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झूठ बोले, कौवा काटे

by Dr Shambhu Kumar Singh

सुबह की काँव काँव

चिड़ियों पर चर्चा हो और कौवा पर न हो तो यह बहुत ही खराब बात होगी। तो आज आ गए हम भी कांव कांव करने सुबह सुबह ! कौवा एक ऐसा पक्षी है जिससे हमलोगों का परिचय बचपन से ही हो जाता है। आंगन हो या छत की मुंडेर इसे वहाँ कांव कांव करते पाए हैं हम ! काहे बोले कागा अटरिया हो राम……तो वधुओं को इसकी बोली सुन किसी प्रिय के आने का शगुन उचारते भी हम देखें हैं। अपने हाथ से रोटी छीन उड़ जाते कौवे भी हमें मिले हैं। कौवा हमारे जीवन ,रहन सहन और संस्कृति में घुला मिला ऐसा पक्षी है जो हमारा हितकारी है।तो बताता हूँ आज विस्तार से इस कौवा के बारे में ।
कौवा एक पक्षी है। राजस्थानी में इसे कागला तथा मारवाडी भाषा में हाडा कहा जाता है| राजस्थान में एक बहुप्रचलित कहावत है-” मलके माय हाडा काळा ” अर्थात दुष्ट व्यक्ति हर जगह मिलते हैँ। हिंदी में काक, कागा, कौआ,कौवा आदि। अंग्रेजी में क्रो!
अपेक्षाकृत छोटा कबूतर आकार के जैकडो (यूरेशियन और डौरीयन) से होलारक्टिक क्षेत्र के आम रैवेन और इथियोपिया के हाइलैंड्स के मोटी-बिल वाले रेवेन, दक्षिण अमेरिका को छोड़कर सभी समशीतोष्ण महाद्वीपों पर इस जीनसोकक के 45 तक सदस्य पाए जाते हैं।कई द्वीप कौवा जीन परिवार कोरिडीडे प्रजातियों में से एक तिहाई पैदा करता है।यह एशिया में कॉरिड स्टॉक से विकसित किया हुआ है, जो ऑस्ट्रेलिया में विकसित हुआ था। कौवा सामाजिक जीव है और झुंड में रहना पसंद करता है। वैज्ञानिक वर्गीकरण किंगडम:एनिमिलिया,संघ:कॉर्डेटा

