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कहानी -1

by Dr Shambhu Kumar Singh

दो चोटी वाली वो एक लड़की

वह नई नई आयी थी स्कूल। उसके पापा की पोस्टिंग हुई थी हमारे कस्वे में। एस डी ओ हो कर आये थे यहाँ।यह अनुमंडल एकदम नया ही बना है और ले दे के बीस तीस दुकानदौरी मिल ही जाएंगे यहाँ। हमलोग सरकारी स्कूल में ग्यारहवीं में पढ़ते थे। तब ग्यारहवीं में ही बोर्ड परीक्षा होती थी। लगता था कि वह पहले किसी बड़े शहर में रही होगी क्योंकि जो ड्रेस पहन वह रोज आती थी वह किसी पब्लिक स्कूल का लगता था। नीली कुर्ती और सफेद सलवार तथा उसपर सफेद ही दुपट्टा। लंबे बाल और दो चोटी। स्कूल कभी पापा वाली गाड़ी से आ जाये तो कभी पैदल ही। हमलोग तो पैदल ही आ जाते थे।
मार्च में बोर्ड परीक्षा होनी है तो नवम्बर तक फार्म भर देना है। सितंबर में सेंट अप टेस्ट भी ले लेना है। हेड मास्टर साहब बाजार से ही एक फोटोग्राफर बुला दिए हैं सभी बच्चों के पासपोर्ट फोटोग्राफी के लिए। केवल पांच रुपया देना है और चार फ़ोटो आपका। हींग लगे न फिटकरी और रंग आये चोखा। पर फ़ोटो रंगीन नहीं होता था तब ,पासपोर्ट फ़ोटो वह भी ब्लैक एंड व्हाइट।सभी बनठन के फोटो खिंचवा रहे हैं। हमने देखा लड़कियां फ़ोटो खिंचाने वक्त अपनी चोटी आगे कर लेती थी। ऐसा क्यों करती थी नहीं समझ में आया। जब भी कोई लड़की आती फोटोग्राफर के सामने तो पहले अपनी चोटी आगे करती फिर हल्के से मुस्कुराती और क्लिक होते ही अपनी सीट पर जा बैठती। एक हमलोग थे ,नाम पुकारे जाने पर जाते ,एकदम गम्भीर मुद्रा में खड़े होते ,लो भइया, जितना खींचना हो फ़ोटो ,खींचो। चोटी आगे करने की बात ही नहीं होती। टिकी भी इतनी बड़ी नहीं होती थी कि उसे आगे करें। खुद हरिमोहन मिश्रा भी नहीं किया जिसकी टिकी लगभग एक फीट की थी। तो हमलोगों की क्या बिसात?
इस मसले पर सभी ने बहुत दिमाग लगाया कि ये लड़कियां जब फ़ोटो खिंचवाने गयी तो अपनी चोटी आगे क्यों कर देती हैं? बहुत चिंतन मनन के बाद भी कोई ठोस निर्णय पर हमलोग नहीं आये। अंततः यही निर्णय हुआ कि अब इसका जवाब क्यों न साक्षात लड़कियों से ही पूछ लिया जाए? पर बिल्ली के गले घण्टी कौन बांधे? बहुत बदमाश से बदमाश बच्चा भी इंकार कर गया कि उसको लड़कियों से यह प्रश्न पूछना है! अब क्या किया जाए? संकट बहुत बड़ा था और हम लड़कों के लिए एक चुनौती भी कि कोई हिम्मत वाला लड़का नहीं मिल पा रहा था अपने ग्रुप में। अंत में सबकी नजर मुझ पर पड़ी जबकि मैं किसी भी कोण से लफुआ लड़का नहीं था। एक भला लड़का गिना जाता था और यही भलापन सभी को प्रेरित किया कि इसे ही लड़कियों से पूछने के लिए भेजा जाए कि वो फोटोग्राफी के वक़्त अपनी चोटी आगे क्यों कर लेती हैं!?
आखिर वह दिन आ ही गया जब उन लड़कियों से यह पूछना था । क्या क्या और कैसे पूछना है इसकी पूरी तैयारी की गई। और वह वक्त भी आ ही गया जब प्रश्नोत्तरी होने जा रही थी। मैं बहुत ही हिम्मत कर वही एस डी ओ साहब की ही बेटी से ही पूछ लिया , सुरभि ,एक मिनट रुको !
सुरभि रुक गयी है। जो लड़कियां उसके साथ चल रही थी वह कुछ आगे निकल गयी हैं और सुरभि को अपने साथ न देख पीछे मुड़ के देख रही हैं। इधर मैं नवंबर में भी पसीने पसीने हो रहा था। पैर लड़खड़ा रहे थे। बहुत हिम्मत किया और पूछ ही लिया ,अरे तुमलोग जब फ़ोटो खिंचवा रही थी तो अपनी चोटी आगे क्यों कर लेती थी?
लड़कियां कुछ अलग तरह की बातों की आशंका में थी पर यह तो अलग ही तरह का प्रश्न था !? एकदम आउट ऑफ सिलेबस। वो सब भौंचक मुझे देखने लगी। कुछ देर ऐसी सन्नाटा छायी कि जिसे हम पिन ड्रॉप साइलेन्स कहते हैं ,कुछ वैसी ही। सभी लड़कियां एकटक मुझे ही देख रही थीं। लग रहा था तीर से बेध रही हैं। पर मेरी नजर जमीन को देखती रही। फिर एक जोर का ठहाका ! लड़कियां जोर से हँस पड़ी थीं। इतने जोर से कि हेडमास्टर साहब ऑफिस से बाहर आ गए। पूछे, क्या हुआ ? सभी ने कहा ,कुछ नहीं सर । एक चुटकुला था।
मैं तो भागा । बिना पीछे मुड़े क्लास में घुस गया। तब तक टिफिन की घण्टी भी समाप्त हो गयी थी। सभी लोग क्लास में आ गए।टीचर भी। अभी संस्कृत का पीरियड था। ठाकुर सर लाल चंदन लगाए क्लास रूम में आ गए हैं। सभी से बोले कि लंग लकार का रूप पढ़ो। सभी ने सही सही सुना दिया केवल मैं ही आज गड़बड़ा गया। हालांकि संस्कृत में बहुत अच्छा नहीं था पर एकदम गोबर भी नहीं था। मेरी इस स्थिति पर लड़के तो शान्त थे पर लड़कियां मंद मंद मुस्कुरा रही थी। छुट्टी हो गयी है। सभी बच्चे क्लास से बाहर निकल गए हैं। मैं ही बैठा रहा। क्लास रूम बंद करने जब पियून आया तब ही मैं बाहर निकला। देखा स्कूल के गेट पर लड़कियां गोल गप्पे खा रही हैं। मैं किसी तरह उन सबों से बच निकल जा रहा हूँ। लेकिन सुन रहा हूँ पीछे से लड़कियों की हँसने की आवाज। मेरी चाल तेज हो गयी है। घर पहुँचने पर हाँफते देख माँ चिंतित हो पूछ लेती है , तबियत ठीक है न? मेरे हाँ कहने पर वह मेरे खाने केलिये कुछ लाने किचेन में चली गयी है।
आज तो बड़ी ही बुरी तरह मुझे लड़कों ने फंसा दिया था। सोच कर गुस्सा भी आ रहा था और खुद पर झुंझलाहट भी। मैं कुछ खा आज खेलने नहीं बाजार चला गया ताकि वहाँ से परीक्षा के लिए उपयोगी कुछ किताबें खरीद लूं। अब बाजार में भी जो लड़की दिखाई दे तो मैं पहले उनकी चोटी देखता कि वो आगे की हुई हैं या पीछे! पर मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ? मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था! अरे कोई सर्वे तो नहीं करना है मुझे ? यह मैं अनायास ही कर रहा था। कहीं अचेतन में कोई बैठा मुझे कंट्रोल तो नहीं कर रहा?
आज स्कूल आया हूँ। लगता है सब लड़कियां मुझे ही देख हँस रही हैं। मैं भी किसी लड़की को देखूँ तो पहले उसकी चोटी ही देंखूं! कुछ तो मेरे साथ गड़बड़ हो रहा था मानो कोई मनोरोग मेरे जेहन में जड़ जमा रहा था ? लाल सर न्यूटन का लॉ पढ़ा रहे हैं और मैं सरोज की चोटी की रिबन का रंग देख रहा हूँ! मामला बहुत खराब रूप लेता जा रहा था।
अब पढ़ाई में भी मन नहीं लग रहा है। त्रिकोणमिति में अच्छा था उसमें भी गड़बड़ा ने लगा हूँ। सब कुछ बदल रहा है पर लड़कियां नहीं बदलीं। उनका बदस्तूर जारी रहा मुझे देख कर खिलखिलाना और अपनी चोटियों को आगे रखना।इसमें सुरभि सबसे आगे। वह लगे जैसे गैंग की लीडर है। मुझे लगता था कि ये वो मुझे ही चिढ़ाने को कर रही थीं भले ही उनका इंटेंशन यह नहीं रहा हो !

