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फुलवा कथा-1

by Dr Shambhu Kumar Singh

दशहरे में आई फुलवा !

बड़की भउजी की छोटकी बहिन फुलवा आयी है अपनी बहन से मिलने। मेल मिलाप तो मुझसे भी करती है पर उसके अगमन का मुख्य शीर्षक यही है कि फुलवा दशहरे में बहन से मिलने आयी है! फुलवा आती है तो त्योहार में और भी उल्लास आ जाता है। हालांकि धार्मिक त्योहार में आ कर माहौल वह थोड़ा अधार्मिक बनाती है फिर भी उसका आना हम सबको बहुत प्रिय लगता है। मुझे तो अति प्रिय ! क्योंकि फुलवा लैला मजनूं बीड़ी फूँकती रहती है तो नजर बचा कर मैं भी एक दो कश लगा ही लेता हूँ। इसे मुम्बइया भाषा में कहिए तो दीपिका से पूछना होगा कि क्या कहा जाता है?
खैर माहौल पर्व का है। पूरी तरह से धार्मिक । पर फुलवा के कारण थोड़ा अधार्मिकता का छौंक लग जा रहा है। हम लोगों की क्या कहें हमारे पुरोहित भी लाल धोती में न आ बरमूडा पहन कर आ गए।ऊपर से काला चश्मा ! पूजा करने वक्त भी परसाद पर नजर न रख फुलवा को निहारते रहते हैं। तो थोड़ी अधार्मिकता का पुट आ ही गया है माहौल में। दरअसल भगवान भी हमारी तपस्या की परीक्षा ले रहे हैं जैसे पहले ऋषि मुनियों के तप के समय मेनका आदि को भेज करते थे। मैं भी हूँ पूरा खिलाड़ी , बस दिन भर फेसबुक ,व्हाट्सएप पर समाधिस्थ हो भजन कीर्तन करते ही रहता हूँ। कि फेसबुक के घाट पर भय संतन की भीड़….! तो इन्ही संतों की संगति का फल है कि अभी तक बचा हुआ हूँ।
पर एक दिन सुबह सुबह ही जैसे ही फेसबुक पर आचमन कर रहा था कि फुलवा के चिल्लाने की आवाज आई। अय्ये जिज्जा ,किधर हैं, दौड़िये।बचाओ !अरे यह क्या हुआ ? मैं तो घबराया ,फुलवा को इस घर में ऐसी क्या बात हुई जो ऐसे चिल्ला पड़ी? उसको तो सबसे ज्यादा खतरा मुझसे ही है और मैं यहाँ फेसबुक पर सत्संग में हूँ! मैं फेसबुक को छोड़ दौड़ा…हालांकि उसबक्त मैं फेसबुक पर एक निहायत ही खूबसूरत रमणी के पाउट वाला सेल्फी पर लाइक की पुष्पांजलि कर रहा था फिर भी दौड़ा…फुलवा को आखिर क्या हो गया ? देखता हूँ कि फुलवा पलंग से उछल साइड टेबल पर चढ़ी थर थर कांप रही है। मुझे लगा ,शायद दसई में कोई जिन्न जिन्नात इसको पकड़ लिया है? इसीलिए ऐसा कर रही है? पर वैसी बात नहीं थी। वह मुझे देखते ही बोली ,अय्ये जिज्जा, नीचे देखो ,नीचे !
अरे पगली ,मैं नीचे क्या देंखूं? एकदम बौड़म हो क्या ? वैसे भी मैं महिलाओं के नीचे ऊपर क्या उनपर नजर ही नहीं डालता । उनके सामने आने पर खुद नजर नीची कर लेता हूँ। तो आंखें नीची कर खड़ा हो गया । मतलब मैं महिलाओं के सामने इतना झुकता हूँ कि गिर ही जाता हूँ। फुलवा बोलती भी है ,जिज्जा से बड़ा कोई गिरा इंसान नहीं ! ज्यादा विषयांतर हो उसके पहले चलिये पुनः घटनास्थल पर । फुलवा टेबल पर खड़ी थर थर कांप रही है। पत्नी के हाथ में बड़ा सा डंडा है। मैं तो घबरा ही गया ! कहीं ये दोनों मुझे नवरात्रि का कोई उपहार तो नहीं दे रही ? इसी बीच पत्नी बोली ,अरे आंख क्यों बंद किये हुए हैं? उधर पलंग पर देखिये ,ठीक से देखिये! पत्नी का आदेश सिर माथे! दूर दृष्टि क्या नजदीक की नजर भी ठीक है बावजूद इसके मुझे पलंग पर कुछ भी नजर नहीं आया। बहुत गौर से देखने पर बिछावन पर एक छोटा सा मकड़ा दिखा ।मैं जैसे ही उसे उठा बाहर फेंकना चाहा, वह बहादुर महिला टेबल से उछल आलमीरा के ऊपर बैठ गयी ? मैं तो हतप्रभ ! अरे ,ई तो एंटोमोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट है! कीट विज्ञान की विदुषी! उसका यह हाल देख खुद मुझे चक्कर आने लगा !
अब मन में बहुत गुस्सा आया । क्या यही स्त्री सशक्तिकरण है? ऐसे कॉकरोच ,छिपकिली ,मकड़े को देख डरोगी तो कैसे जियोगी रे फुलवा? कितनी हो तुम कमजोर ?अब गुस्सा में वह मकड़ा मैं उसके ऊपर फेंक दिया। अब तो वह और जोर से चिल्ला मेरे ऊपर कूद गई और मैं चारो खाने चित्त! आखिर मामला बासठ किलो का था !अभी अभी झंडू बाम लगवा कर बैठा हूँ। डॉक्टर ने कहा है कि बस केवल मोच है ,हड्डी में कोई टूटफूट नहीं है!
आप भी मेरे लिए ज्यादा चिंता नहीं करेंगे। बस दुआ करे !
दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं!
जय्ये हो ! विजये हो!
स्त्रियाँ सबला हों !
??

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना
25 अक्टूबर,2020

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