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कहानी – 2

by Dr Shambhu Kumar Singh

बिखरती मिठास !

आज सर जी को देखा कि पूरी हड़बड़ाहट में बाजार से खरामा खरामा चले आ रहे हैं। हाथ में एक दोना है।शायद कुछ मिठाई आदि होगी? उनकी आदत ही ऐसी है। स्कूल से जब भी लौटते हैं तो कुछ न कुछ उनके हाथ में रहता ही है ,बेटी ,बेटे और पत्नी केलिये। तो आज भी लिए हुए हैं ,यह कोई नई बात नहीं है और न हड़बड़ाए हुए उनका चलना भी। दिल के सीधे ,सज्जन व्यक्ति हैं। अच्छे शिक्षक भी हैं वो। घर लौटते वक्त उनके चेहरे पर एक उतावलापन का भाव रहता ही है।और अगर हाथ में मिठाई ,समोसा या भूँजा हो तो और भी उनकी चाल तेज हो जाती है।
दरअसल सर जी अपने बच्चों और पत्नी को खूब प्यार करते हैं। उनकी हर फरमाइश को पूरी करने की कोशिश भी। पर उनकी भी सीमा है। मास्टरी में अच्छा पैसा मिल जाता है। पर लाख कोशिशों के बावजूद बचत नहीं हो पाती है। कभी कुछ तो कभी कुछ इसी पैसों से होता रहता है। अभी पिछले ही दिनों एक स्मार्टफोन खरीदे हैं सर जी। घर में डिमांड थी। बगल वाले ओवरसियर साहब के बच्चों के हाथ नए नए फोन देख इनके बच्चे कुढ़ते रहते थे। इनपर भी बार बार खीजते रहते। कभी कभी तो उनकी श्रीमती अपने भाग्य को कोसती रहती कि कैसे व्यक्ति से शादी हो गयी कि एक स्मार्टफोन भी सपना हो गया? बात केवल स्मार्टफोन तक की ही रहती तो किसी तरह सुलझा भी दी जाती पर ओवरसियर साहब के घर क्या नहीं है, कार, फ्रिज,ए सी, स्कूटी, सोफा, कालीन, वैक्यूम क्लीनर, बड़े स्क्रीन का टी वी, डाइनिंग टेबल , मॉड्यूलर किचेन …..कितना गिनाएं ? सब ऊपर वाले की कृपा थी ओवरसियर साहेब पर या ऊपरी आमदनी, कह नहीं सकता ? पर मास्टर साहेब की किस्मत में यह आमदनी नहीं थी। ले दे के एक मिड डे मील ही होता है स्कूल में जिसका प्रबंधन भी हेड मास्टर साहेब के अधीन है। तो सर जी क्या करें? वैसे इनके भी अधीन होता तो भी सर जी कुछ नहीं करते क्योंकि इनसे हेरफेर होता ही नहीं! तो घर में एक अघोषित युद्ध छिड़ा ही रहता है। बच्चे चिड़चिड़े। पत्नी हमेशा गुस्सा में बुदबुदाती रहती। पर सर जी अपने परिवार को प्यार खूब करते हैं। येनकेन प्रकारेण सभी को खुश करने की जुगत में रहते ही हैं।

