस

बहुत लोग हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं दे रहे हैं , मैं नहीं ! मैं जब भी कोई दिवस देखता हूँ तो डर जाता हूँ । मैं देखता हूँ कि जो विलुप्त होता जा रहा हो उसका दिवस मनने लगता है । तो विलुप्त होती हिंदी पत्रकारिता पर क्या शुभकामनाएं दूँ?
आज जब संचार माध्यम इतना सहज और सरल हुआ है तब हिंदी पत्रकारिता कमजोर हुई है । एक जमाना था जब हिंदी पत्रकारिता का हम उसे स्वर्ण काल कह सकते हैं । इसे मैं 1970-80 के आसपास का समय मानता हूँ जब हिंदी के सर्वश्रेष्ठ पत्रिका और समाचार पत्र प्रकाशित हुआ करते थे !
हिंदी में मासिक,पाक्षिक ,साप्ताहिक और दैनिक प्रकाशन का वह स्वर्णयुग था । कादम्बिनी, नवनीत, धर्मयुग , साप्ताहिक हिंदुस्तान, सारिका,पराग, माधुरी, खेल भारती, नंदन, बाल भारती, मनमोहन,बालक,चंदा मामा,वामा,दिनमान, रविवार जैसी पत्रिकाओं और नव भारत टाइम्स जैसे समाचार पत्र का वह जीवंत जमाना था । तब पत्रकारिता करते साहित्यकार देखे जा सकते थे । कोई कोई तो ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार होते थे । अज्ञेय, रघुवीर सहाय, राजेन्द्र अवस्थी ,कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मृणाल पांडे, अरविंद कुमार ,गगन गिल ,योगराज थानी जैसे लोग पत्रकारिता कर रहे थे जिनकी पत्रकारिता के अलावा लेखन और अन्य क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान थी !
धीरे धीरे सवश्रेष्ठ पत्रिकाओं और समाचार पत्रों का अवसान होता गया और हिंदी पत्रकारिता में वीरानी छा गयी !
यह दुखद है । हम अच्छे पढ़ने वालों के लिए एक सदमा भी । ये समाचार पत्र और पत्रिकाएं एक तरह से विश्वविद्यालय थी जिसने हजारों पत्रकार की नई पौध तैयार की । अब की पीढ़ी को तो पता भी नहीं होगा कि हिंदी पत्रकारिता का एक जमाना यह भी था ?
तो जब मातम मनाने की बात है लोग हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं दे रहे हैं ?
कितने भोले हैं ये लोग भी !

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
(पत्रकारिता का एक अदना सा सिपाही )
30 मई ,2021
पटना

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