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मैं

by Dr Shambhu Kumar Singh

मैं

मैं अब जीवन की ढलान पर हूँ । इसे सहज ही स्वीकार कर रहा हूँ । आंखों में थोड़ी कातरता उतर आई है । पर कायरता नहीं ! अभी भी खून खौल उठता है जब कोई अनाचार देखता हूँ ।
जीवन के जिस मोड़ पर हूँ उस मोड़ पर दिमाग की क्षमता कम हो जाती है । पर मैं हूँ कि दिमाग के खुराफात से परेशान हूँ ! वह कहीं कोई कविता पका रहा होता है तो कहीं किसी नए आईडिया पर काम कर रहा है । वह पेंटिंग के रंगों में उलझा हुआ है तो कैमरे के लेंस में घुसा हुआ भी । कभी खेत की मेड़ पर लहलहाती फसल को देख नाच रहा है तो कहीं किसी मित्र के साथ बतकही कर रहा है ! तो लगता है चूका नहीं हूँ !
नित नए सर्जनात्मक कदम बढ़ रहे हैं ।
लेकिन एक चीज मैंने नोटिस की है , मेरी भूलने की आदत हो रही है । कभी कभी किसी का नाम याद नहीं आता ? किसी को पहचान नहीं पाता !
अभी कल ही बाजार से आधा किलो बैगन ,आधा किलो भिंडी ,दो किलो कद्दू, एक किलो नेनुआ , एक किलो टमाटर आदि ले कर जब घर आया तो घर में एक अपरिचित महिला को देख भौचक रह गया ! बेहद शिष्टाचार के साथ उनसे उनका परिचय पूछा , देवीजी,आप कौन हैं? कुछ कुछ जानी पहचानी लगती हैं ?
वह शालीन महिला इतनी ही बात पर गुस्सा गयी ! बोली , बाहर से आये हैं फैन के सामने बैठ जाइए । पगलाइये नहीं !
आवाज मैं पहचान गया ! अरे ये तो हमारी एक अदद जिंदगानी हैं ! तुरंत ही मेमोरी दुरुस्त हो गया । थोड़ी देर के बाद ही पत्नी जी ग्रीन टी ले हाजिर थी और हम उसके फ्लेवर में गुम !
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© डॉ.शंभु कुमार सिंह
पटना ,16 जून , 2021

(रिपोस्ट)
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