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गौरेया – हमारा घरेलू दोस्त

by Dr Shambhu Kumar Singh

बिहार का राज्य पक्षी-गौरेया

गौरेया (पासर डोमेस्टिकस) एक पक्षी है जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ मनुष्य गया इसने उनका अनुकरण किया और अमरीका के अधिकतर स्थानों, अफ्रीका के कुछ स्थानों, न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया तथा अन्य नगरीय बस्तियों में अपना घर बनाया। शहरी इलाकों में गौरेया की छह तरह की ही प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरेया कहा जाता है। यह गाँव में ज्यादातर पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से एक है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरेया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। घरेलू गौरेया (House Sparrow) संकटमुक्त जाति (IUCN 3.1) में वर्तमान में वर्गीकृत है।
गौरेया एक छोटी चिड़िया है। यह हल्की भूरे रंग और सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है। नर गौरेया की पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होता है। 14 से 16 से.मी. लंबी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। यह लगभग हर तरह की जलवायु पसंद करती है पर पहाड़ी स्थानों में यह कम दिखाई देती है। शहरों, कस्बों, गाँवों और खेतों के आसपास यह बहुतायत से पाई जाती है। नर गौरेया का ऊपरी भाग, नीचे का भाग और गालों पर पर भूरे रंग का होता है। गला चोंच और आँखों पर काला रंग होता है और पैर भूरे होते है। मादा के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता है। नर गौरेया को चिड़ा और मादा को चिड़ी या चिड़िया भी कहते हैं।

कम होती संख्या

पिछले कुछ सालों में शहरों में गौरेया की कम होती संख्या पर चिन्ता प्रकट की जा रही है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरेया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। सुपरमार्केट संस्कृति के कारण पुरानी पंसारी की दूकानें घट रही हैं। इससे गौरेया को दाना नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकलने वाली तंरगों को भी गौरेयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़िया की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप गौरेया तेजी से विलुप्त हो रही है। गौरेया को घास के बीज काफी पसंद होते हैं जो शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिल जाते हैं। ज्यादा तापमान गौरेया सहन नहीं कर सकती। प्रदूषण और विकिरण से शहरों का तापमान बढ़ रहा है। कबूतर को धार्मिक कारणों से ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। चुग्गे वाली जगह कबूतर ज्यादा होते हैं। पर गौरेया के लिए इस प्रकार के इंतज़ाम नहीं हैं। खाना और घोंसले की तलाश में गौरेया शहर से दूर निकल जाती हैं और अपना नया आशियाना तलाश लेती हैं।
गौरेया के बचाने की कवायद में दिल्ली सरकार ने भी गौरेया को राजपक्षी घोषित किया है। यह बिहार का भी राजपक्षी है। हम प्रति वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरेया दिवस भी मनाते हैं।
जब मैं अपने बचपन को याद करता हूँ तो पूर्णिया के हमारे गांव में काफी गौरेया हुआ करती थी। हमारे घर फूस के हुआ करते थे। खर के छप्पड़ में गौरेया खूब घर बनाती थी और हम उनके परिवार को निकट से देखा करते थे। पर अब उधर भी घर पक्के होने लगे और गौरेेया के आवास कम होने लगे हैं। न केवल गौरैया वरन वया का भी घर अब हमलोग कम देख रहे हैं। इनकी घटती संख्या के बहुत से कारण हैं। क्लाइमेट चेंज भी एक कारण है। फसल चक्र में बदलाव के कारण भी इनकी संख्या घट रही है। बिहार के सीमांचल में मकई की फसल को ज्यादा वरीयता देने के कारण भी इनकी संख्या घट रही है। किसान इनको मारने हेतु जहर का भी प्रयोग कर रहे हैं जो बहुत ही घातक है। पहले गौरेया को उड़ाने हेतु कनस्तर को बजा आवाज की जाती थी। पर अब लोग जहर का व्यवहार कर रहे हैं। नदी नालों की कमी ,दूषण मुक्त मिट्टी की भी कमी इनके रहवास को बाधित कर रही है।
गौरेया एक बहुत ही प्यारी चिड़िया है। यह पर्यावरण की संरक्षक है। कीट पतंगों को कंट्रोल करने में इनकी बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका है। हमें गौरेया को विलुप्त होने से बचाना है। बिहार में इसके संरक्षण पर कई एक कार्यक्रम चलाए जाते हैं। एक पत्रिका भी “गौरेया” के नाम से निकाली जाती है।
हमें सहअस्तित्व की भावना को ध्यान में रख पशु पक्षियों की रक्षा करनी चाहिए। इनमें गौरेया ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह हमारे बच्चों की साथी भी है। तो इसकी रक्षा करें , प्रकृति को इनके कलरव से गुंजायमान करें।

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
28 जनवरी,21, पटना
www.voiceforchange.in
www.prakritimitra.com

(काष्ठ का चिड़ियों हेतु घर की तस्वीर मेरे द्वारा ली गयी है जो वरीय प्रशासनिक अधिकारी श्री Vivek Singh जी के आवास पर लगा हुआ है! इस हेतु हम उनके प्रति आभार प्रगट करते हैं!)

(यहाँ प्रयुक्त फोटोग्राफ मुंबई की मित्र Rashmi Ravija जी के द्वारा ली गई है । मेरे विशेष अनुरोध पर उन्होंने इसे मेरे हेतु भेजा है जिस हेतु हम उनके प्रति भी आभार प्रगट करते हैं।)
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