सर जी मेरे ही दुकान से राशन का सामान खरीदते रहते हैं। बड़का भइया उनको सर जी ही कहते हैं तो हमलोग भी उनको सर जी ही कहने लगे। वैसे हम उनको बचपन से जानते हैं।हमारी दुकान के सामने ही तो उनका मकान है। अभी हाल ही में तो उनका नया मकान बना है।इस एक कट्ठा जमीन को ही खरीदने में तो सर जी पस्त हो गए थे। मकान बनवाने में तो उनको कर्ज भी लेना पड़ा। पर हिम्मत नहीं हारे हैं सर जी। अभी इसी रविवार हमारी दुकान पर बहुत देर बैठे रहे। एल सी डी टीवी का दाम पूछ रहे थे। जब उनको 36 इंची टीवी का ही दाम बताया तो देखा उनके चेहरे का रंग बदल गया। कुछ उदास से हो गए। फिर रसना और बिस्किट के एक पैकेट खरीद उदास कदम लौट गए।
सर जी ने बच्चों की पढ़ाई पर बहुत ध्यान दिया। अच्छे स्कूलों में बच्चों को पढ़ाया । बच्चों ने भी अच्छे रिजल्ट दिए। बड़ा बेटा नालंदा मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहा है और बेटी एन आई टी से इंजीनियरिंग कर रही है। हमने तो यह भी देखा है जब उनके बच्चे कुछ खाने की जिद करते और सर जी की जेब में पैसे नहीं होते तब भी वो बच्चों को उनकी मनपसंद चीज खरीद ही देते भले ही उनको अपने स्कूल पैदल जाना पड़ता!
सर जी के कपड़े बड़े साधारण होते थे। अभी भी वैसे ही। बच्चे इस पर उनको डांटते भी रहते हैं। बोलते हैं कमसेकम कुछ फैशनेबल कपड़े तो ले लीजिए पर सर जी ले नहीं पातेे हैं।घर में इस कारण भी हमेशा बकझक होती रहती है।हमलोग उनके घर से कभी कभी लड़ने झगड़ने की भी आवाज सुनते। पर सर जी इस पर कभी चर्चा नहीं किये। वो घर की बात किसी से कहते नहीं हैं। बस अपने में मगन। काम से बचे बाकी समय कुछ न कुछ पढ़ते ही रहते हैं। जो भी हो सर जी जितने लोकप्रिय हमलोगों के बीच हैं उतने ही अलोकप्रिय अपने परिवार में ! बच्चे पढ़ने में अच्छे हैं पर अपने में ही खोए ।हमेशा सपने बुनते। अक्सर उनका लड़का , राहुल बोलता भी रहता है बस कुछ दिन ही है, हम भी कार वाले हो जाएंगे। ऐसा लगता, अतृप्त आत्मा कहीं भटक रही है?
कल ही तो राहुल से बात हो रही थी ! कह रहा था कि पापा अगर गांव वाली जमीन बेच देते तो हमलोग पाटलीपुत्र कॉलोनी में जमीन खरीद लेते पर पता नहीं उनको क्या मोह है उस जमीन से और गांव के घर से? हम उसको क्या बोलते ,सुनते रहते हैं! दरअसल सर जी का एक भाई भी है जो गांव में ही रहता है और खेतीबारी करता है। अभी जमीन भी साझी ही है। सर जी गाँव से कभी अनाज लाते हैं, कभी नहीं। उनका भाई कभी बांस बेच दे तो कभी आम पर सर जी विरोध नहीं करते हैं। बोलते हैं कि हम तो कमसेकम नौकरी भी करते हैं ,रघुनाथ भाई को तो वो भी नहीं तो क्या करें ? उनके बच्चे जब कमाने लगेंगे तो जमीन का भी बंटवारा कर लिया जाएगा। रघुनाथ भाई अरे वही सर जी का बड़ा भाई जो सर जी को पढ़ा लिखा एम ए कराया। लोग बोलते भी हैं कि हर सप्ताह उनके बड़े भाई गांव से कुछ न कुछ खाने का सामान ले उतनी दूर से साइकिल से आते थे। आखिर एक ही भाई था उनको भी जिसको पढ़ाना था। उनके माता पिता की बहुत पहले ही मृत्यु हो गयी थी तो रघुनाथ भाई ही सर जी को पढ़ाया लिखाया। बड़े कष्ट से पाला पोसा इस छोटे भाई को! उनकी पत्नी कभी ठेकुआ ,कभी सत्तू तो कभी भूँजा झोला में बांध भेजती रहती थी। यह मुझे तो नहीं पता पर हमारे चाचा तो यही बताते हैं!
सर जी जब यहाँ पढ़ रहे थे तो इसी मोहल्ले में रहते थे। महतो जी के मकान में एक कमरे में रहते थे। उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे और बदले में महतो जी की तरफ से खानापीना एवं रहना फ्री। फिर इसी मोहल्ले में ही शादी भी हो गयी सर जी की। श्रीवास्तव जी का परिवार इतना सुशील और मिहनती लड़का नहीं देखा था? फिर लड़का सरकारी नौकरी में भी था। तो श्रीवास्तव बाबा की बड़ी बेटी जो हमारे चाचा जी की बैचमेट थी उसी से सर जी की शादी हो गयी। दो बच्चे हैं जिनकी चर्चा अभी तो किया हूँ! आन्टी जी का चूंकि मैके इसी मोहल्ले में तो उनका एक पैर मैके में तो एक पैर अपने घर में। उनको दो बहनें और दो भाई । सभी शादीशुदा। नौकरीपेशा। ठीकठाक घर परिवार। सबको गाड़ी ,मोटर साइकिल। सुबह से ही आंटी जी का एक कान और एक हाथ मोबाइल फोन पर ही रहता। कभी भाभी से बात हो रही तो कभी बहन से। कभी भाई है फोन पर तो कभी भतीजा। मतलब रसमंजरी कार्यक्रम चलता ही रहता है आंटी जी का!
आंटी जी अभी भी किसी बहन से या भाई से फोन पर बतिया ही रही होंगी? उनको काम ही क्या है? कामवाली आती है। घर ,किचेन धो पोछ कर चली जाती है। आंटी जी को खाना बनाना पड़ता है बस। पर इसपर भी वो बुदबुदाती ही रहती हैं। वो अपने पापा को कोसती रहती हैं कि मुझे भी ठीक से पढ़ाते तो मैं भी कहीं नौकरी करती रहती। यह चूल्हा चौका में गुलामी नहीं करते रहते! मन ही मन बहुत ही कुंठित और दुखी रहती हैं। पर क्या करें ,उनके पास कोई रास्ता ही नहीं है! फिर भी कभी कभी हमलोगों से चर्चा कर ही लेती हैं कि कहीं उनके योग्य कोई नौकरी मिले तो बताना? अब हम उनको क्या बताएं? हम तो खुद ही कम्पीटिशन की तैयारी करते हुए दुकान पर भइया को हेल्प करते रहते हैं। अब कुछ मुझे जानकारी मिले तभी न आंटी जी को भी बताते ?