आज फेयवेल है हम ग्यारहवीं के बच्चों का। हेड मास्टर साहब खूब उपदेशात्मक भाषण दिए। कहीं कहीं बहुत भावुक भी हुए । कुछ अन्य टीचर और बच्चे अपने भाषण के दौरान रो ही दिए।रोने वाली में सुरभि भी एक है। सुरभि मुझसे मिलने भी आई।

सुरभि मुझसे बोल रही है कि वह आगे इंटर की पढ़ाई पटना के पटना वीमेंस कॉलेज में ही करेगी। उसकी बुआ राजेन्द्र नगर में रहती है। अभी तो उसकी पढ़ाई पर माँ पापा का यही प्लान है। कभी मिलने की इच्छा हो तो वहीं आ जाना। मैं उसे कुछ नहीं कहता हूँ। क्या कहें ,मुझे खुद पता नहीं चल रहा था?
अगस्त का महीना है। आसमान में बादल छाए हुए हैं। लगता है अब बरसे कि तब बरसे। पटना वीमेंस कॉलेज के गेट पर एक पेड़ के नीचे मैं और सुरभि समोसा खा रही है। हाँ ,सुरभि मुझे मिल गयी है। पर लड़कियां अपनी चोटी क्यों आगे कर लेती हैं उसका जवाब अभी तक नहीं मिला है। अब उसकी जरूरत भी मुझे नहीं है। “हाँ थोड़ा प्याज दो तो मुझे भाई , और सुरभि तुम थोड़ी चटनी और ले लो।” उसके प्लेट में एक समोसा अभी भी बचा हुआ है! समोसा वाला प्याज और चटनी ले हमारी तरफ आ रहा है।

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प्यारके परिंदे

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
30 मार्च ,21
पटना
www.voiceforchange.in

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