  1. कौआ की बोली कठोर होती है और यह काँव काँव की आवाज करता है।
  2. कौवा का रंग काला होता है बिल्कुल एक कोयल की तरह लेकिन कोयल की बोली मीठी होती है।
  3. कौआ को पर्यावरण का सफाई कर्मी भी कहते हैं क्योंकि यह गन्दगी को खाकर पर्यावरण को साफ करता है। कौआ मरे हुए जानवर का मांस भी खाता है।यह कुछ भी खा सकता था। यह सर्वभक्षी जीव है।
  4. कौआ के दोनों पँजे बहुत मजबूत होते हैं जो पेड़ों की टहनियों को आसानी से पकड़ लेते हैं। कौआ के पंख उसकी उड़ने में सहायता करते हैं और इसकी एक मजबूत चोंच भी होती है।
  5. कौआ झुंड में पाया जाता है । इसको जब भी खतरा महसूस होता है वो काँव काँव करने लग जाता है और ऐसा करके वो दूसरे कौवों को खतरे की सूचना भी दे देता है।
  6. कौआ एक बुद्धिमान पक्षी होता है। कौवा को चोर पक्षी भी कहते हैं क्योंकि यह चुपके से किसी के भी यहां से खाने की चीजें उठा ले आता है। यहाँ तक कि खाने की थाली से रोटी भी छीन कर भाग जा सकता है।
  7. दुनिया का सबसे छोटा कौवा मैसिस्को में पाया जाता है जो केवल 40 ग्राम वजन का है। दुनिया का सबसे बड़ा कौवा इथोपिया देश मे मिलता है जिसकी लम्बाई 65 सेंटीमीटर और वजन 1.5 किलो तक होता है।
  8. ऐसी मान्यता है कि अगर घर की छत पर कौआ काँव काँव करे तो इसका मतलब यह है कि घर पर कोई मेहमान आने वाला है।अभी भी गांव में लोग इससे शगुन उचारते हैं।
  9. कौआ अपने जीवनसाथी के साथ हमेशा रहता है और जब मादा कौआ अंडे को सेती है तब नर कौवा उसकी रक्षा करता है। नर और मादा कौआ दोनों मिलकर अपने बच्चे को पालते हैं।
  10. कौवा का निवास स्थान पेड़ होते हैं। एक रोचक बात यह भी है कि जब कौआ अपने अंडों को सेता है तब कोयल अपने अंडों को कौआ के अंडों में मिला देती है। कोयल और कौआ के अंडों में समानता होती है जिससे कौवा उन अंडों को नहीं पहचान पाता है। कोयल इस तरह कौए को मूर्ख बना देती है।
  11. कौआ की औसत उम्र 10 वर्ष से अधिक होती है।
  12. कौआ की बुद्धिमत्ता पर एक प्रसिद्ध कहानी है जिसमें एक प्यासा कौआ के मटके में कंकड़ डालकर पानी पीने का किस्सा है। यह कहानी स्कूल में बच्चों को पढ़ाई जाती है।
    13.कौवा सामाजिक प्राणी है और यह पंचायत भी लगाता है।
    14.भारतीय धर्म,सभ्यता और संस्कृति में कौवे का महत्वपूर्ण स्थान है। पितर पक्ष में या श्राद्ध कर्म में कौवे की खोज विशेष रूप से की जाती है।
    15.भारतीय साहित्य में कौवे को विशेष स्थान दिया गया है।कविता ,कहानी, लोकगीत में कौवा बहुतायत उल्लेखित मिलता है। कहीं पढ़ा था कि प्रिया अपने प्रिय की आने की खबर सही होने पर कौवे को कह रही है कि वह उसे नौ लखा हार देगी।
    16.कौवा को विद्वान भी कहा जाता है। भरतीय मिथक आख्यान में काग भुसुंडि जी की चर्चा है।
    कौवे काले ही होते हैं पर काला रंग भी भिन्न भिन्न होता है। भारत में दो तरह के कौवे आमतौर पर पाए जाते हैं। एक पूरा काला कौवा और दूसरा थोड़ा स्लेटी और गले में हल्के काले रंग वाला। घाना में कुछ कौवे सफेद कोट पहने से लगते हैं। हाँ, वे कुछ उजले रंग भी लिए होते हैं!

कौवे समाज और पर्यावरण के लिए बहुत ही हितकारी जीव है। पर यह भी चिंता की बात है कि कौवे अब विलुप्त हो रहे हैं। खेत खलिहान ,घर आंगन में हम कौवे की उपस्थिति में कमी पा रहे हैं। कभी मेरा रेलवे स्टेशन ,देसरी कौवे की संख्या के लिए फेमस था अब वहाँ भी इक्का दुक्का कौवे मिलते हैं। पूर्णिया जैसे इलाकों में मकई की खेती ने कौवे को खत्म करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।
कौवे को खेती में फसल रक्षा के लिए भी जहर दे मारा जाता है जो पर्यावरण और फसल उत्पादन के लिए चिंता की बात है। कौवा प्रकृति का सफाई कर्मी है। इससे पर्यावरण साफ और शुद्ध रहता है। कौवे के रहने से अन्न उत्पादन भी बढ़ता है। तो इनकी रक्षा करें। यह हमारे हितैषी जीव हैं।
शनिदेव जी महाराज के मुख्य वाहन के रूप में भी कौवे की बड़ी इज्जत है।

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प्रकृति मित्र

Prakriti Mitra

©Dr.Shambhu Kumar Singh
Patna / 7 Nov.,20
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www.prakritimitra.com

घाना का कौवा

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