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प्रेम एक अलमस्त हवा

by Dr Shambhu Kumar Singh

कविता

प्रेम है
अलमस्त हवा
पुरवैया का झोंका
जिसमें
उड़ जाते हैं
हम
कटी पतंग सी
पर लुटता है
दौड़
जब कोई बच्चा
कोमल दिल वाला
मुस्कुराता
इस पतंग को
पतंग भी
मुस्कुरा उठती है!
???

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
30 दिसम्बर,20
पटना

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