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प्रेम में ब्लेड

by Dr Shambhu Kumar Singh

प्रेम और ब्लेड

अभी अभी मुझे मालूम हुआ कि प्रेम और ब्लेड में अन्योन्याश्रय संबंध है।हालांकि मैं रेजर सेट और ब्लेड में अन्योन्याश्रयी संबंध समझता था, पॉकेटमारी और ब्लेड में भी। पर प्रेम और ब्लेड में यह संबंध देख डर सा गया हूँ। कुछ दिन पहले की ही बात है,पटना के राजीव नगर के एक होटल में एक लड़की और लड़का उर्फ प्रेमिका और प्रेमी अपने अपने गर्दन ब्लेड से काट डाले थे। पूरा होटल रूम खून से रंगा हुआ था।
मुझे तो यह समाचार सुन कर ही चक्कर आने लगा। काटो तो खून नहीं! बुरी तरह से शॉक्ड हो गया। सोचता हूँ,जो प्रेम करते हैं वो इतने भी क्रूर हो सकते हैं? जो अपनी प्रेमिका या प्रेमी का खून कर सकते हैं? यह देख सोचता हूँ कि ये लोग जिसको बेइंतहा प्यार करते हैं उसका भी गला रेत सकते हैं तो दूसरे की क्या गत बना सकते हैं? मैं तो जितनी मूर्तियां प्रेम की बनाई हुई थी हृदय में,सब ध्वस्त हो गई इनको देख ! चूर चूर !
क्या ये दोनों सचमुच एक दूसरे को प्यार करते थे या हैं? अगर प्यार करते थे तो प्यार हो कैसे पाया ? प्रेमी महोदय को देखा तो शक्ल ,सूरत के साथ दिमाग से भी दिवालिया लगा । फिर ऐसे लड़के से किसी लड़की को क्यों प्यार हो जाता है? माता पिता ने बड़े अरमानों से अपने बच्चों को ,बड़ी दिक्कत से रुपयों की व्यवस्था कर शहर भेजते हैं कि बच्चें भविष्य संवारेंगे पर यहाँ तो दूसरा ही गुल खिला रहे हैं ये लोग !? धोखेबाज हैं ये लोग! चीटर!
लड़की बी पी एस सी की तैयारी करने आई थी? उसे किसी भी विषय में या “जी के” में प्रेम की अनिवार्य पढ़ाई करनी थी क्या ? तो जिस कार्य के लिए आये थे उस कार्य को छोड़ यह गुलछर्रे क्यों उड़ाने लगे ? क्या यह प्रेम इतना महत्वपूर्ण था कि माँ बाप के अरमान , उनकी प्रतिष्ठा , अपना भविष्य , बी पी एस सी क्रैक करने का सपना सबको दांव पर लगा देने की आवश्यकता आ गयी ? दरअसल ये लोग प्यार नहीं कर रहे थे। दिल का नाम दे देह का आनंद ले रहे थे। क्योंकि अगर पढ़ाई केलिये आये हो तो पढ़ाई ही करो न या जब प्रेम ही करना है तो पढ़ाई का नाटक नहीं करो !
अगर प्रेम ही करते हो उससे तुम्हें प्रेरणा मिलनी चाहिए। सपनों को पूरा करने की ऊर्जा ! न कि जू ,होटल , ईको पार्क भटकने की खुली छूट ? सरेआम बेहयापन की नुमाइश ? जहाँ मन किया चिपक गए! ओपन एयर थियेटर शुरू। तो आप दोनों प्रेमी नहीं ही हो ! बेहया हो बेहया! प्रेम तो उचाइयां देता है, पतनशीलता नहीं। प्रेम गर्दन कटाई की नियति नहीं है!
अच्छा बताओ , यह गर्दन पर ब्लेड चलाने की क्या जरूरत थी? कौन ज्ञान दिया था तुम्हें? मरने के बाद क्या प्रेम मिल जाता तुम्हें ? क्रूर तो हो ही एकदम गदहे भी हो ! अच्छा हुआ कि तुमसे शादी की बात लड़की के पिता नहीं माने नहीं क्योंकि शादी होती ,बच्चे होते फिर जिंदगी में कभी दुख भी आता तो तब तुम सभी ब्लेड से गर्दन काट लेते या जहर खा लेते!
ऐसे लोग प्रेमी नहीं होते जो प्रेम में ब्लेड ले कर घूमते हैं। प्रेमी तो फूल ले घूमते हैं। निराश हो गले पर ब्लेड चला देना , हाथ का नस काट लेने वाले क्रिमिनल होते हैं। ऐसे लोगों को तो सरेआम जूतों से कुटाई करने की जरूरत है। अभी पी एम सी एच में जो दवाई हो रही है उसकी कोई भी जरूरत नहीं। तुमलोग जिंदा रह कर भी क्या करोगे ? धरती का बोझ हो ! कलंक तो हो ही !
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(लेखकीय कॉपी राइट : सर्वाधिकार सुरक्षित)
©डॉ. शंभु कुमार सिंह
28 जून ,21
पटना
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