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पिता दिवस

by Dr Shambhu Kumar Singh

पिता दिवस पर विशेष

कल पिता दिवस है। कुछ लोग कल बहुत भावुक होंगे । तरह तरह के पोस्ट लिखेंगे। फेसबुक पर क्या क्या न कहेंगे पर बहुत लोगों ने मैंने देखा है ,अपने पिता को उनके दिए का सहस्त्रांश भी नहीं लौटाया होगा? खुद मैंने भी नहीं ! मैं देखता हूँ तो पाता हूँ कि खुद मैंने अपने पिता की कितनी सेवा की तो जवाब नगण्य ही है। सच तो यह है कि कोई भी ऐसा पुत्र नहीं है जो अपने पिता का ऋण चुका दिया हो ? पितृ ऋण !
पिता तो ऐसे ही बदनाम होते हैं। नहीं बदनाम होते तो उनके ही नाम से “पितृसत्तात्मक” सोच या समाज की बात नहीं उठती ? मतलब “मातृ सत्तात्मक” अगर कुछ होता तो वह बहुत आदर्श होता ? या हो सकता है, “पितृसत्तात्मक” के पीछे पुरुष वर्चस्व की बात की जा रही है? तो स्त्री वर्चस्व भी बहुत भली नहीं। खैर, मैं पुनः मूल मुद्दे पर आता हूँ।
बहुत से बच्चों की शिकायत होती है, मेरे पिता ने यह नहीं किया ,वह नहीं किया! वरन उनको केवल पिता से ही नहीं पिता के पिता से भी शिकायत होती है। वे कहेंगे कि पापा के पिता ने उनके लिए कुछ नहीं किया! जैसे वे न्याय दंड ले पिता को अपराधी साबित करने पर तुले हों ?आज न्याय कर ही देना है! यह बात ही अद्भुत है! पिता को तो छोड़िए ,जिस दादा को बच्चे देखें भी नहीं होते हैं ,उनकी भी आलोचना करते हैं। या देखे भी होते हैं तब जब दादा की उम्र अस्सी पचासी हो चुकी होती है ,उस उम्र में उनको सेवा की जरूरत होती है पर बच्चे उन्हीं से अपेक्षा लगाए रखते हैं!
दरअसल ऐसे बच्चे नालायक होते हैं। उनकी परवरिश ,शिक्षा या वातावरण का परिणाम होता है कि वे पिता को कुछ सेवा करने के बजाय उन्हीं से सेवा की अपेक्षा किये रहते हैं। पिता चाहे जैसा भी हो अपने बच्चों के लिए अपनी क्षमता से ज्यादा करता है। कम ही पिता होते हैं जो नालायक होते हैं। वैसे भी कोई भी पिता देवता नहीं होता ! उनकी भी अच्छाइयां और बुराइयां होती हैं। हमें उनके बारे में इन सारी बातों को ध्यान रखते ही सोचना चाहिए!
सब से महत्वपूर्ण यह है कि हमने अपने पिता के लिए क्या किया? क्या हम उनकी रुचि ,अरुचि का ख्याल रखते हैं? क्या उनके आराम करने का ख्याल रखते हैं? क्या उनके रहने ,सोने ,खाने पीने की सुविधा का ख्याल रखते हैं? उनके कपड़ों की सफाई कर देते हैं? उनके शरीर या हाथ पैरों को कभी कभी दबा देते हैं या मालिश कर देते हैं? क्या उनसे कभी मीठा बोलते हैं? सबसे बड़ी बात यह कि क्या हम उनको इज्जत देते हैं ,उनको प्यार करते हैं ?
इसका जवाब देते बहुतों को पसीने छूट जाएं! कम ही पुत्र हैं ,पुत्रियां हैं जो अपने पिता ,या अपने माता पिता ,दादा दादी की सेवा किया हो या करते हों? ऐसे लोग बहुत कम हैं ! जो हैं वे इस दुनिया के अनमोल रत्न हैं। वे ही असल में समृध्द हैं। जिन्होंने कभी अपने माता पिता की सेवा नहीं की वे सब कुछ रहते कंगाल होते हैं! क्योंकि इस धरती पर जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे! इस हाथ से लो और उस हाथ से पाओ! यही नियम है!
मैं इसे महसूस किया हूँ। मेरे पास जो भी अच्छा है वह मेरे माता पिता का आशीर्वाद है। जो बुरा है , वह मेरा स्वअर्जित है। क्योंकि मैं भी पापी बहुत अधम !
माफ करना मेरे माता पिता मेरे सारे अपराध, जिसे मैंने जाने अनजाने किया हो !
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
19 जून ,21
पटना
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