सर जी को इतना धड़फड़ जाते देख मैं टोक दिया। बोला ,अंकल क्या ले जा रहे हैं ठोंगा में? सर जी मुस्कुराते हुए गरम गरम दो जलेबी निकाल मुझे दे देते हैं। बहुत ना नुकुर कर जलेबी मैं ले ही लेता हूँ। आखिर दिल से दे रहे थे सर जी। जलेबी न ले उनको दुखी नहीं करना चाहता था। सर जी मंद मंद मुस्कुराते तेजी से आगे बढ़ गए हैं।शायद दिमाग में दृश्य बन रहा होगा- पत्नी दरवाजा खोलती है और हर्ष मिश्रित विस्मय से बोल पड़ती है, “अरे इतनी जलेबी लाने की क्या जरूरत थी? आपके लिए तो अभी अभी हलवा बना कर रखी हुई हूँ!” और इस पर सर जी हाथों का जलेबी वाला ठोंगा आगे बढ़ा मुस्कुरा देते हैं ।
कल्पनालोक में विचरते सर जी घर पहुंच चुके हैं और जैसे ही कॉलबेल बजाने को हाथ उठाना ही चाहते हैं कि घर से आती आवाज उनको कुछ देर रोक देती है। वे रुक घर से आती आवाज सुनने लगते हैं। आवाज उनकी पत्नी की ही है जो अपने बच्चों को कह रही हैं, “अरे थोड़ी देर रुको , तुम्हारा बाप आता ही होगा ,शाम को कुछ न कुछ लाता ही है। खा लेना ,अभी नाश्ता बनाने का एकदम मन नहीं है।” बच्चे भी हँसते बोल रहे हैं ,”पापा तो ठग्गुमल हैं, इसीतरह हमलोगों को हमेशा ठगते रहे हैं, जलेबी ,समोसा से!”
सर जी को लगा कि उनको जोर से करेंट लगा है हालांकि बिजली के किसी तार पर उनका हाथ नहीं पड़ा था। वे चक्कर खा दरवाजे पर ही गिर गए हैं। ठोंगा की जलेबी बिखर गई है। तभी धड़ाक से दरवाजा खुलता है, उनकी पत्नी बोलती हैं, “अरे कैसे चलते हैं कि गिर गए? देख कर नहीं चलते हैं क्या ?”
बेटा उनके हाथ को पकड़ उठाना चाहता है। सर जी उठने की कोशिश करते कहते हैं, “बेटा समेट लो इन मि….”, पर पूरा नहीं कह पाते हैं ! एक बार खड़े हो फिर जमीन पर ही बैठ जाते हैं और फूटफूट कर रोने लगते हैं!
उनको घेरे सभी लोग हतप्रभ उन्हें देख रहा है, “अरे इनको क्या हो गया है?”

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
26 मार्च ,21 / पटना

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