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फेसबुक पर लेखन

by Dr Shambhu Kumar Singh

फेसबुक पर लेखन

फेसबुक सोशल मीडिया की एक बहुत बड़ी क्रांति है। इसका बड़ा ही गुणात्मक प्रभाव मानव जीवन पर पड़ा है। अब ऐसी भी बात नहीं कि इसमें कोई बुराई नहीं पर यह एक ऐसी जगह है जहाँ आपके बिछड़े मित्र मिल सकते हैं , बिजिनेस के लोक लुभावन आइडियाज मिल सकती हैं तो सत्रह साल की सुंदर लड़की के रूप में बरियारपुर के पैंसठ साल के राम खेलावन जादो भी मिल सकते हैं।
फेसबुक पर लिखना भी एक कला है। यहाँ तुरंत प्रतिक्रिया मिलती है। सब प्रतिक्रिया सही नहीं होती। अगर आप एक महिला हैं तो हजारों लाइक्स मिल सकते हैं भले ही आप सच में महिला न हों! पूरा मायाजाल है। आपकी योग्यता इस मायाजाल को कितने पानी में कैसे फेंकना है , उस पर निर्भर करता है।
फेसबुक पर मेरे जैसे अनेक लेखक ,रचनाकार, समाजसेवी ,पर्यावरण संरक्षक मिल जाएंगे जो सोफे पे बैठे ही सारी दुनिया की क्रांति को हाँकते हैं पर कुछ तो सच में अद्भुत कार्य कर रहे होते हैं जिनकी जानकारी फेसबुक से ही मिलती है नहीं तो वे कहीं अंधेरे में खोए रहते।
फेसबुक पर सर्वश्रेष्ठ लेखन के भी दर्शन होते हैं तो कचरा लेखन भी । मैं दोनों में माहिर हूँ। फेसबुक के लेखन में चोरी भी चलती है जिसे दूसरे का माल चेंपना कहते हैं। किसी की रचना को कट पेस्ट कर बेस्ट बना दीजिये ,ऐसे भी कलाबाज यहाँ मिलते हैं।
फेसबुक के लेखन हेतु किसी संपादक को गोड़ नहीं लागना पड़ता। खुद ही संपादक ,मुद्रक ,लेखक और प्रकाशक हैं। जितना मन हो छाप दीजिये। आह, वाह मिलता ही रहेगा। फेसबुक पर कुछ ऐसे भी उच्चवर्गीय लोग हैं जो हँसना चाहते ,लिखना चाहते हैं पर हँस बोल नहीं पाते क्योंकि एक नकली आभिजात्य वर्गीय मुख मुद्रा में रहना उनकी मजबूरी है । वे खुशियों के रोबोट होते हैं। उनके लाइक्स भी बहुत महंगे होते हैं । हर ऐरे गैरे को वो देखते भी नहीं। मने स्ट्रीट फूड को देख जीभ लपलपाते तो हैं पर लोग क्या कहेंगे सोच फाइव स्टार में घुस जाते हैं।
कुछ लोग यहाँ दिल खोल जी लेते हैं। पूरी जिंदादिली के साथ । उनको यह चिंता ही नहीं है कि लोग क्या कहेंगे। उनके पास रोटी खाने को पैसे नहीं तो मुखौटे खरीदने को कहाँ से लाएंगे?
कुछ लोग सच में बड़े नासमझ भी होते हैं। एक ही चीज दिन में बीसियों बार पोस्ट करते हैं और क्यों करते हैं खुद उन्हें भी पता नहीं होता। कुछ सचमुच में अनुकरणीय होते हैं उनको पढ़ो तो आनंद की अनुभूति होती है। कुछ तो सच में दया के पात्र जैसे किसी मंदिर के आगे कटोरा लिए बैठे हों और एक दो सिक्का कोई न कोई डाल ही दे रहा है उनकी कटोरी में।
फेसबुक लेखन एक कला है। इसे कम शब्दों में लिखिए। ऐसा लिखिए कि कुछ सकारात्मक हो। जाति, धर्म ,वर्ग आदि पर लिखने से कुछ नहीं होगा। ऐसी क्रांतियां महापुरुष कर के गए हैं और देखिये हम उस क्रांति की क्या गत कर चुके हैं तो बचिए ऐसी क्रांति से।
बेहतर है, फेसबुक के झरोखे से शान्तचित्त हो जग का मुजरा लखिये !
इति फ़ेसबुकाये कथा ,प्रथम अध्याय!
रे भोलुआ ,शंख बजा!
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©डॉ. शंभु कुमार सिंह
7 जनवरी,21
पटना
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