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फेसबुक और मैं-2

by Dr Shambhu Kumar Singh

फेसबुक और मैं !

(भाग-2)
फेसबुक एक आभासी दुनिया है। बहुत हद तक दिखावटी । झूठ बहुत ही मीठी चासनी में परोस देने की जगह है यह। यहाँ सभी संत हैं। जैसे कि एक मैं ! सबका चेहरा क्यूट है। कोई कोई तो ऑसम है। तो अद्भुत लफ्फाजी भी है। पर स्वीकारने को कोई भी तैयार नहीं!
कोई खूसट बुड्ढा सोलह साल की छोरी बना लगभग दिल को बेचैन किये हुए है तो कोई आंटी अद्भुत व्याहमोह में पड़ी भटक रही हैं !
मेरे जैसे लोग फेसबुक पर ही क्रांति कर रहे हैं। देश ,समाज बदल रहे हैं।पर बदल कुछ भी नहीं रहा है। यहाँ इनबॉक्स की भी सुविधा है जो खुला लेटरबॉक्स है। उसे लोग हमाम की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
यह एक तरह का डस्टबीन भी है। जितना कूड़ा करकट है लोग बुहार कर यहीं डाल रहे हैं। इसी कचरे से कोई वर्मी कम्पोस्ट बना दे रहा है तो कोई बिजली। सब हुनर का खेल है प्रभु !
यह साहित्य का भी अखाड़ा है। किसिम किसिम के कवि ,लेखक अपनी संत्रास का यहीं वमन कर रहे हैं। यह दिल के जख्म दिखाने का सफाखाना भी है। चांदसी दवाखाना । मिल तो लें ,एक बार ! आइये न , चितकोहरा पुल के नीचे बाबा बंगाली ,झुमरी तिलैया वाले के यहाँ। हर मर्ज की दवा है। ताबीज ,गंडे, भभूत , झाड़,फूंक सब का इस्तेमाल किया जाता है। वशीकरण ,मारण, उच्चाटन, फ़सावन , पटावन की गारंटी। गोल्ड मेडलिस्ट बाबा कुछ भी कर सकते हैं। कमसेकम इको पार्क तक केलिये तो आश्वस्त ही रहो।
मैं तो बहुत चक्कर में हूँ जबकि खुद बहुत बड़ा घनचक्कर हूँ। क्या करूँ ,क्या न करूँ ,दिमाग में कीड़े काटते रहते हैं तो किसी को चिकोटी काटने यहाँ फेसबुक पर आ जाता हूँ।
यह नशेड़ियों का अड्डा है। नकली माल भी असली का मजा देता है। न विलायती ,देशी भी ,पाउच वाला बहुत नशा देता है। तो एक दो गटक कर गटर का स्नान भी कर लिया जाता है। लेकिन इतनी खामियों के बाद भी यह ऐसी जगह है जो पत्थर नहीं है। आप यहाँ अगर उदास हो जाएं तो कोई न कोई हाथ थामने आ ही जाता है जो भले ही पांच हजार में एक दो ही क्यों न हो ! बहुत मामलों में यह सच में सोना है ,पर इसके लिए जरूरी आपका का जागना है ,तो जागते रहो !
आज इतना ही ।
फिर मिलता हूँ !
कहाँ?
अरे यहाँ ही !
जीना यहाँ ,मरना यहाँ ,इसके सिवा जाना कहाँ ?
नमस्कार!
???

©डॉ. शंभु कुमार सिंह
17 नवम्बर ,20
पटना

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