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मकई की झोंटी

by Dr Shambhu Kumar Singh

#झोंटी

मुझे लगता है बहुत कम लोग होंगे जो झोंटी शब्द सुने होंगे ? झोंटा झोंटी तो एक तरह का झगड़ा है पर अगर इसमें से झोंटा को हटा दें तो केवल झोंटी एक तरह का बीज संरक्षण का हमारा ग्रामीण तरीका है।
झोंटी बाल या बालियों को गूंथ कर बनायी जाती है । हमारे यहाँ मकई के भुट्टों या बालों को उसके बलखोइया को थोड़ा या पूरा छील के उसको गूंथ कर फिर एक जगह बांध कर टांग दिया जाता है। यह बीज संरक्षण का हमारा परंपरागत तरीका होता था। पर अब ऐसा नहीं होता है। अब देशज बीज भी नहीं मिलते । अब हाइब्रिड बीज मिलते हैं जिनको अगले साल हेतु हम बीज के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकते।
हाइब्रिड से उत्पादन बढ़ा है परंतु उपज की क़्वालिटी खराब हुई है। पोषक तत्व भी कम हुए हैं। स्वाद और सुंगन्ध एकदम खत्म हो गयी है। तो यह है हाइब्रिड बीजों का खेल। मल्टीनेशनल कंपनियों का बीज व्यापार में प्रभुत्व बढ़ा है। हाइब्रिड बीजों पर फिर कभी लिखूंगा अभी आइये झोंटी पर ही चर्चा की जाए!
झोंटी को हमलोग विशेष रूप से मकई के बीजों हेतु उपयोग करते थे। अभी भी कहीं कहीं ऐसा होता है। लहसुन की झोंटी भी हमलोग टांगते है बीजों हेतु । झोंटी हमारी खेती परंपरा की एक विशेषता थी। झोंटी को घर की दीवार , छत से या आंगन में किसी खम्बे पर टांगते थे। कुछ लोग पीपल के या कोई भी बृक्ष में टांग देते थे जो उनके दरवाजे पर होता था।
यह बीज रखने का एक बेहतरीन तरीका होता था। घुन तक नहीं लगते थे। चूहा या चिड़िया भी इसको बर्बाद नहीं करती थी। यहाँ तक कि गिलहरियां भी झोंटी को बर्बाद नहीं करती थी। चोर भी इसे नजरअंदाज करते थे।तब निष्कृष्ट चोर ही बीजों की चोरी किया करते थे अन्यथा नहीं। गराही या पूर्णिया की खेती पर हम इस झोंटी तरीके से बीज रखते थे यह मुझे पूरी तरह याद है। झोंटी न केवल बीजों हेतु वरन अनाज संरक्षण का एक लोकप्रिय तरीका रहा है।
यह तरीका कम खर्चीला होता था । इसके फलस्वरूप गरीब किसान भी अपने खेतों में खेती करने हेतु सही बीज संरक्षित ढ़ंग से रखा करता था। इससे किसानों पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ता था बल्कि इस तरह कुछ किसान तो दूसरे किसानों को बीजों से सहयोग भी कर देते थे।

यहाँ प्रयुक्त तस्वीर एक जमाने की लोकप्रिय फ़िल्म ” नदिया के पार” से ली गयी है। तस्वीर में मकई के बालों की झोंटी स्पष्ट दिख रही है।आप भी गौर से देखिये। अगर आप कभी अपने यहाँ झोंटी देखें होंगे तो यह तस्वीर भी देखना सुखद लगेगा !

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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
16 मई ,21
पटना

प्रकृति मित्र

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