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बंगाल चुनाव परिणाम,21

by Dr Shambhu Kumar Singh

बंगाल की राजनीति

आलेख लिखने के पूर्व यह स्पष्ट कर दूं कि मैं जब भी राजनीतिक आलेख लिखता हूँ तो व्यक्तिगत रुचि ,अरुचि को दरकिनार कर निष्पक्ष लिखता हूँ। उद्देश्य भी यही होता है कि एक राजनैतिक साक्षरता का अंग बनूं। यह तभी हो पायेगा जब मैं निष्पक्ष रहूँ और बिना किसी पूर्वाग्रह का लिखूँ। दूसरी बात मेरी भी कुछ राजनैतिक पसंदगी और नापसंदगी है। मोदी ,शाह को तो एकदम नहीं पसंद करता और ममता की राजनीति देख हँसी आती है। पूरी नाटकबाजी है। लब्बोलुआब यह कि दोनों पक्षीय नेता मेरे लिए नापसंदगी के पात्र हैं।
बंगाल के इस चुनाव में कोई मुद्दा ही नहीं था। मैनेजमेंट गुरु लगे हुए थे। अपने अपने टूल यूज कर रहे थे। बंगाली अस्मिता का भी कोई प्रश्न नहीं था और न बाहरी और बंगाली का। रोजगार , शिक्षा , स्वास्थ्य , कृषि आदि मुद्दे तो उछले ही नहीं। यह चुनाव “दीदी ओ दीदी” और “खेला होबे” पर ही केंद्रित था जो किसी भी लोकतांत्रिक देश केलिये हास्यास्पद ही है।
दस साल से सत्ता में रही तृण मूल पार्टी पुनः सत्ता में आ रही है पर इस बार यह सरकार व्हीलचेयर पर ही रहेगी क्योंकि भाजपा भी 2 से 100 के आसपास आ जा रही है।
इस चुनाव में हिंदीभाषी को बाहरी कहा गया , भाजपा से जुड़े लोगों को बाहरी कहा गया इसका बहुत दूरगामी परिणाम भी आगे देखने को मिलेगा। राजनैतिक हिंसा भी बढ़ेगी। ममता या तो बहुत निरंकुश होंगी या सबकी सुनने वाली होंगी, यह समय बताएगा पर बेहद नाटकीय परिवर्तन हम उनमें देखेंगे।
यह सत्य है कि ममता की लोकप्रियता गिरी है पर वे अभी हासिये पर नहीं आयी हैं। भाजपा को अभी भी राज्यस्तरीय कोई सर्वमान्य नेता नहीं है जिसका खामियाजा उसे इस चुनाव में दिखने को मिला। इस चुनाव से कुछ उत्साहित तो ममता में अब देश का भविष्य भी देखने लगे होंगे!?
ममता का व्हीलचेयर पर चुनावी दौरा कारगर रहा । ग्रामीण इलाकों में खासकर महिला मतदाताओं में ममता का व्हीलचेयर पर चुनावी दौरा करना भावनात्मक रूप से जोड़ा। अब देखना यह भी है कि वे शपथग्रहण व्हीलचेयर पर ही लेती हैं या अपने स्वस्थ पैरों पर खड़ी हो ?
बंगाल का यह चुनाव हिंदु मुस्लिम समुदाय के बीच खाई को और चौड़ा किया है। तुष्टिकरण की राजनीति को और आगे बढ़ाएंगा। इस चुनाव से ममता की राष्ट्रीय राजनीति में कोई बहुत ज्यादा कद नहीं बढ़ेगा पर मोदी का कद जरूर छोटा हुआ है जबकि बंगाल में उनकी सफलता नजर आ रही है। इस चुनाव से ई वी एम से चुनाव पर अब विपक्ष की क्या राय होगी वह भी आगे देखना रोचक होगा !
बंगाल पिछले सत्तर सालों में केवल तीन दलों के गठबंधन को ही सत्ता दिया है और सत्ता पक्ष को हमेशा ही 200 के पार तक पहुँचाया है कुछेक अपवाद छोड़ कर। यह भी अद्भुत उनका निर्णय होता है!?

कुछ भी हो ,बंगाल वैसे भी कोई नया जनादेश नहीं दिया है। परंपरावादी सोच के भद्रो मानुस हैं। तो जो किये होंगे कुछ सोच के ही किये होंगे! पर हमें चुनाव के दौरान की जो रिपोर्ट मिली थी उसके अनुसार ममता सरकार के प्रति घोर असंतोष था और दूसरी बात यह कि चुनाव के दौरान बहुत जगह सही मतदाताओं को वोटिंग देने से रोका गया। कुछ जगह गम्भीर हिंसा हुए और बहुतों जगह धमकियों से काम चलाया गया। कहीं कहीं तो खुल कर कहा गया कि चुनाव परिणाम के बाद देख लेंगे। कहाँ जाओगे !? तो इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
इस चुनाव में करीब 120 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका निर्णायक रही वहीं 30 से ज्यादा सीटों पर एक पंथ विशेष के मतदाताओं ने भाजपा को आशा के अनुरूप वोट नहीं दिया।
इस चुनाव में गोरखों ,हिंदी भाषियों के साथ अन्य गैर बंगाली समुदायों की भूमिका भी बड़ी अस्पष्ट रही। वे कोई निर्णायक भूमिका में नहीं रहे और बंटे रहे।
देखिये तो इस चुनाव से मोदी प्रभाव पर बट्टा तो लगा है पर भाजपा को कोई घट्टा तो नहीं दिख रहा ! वे एक से इक्कीस तो हो ही गए हैं!
अस्तु, इति श्री बंगाल चुनाव कथा!
खेल्ला खतम , पैसा हजम !
??

(अभी तो रोसोगुल्ला खाबो !)
??

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
पटना
2 मई,21

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